अभिवृद्धि एवं बाल विकास

अभिवृद्धि एवं बाल विकास (Child Development Notes in Hindi)

बाल विकास (Child Development)

बाल विकास का अध्ययन शिक्षामनोविज्ञान का महत्वपूर्ण अंग है। यह बालक के विकास का वैज्ञानिक अध्ययन है।

किसी बालक के जन्म से लेकर उसकी परिपक्वता तक के सम्पूर्ण काल एवं कियाविधि का अध्ययन करना बाल विकास कहलाता है।

 

बालविकास का जनक स्टैनले हॉल को माना जाता है।

बालविकास की परिभाषाएं (Definitions of Child Development)

क्रो एंड क्रो

बालक के गर्भकाल से लेकर उसकी किशोरावस्था तक के अध्ययन को बालविकास कहा जाता है।

हरलोक

बालविकास का अर्थ बालक के शारीरिक, सामाजिक, नैतिक, मानसिक, संवेगात्मक, भावात्मक विकास में होने वाले परिवर्तनों का अध्ययन है।

 

बालविकास का सर्वप्रथम अध्ययन जॉन लॉक ने किया तथा बाल विकास का मनोवैज्ञानिक पेस्तोलोजी को कहा जाता है।

 

बाल विकास के अध्ययन की आवश्यकता (Need for child development study)

  1. यह बालक के व्यवहार को जानने में मदद करता है।
  2. बालक के स्वभाव के बारे में जाने में मदद करता है।
  3. इसके द्वारा बालक में व्यक्तित्व का विकास करके उसको उच्च आदर्शों का पालन करने वाला बनाया जा सकता है।
  4. इसके द्वारा बालक की आवश्यकताओं को जानने में मदद मिलती है।
  5. बाल विकास सर्वश्रेष्ठ अधिगम वातावरण तैयार करने में सहायता मिलती है।
  6. बालक के प्रकार का निर्धारण करने में मदद मिलता है।
  7. आवश्यक शिक्षण विधि को जानने में मदद मिलती है।

 

 

अभिवृद्धि एवं विकास (Development)

सोरेनसन के अनुसार अभिवृद्धि शरीर में उसके अंगों में भार तथा आकार में होने वाले परिमाणात्मक परिवर्तन है। जिन्हें मापा या तोला जा सकता है। जैसे लम्बाई का बढ़ना, बालों का बढ़ना, हड्डियों का आकार बढना।

 

अभिवृद्धि एवं विकास में अन्तर

  1. अभिवृद्धि एक निश्चित समय अवधि तक होने वाला परिवर्तन है। जबकि विकास जन्म से मृत्यु तक होता रहता है।
  2. अभि वृद्धि विकास का हिस्सा है। अर्थात विकास में अभिवृद्धि भी शामिल है। जैसे बालक के बालक की अस्थियों के आकार में वृद्धि अभिवृद्धि है। लेकिन निश्चित समय के पश्चात उस में मजबूती आना विकास है।
  3. अभिवृद्धि विशेष आयु तक चलने वाली प्रक्रिया है। जबकि विकास मृत्यु तक चलनेवाली प्रक्रिया है।
  4. विकास में परिवर्तन गुणात्मक तथा परिमाणात्मक होते है, जबकि अभिवृद्धि में केवल परिमाणात्मक परिवर्तन होते है।
  5. अभिवृद्धि को देखा या मापा जा सकता है लेकिन विकास को केवल महसूस किया जा सकता है।

अभिवृद्धि एवं बाल विकास (Child Development Notes in Hindi)

अभिवृद्धि एवं विकास के नियम

  1. निरन्तर या क्रमिक विकास का नियम (Principle of Continous Growth)
  2. विभिन्न विकास गतियों का नियम (Principle of Different Growth Rate)
  3. विकासक्रम का नियम (Principle of Sequenced Development)
  4. विकास की दिशा का नियम (Principle of Development Direction)
  5. एकीकरण का नियम (Principle of Integration)
  6. अंतरसंबंध या परस्पर संबंध का नियम (Principle of Inter-relation)
  7. अन्तः क्रिया का नियम (Principle of Interaction)
  8. समान प्रतिमान का नियम (Principle of Unifrom Pattern)
  9. व्यक्तिगत विभिन्नताओं का नियम (Principle of Individual Differences)
  10. सरल से विशिष्ट अनुक्रियाओं की ओर का नियम (Principle of General and Specific Response)
  11. वर्तुलाकार का नियम (Principle of Interaction of Heredity and Environment)

 

 

क्रमिक विकास का नियम

प्रत्येक बालक का विकास सतत होने वाली अवस्थाओंजैसे शैशवावस्था, बाल्यावस्था, किशोरावस्था आदि के माध्यम से होता है।

 

विभिन्न गतियों का नियम

प्रत्येक बालक मेंविकास की गति व्यक्तिगत रूप से भिन्न होती है। जैसेकोई बालक लंबा होता है। तो कोई छोटा ही रह जाता है।

 

निरंतर विकास का नियम

इसकेअनुसार बालक में विभिन्न प्रकार के विकास निश्चित क्रम में होते है जैसे भाषा संबंधी विकास करता है। जैसे बालक जन्म के समय केवल रोता है। लेकिन तीन माह पश्चात बरौनी के साथ-साथ ध्वनि उत्पन्न करना सीख जाता है। 6 माह का बालक मधुर ध्वनि उत्पन्न करने लगता है। 7 माह का बालक मां बा बा आदि शब्द बोलने लगता है। जो भाषा के विकास की शुरुआत है।

 

 

विकास की दिशा का नियम

बालक का विकास सूक्ष्म से स्कूल की ओर या सिर से पूँछ की ओर होता है। इस प्रकार के विकास को सीफेलोकोडल कहते हैं।

जन्म के पश्चात वाले का अपने शरीर पर नियंत्रण पाता है।

3 माह का बालक नेत्र गोल को पर नियंत्रण पाता है।
6 माह के बालक हाथों की गति पर नियंत्रण करता है।

9 माह का बालक बैठना सीखता है।

12 माह का बालक खड़ा होना सकता है।

15 माह का बालक चलना सीखता है।

18 माह का बालक चलना सीख जाता है।

 

 

एकीकरण का नियम

इस नियम के अनुसार बालक पहले संपूर्ण शरीर पर और अंत में आंखों के विभिन्न भागों पर नियंत्रण पाता है।

 

अंतरसंबंध या परस्पर संबंध का नियम

इस नियम के अनुसार बालक के शारीरिक, मानसिक, सामाजिक व नैतिक विकास में परस्पर संबंध होता है। यह सभी विकास एक दूसरे पर निर्भर करते हैं।

 

अन्तः क्रिया का नियम

इसके अनुसार बालक का विकास वंशानुक्रम तथा वातावरण दोनों की अन्तःक्रिया के द्वारा होता है।

 

समान प्रतिमान का नियम

बालक अपने पूर्वजों के समान प्रतिमान का नियम पालन करता है।

 

 

व्यक्तिगत विभिन्नताओं का नियम

व्यक्तिगत विभिन्नताओं का नियम प्रत्येक बालक एक दूसरे बालक से व्यक्तिगत रूप से भिन्न होता है।

 

वर्तुलाकार का नियम

व्यक्ति केवल लंबाई में वृद्धि नहीं करता उसके संपूर्ण आकार में वृद्धि होती है।

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