राजस्थान की चित्रशैलियाँ

राजस्थान की चित्रशैलियाँ (Rajasthan Ki Chitrakala)

राजस्थान के सर्वाधिक प्राचीन चित्रित ग्रन्थ “ओध निर्युत्की वृति तथा दस वैकालिका सूत्र चूर्णी” जैसलमेर में मिले जो 1060 ईस्वी में रचित है। राजस्थान की चित्रशैलियों को चार शैलियों में विभक्त किया जाता है। जो निम्न हैं-

  1. मेवाड़ शैली
  2. मारवाड़ शैली
  3. हाडौती शैली
  4. ढूढाड शैली

मेवाड़ शैली

स्थान – उदयपुर

स्वर्णकाल – जगतसिंह प्रथम का काल इसका स्वर्णकाल था

प्रमुख चित्रकार – साहिबदीन, जगन्नाथ, कृपाराम, उमरा या अमरा, मनोहर, हीरानंद (मेवाड़ के साहब जगन्नाथ ने उमरा पर कृपा करके उसे मनपसंद हीरा दिया)

मुख्य चित्र

  1. गीतगोविन्द – साहिबदीन द्वारा जगतसिंह प्रथम के काल में चित्रित
  2. रसिकप्रिया – साहिबदीन द्वारा जगतसिंह प्रथम के काल में चित्रित
  3. रागमाला – साहिबदीन द्वारा जगतसिंह प्रथम के काल में चित्रित
  4. भागवत पुराण – साहिबदीन द्वारा जगतसिंह प्रथम के काल में चित्रित
  5. शुकर क्षेत्र महात्मय – साहिबदीन द्वारा राजसिंह के काल में चित्रित
  6. भ्रमर गीत सार
  7. सुरसागर – जगतसिंह प्रथम के काल में रचित
  8. चोर पंचाशिका
  9. मुल्ला दो प्याजा
  10. सुपासनह चरीमय – हीरानंद द्वारा मोकल के समय रचित सरस्वती संग्रहालय उदयपुर में सुरक्षित
  11. आर्ष रामायण – मनोहर तथा साहिबदीन द्वारा जगतसिंह प्रथम के काल में रचित
  12. बिहारी सतसई – जगन्नाथ द्वारा संग्रामसिंह-II के काल में रचित
  13. कलीला दमना – इसका चित्रकार नुरुद्दीन है। अलबरूनी के अनुसार यह पंचतंत्र की कहानी (विष्णु शर्मा द्वारा रचित) है। करटक तथा दमनक पात्र है। अबुल फजल ने इसका फ़ारसी भाषा में ‘आयरे दानिश’ के नाम से अनुवाद किया

कलीला दमना के आधार पर सर्वप्रथम सचित्र पुस्तक 1258 में बगदाद में तैयार की गयी

रंग – लाल तथा पीला

प्रमुख वृक्ष – कदम्ब

चित्र की विशेषता – चित्र की नायिका तरुण रूप (यौवन) जिसकी आंखे मीणाकृत या कमल के समान थी

श्रावक प्रतिक्रमण चूर्णी कमलचंद द्वारा 1260 में रावल तेजसिंह के काल में मेवाड़ चित्रशैली का प्रथम चित्रित ग्रन्थ

सुपासनाह चरित्रम – हीरानन्द द्वारा रचित

चितेरे री ओवरी जगतसिंह द्वारा उदयपुर सिटी पैलेस में निर्मित चित्रों का संग्रहालय जिसे तस्वीरों का कारखाना भी कहते है।

चित्रशैली की विशेषता

गठीला शरीर, लम्बी मूंछे, छोटा कद, वाले पुरुष तथा मिनाकृत आँखे, गरुड जैसी लम्बी नाक, लम्बी वेणी, भरी हुई ठोड़ी वाली स्त्रियाँ

 

मेवाड़ चित्रशैली की उपशैलियाँ

  1. चावंड मेवाड़ चित्रशैली
  2. नाथद्वारा मेवाड़ चित्रशैली
  3. देवगढ़ मेवाड़ चित्रशैली

 

चावंड मेवाड़ चित्रशैली

स्थान – उदयपुर

स्वर्णकाल – अमरसिंह का काल

प्रमुख चित्रकार – नासिरदीन (निसरदी)

मुख्य चित्र रागमाला 1605 नासिरदीन (निसरदी) के द्वारा रचित

 

नाथद्वारा मेवाड़ चित्रशैली

स्थान –  राजसमन्द

स्वर्णकाल – राजसिंह का काल

प्रमुख चित्रकार –नारायण, चतुर्भुज, घीसाराम (नारायण ने चतुर्भुज को नाथद्वारा में घीसा)

रंग – हरा तथा पीला

प्रमुख चित्र – पिछ्वाईयां

चित्र की विशेषता

आंखे चकोर के समान तथा नायिका दासी के रूप में, नन्द तथा बाल गोपालों का भावपूर्ण चित्रण

57 ईस्वी में पंचतंत्र का सुरयानी भाषा में अनुवाद किया गया

उदयपुर शैली + ब्रज शैली à नाथद्वारा शैली

अन्य नाम – वल्लभ शैली वल्लभ सम्प्रदाय से सम्बंधित

 

देवगढ़ मेवाड़ चित्रशैली

स्थान – प्रतापगढ़

स्वर्णकाल –  द्वारिकादास चुण्डावत का काल

प्रमुख चित्रकार – कंवला, चोखा, बैजनाथ

रंग – पीला

विशेषता

मारवाड़, जयपुर की शैलियों से समानता, पीले रंग का बाहुल्य, डॉ श्रीधर अंधारे ने इस शैली की खोज की

 

मारवाड़ शैली

इसको जोधपुर शैली भी कहा जाता है।

स्थान – जोधपुर

स्वर्णकाल –  महाराजा मानसिंह का काल

प्रमुख चित्रकार – नारायणदास, विशनदास, अमरदास, शिवदास, रतना भाटी, कालू, छज्जू, जीतमल

रंग – पीला

प्रमुख वृक्ष – आम (जोधपुर के आम पीले है।) , आम्रवाटिका, ऊट, घोड़े तथा कुत्ते की प्रमुखता

चित्र की विशेषता

नायिका प्रोढ़ा के रूप में जिसकी आँखे बादाम की तरह् चाप की आकृति के समान , कबूतर उड़ाती स्त्रियां

प्रमुख चित्र

  1. ढोला मारू
  2. बिलावल रागिनी चित्र
  3. बेली क्रिसन रूकमणि रि
  4. जंगल में केम्प
  5. काम-कंदला
  6. पाबूजी राठोड
  7. जलाल-बबुना

प्रमुख चित्रित ग्रन्थ- कामसूत्र, पंचतंत्र, नाथ चरित्र, रागमाला

मारवाड़ शैली का स्वतंत्र विकास मालदेव के द्वारा किया गया मालदेव के समय का “उतराध्ययन सूत्र” महत्वपूर्ण है। जो बड़ोदा संग्रहालय में सुरक्षित है।

 

मारवाड़ दरबार में चित्रकला की कंपनी शैली को महत्व मिला इस शैली में कडकडाती बिजली के साथ गोलाकार घने बादल दर्शाए गये है।

एस के मुलर (अंग्रेज चित्रकार) ने दुर्गादास राठौड़ का घोड़े पर बेठे भाले से रोटी सकते हुए का चित्र बनाया

महाराजा गजसिंह के चित्रकार ‘वीरजी नारयनदा’ ने 1623 में ‘रागमाला सेट’ चित्रित किया

 

मारवाड़ शैली की उपशैलियाँ

  1. बीकानेर शैली
  2. जैसलमेर शैली
  3. किशनगढ़ शैली
  4. नागौर शैली

 

 

बीकानेर मारवाड़ उपशैली

स्थान – बीकानेर

स्वर्णकाल – अनूपसिंह का काल

प्रमुख चित्रकार – अली रजा, उस्ता अमीर खां, रुकनुद्दीन, मुन्नालाल,मुकुंद

रंग – पीला

मुख्य चित्र

  1. भागवत पुराण – राव रायसिंह के समय चित्रित बीकानेर शैली का प्रारम्भिक चित्र
  2. सामंती वैभव का चित्र
  3. बंद हाथी का चित्र

चित्र की विशेषता

नायिका ललिता के रूप में आँखे मृगनयनी (हिरन के समान आँखे) तथा कमल कोशवत, लम्बी इकहरी तन्वंगी देह वाली नारी, नीला आकाश जो सुनहरे छल्लेदार श्वेत बादलों से भरा, मुग़ल शैली का प्रभाव,

 

जैसलमेर मारवाड़ उपशैली

स्थान – जैसलमेर

स्वर्णकाल – मूलराज का काल तथा महारावल हरराज और अखैसिंह संरक्षक

प्रमुख चित्रकार

मुख्य चित्र – मूमल

चित्र की विशेषता – मुगलों से अप्रभावित शैली

 

 

 

किशनगढ़ मारवाड़ उपशैली

स्थान – किशनगढ़ (अजमेर)

स्वर्णकाल – राजा सामंतसिंह नागरी दास का काल

प्रमुख चित्रकार – मयूरध्वज, निहालचंद, लालचंद, अमरचंद, सीताराम बदनसिंह, नानकराम

रंग – श्वेत तथा गुलाबी

मुख्य चित्र

  1. बणी-ठणी – इसके चित्रकार मयूरध्वज तथा निहालचंद है। इसको एरिक डिक्सन ने “राजस्थान की मोनालिशा” कहा
  2. सांझीलीला – चित्रकार निहालचंद
  3. चाँदनी रात की संगोष्ठी/ संगीत गोष्ठी – चित्रकार अमरचंद
  4. बिहारी चन्द्रिका

चित्र की विशेषता

काँगड़ा तथा ब्रज साहित्य से प्रभावित, नायिका विलासवती रूप में जिसकी आंखे कमान की तरह बड़ी या खंजन आकृति की, नारी सौन्दर्य की प्रधानता, शैली को प्रकाश में लाने का श्रेय ” एरिक डिक्सन” तथा “डॉ फैयाज़ अली” को है

प्रमुख तथ्य – वेसरी – बणी-ठणी चित्र में नायिका के नाक का आभूषण

 


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नागौर मारवाड़ उपशैली

स्थान – नागौर

स्वर्णकाल

प्रमुख चित्रकार

चित्र

चित्र की विशेषता

लम्बी शबीह, छोटी आँखे चपटा ललाट वाले नायक, नायिका, पारदर्शी वेशभूषा, बुझे हुए रंगों का उपयोग, अफगानी, मुग़ल तथा जैन कला का समन्वय

 

हाडौती शैली

इसका प्रारम्भिक स्वरूप बूंदी शैली है। यह आलनिया नदी के किनारे विकसित चित्र शैली है। इसमें नायिका युवती के रूप में है। जिसकी आँखे आम के पत्तों जैसी या कमल पत्र जैसी है।

रंग – नीला

प्रमुख वृक्ष – खजूर (हाडौती में नीले रंग की खजूर होती है।)

हाडौती शैली की उपशैलियाँ

  1. बूंदी शैली
  2. कोटा शैली

 

बूंदी हाडौती उपशैली

स्थान – बूंदी

स्वर्णकाल – राव शत्रुशाल के काल में प्रारम्भ तथा राव सुर्जनसिंह तथा भावसिंह के काल में विकसित

प्रमुख चित्रकार – डालू, रामलाल, श्री कृष्ण, सुजन

रंग – हरा

मुख्य चित्र

  1. बारहमासा चित्र
  2. राग रागिनी
  3. रसराज- मतिराम द्वारा
  4. रागिनी भैरव – रागमाला के चित्र
  5. राग दीपक – रागमाला के चित्र रतनसिंह के समय चित्रित

 

चित्र की विशेषता

सोने व चाँदी का उपयोग, पशु-पक्षियों (मयूर हाथी तथा हिरन अधिक), हाथियों की लड़ाई तथा तीज-त्यौहार के चित्र

प्रमुख तथ्य – भावसिंह हाडा के काल में मतिराम जैसा प्रसिद्ध कलाकार था

 

कोटा हाडौती उपशैली

स्थान – कोटा

स्वर्णकाल – महाराज उम्मेद सिंह का काल लेकिन स्वतंत्र अस्तित्व स्थापित करने का श्रेय महाराव राम सिंह को है।

प्रमुख चित्रकार – डालूराम, लच्छीराम, गोविन्दराम, लघुनाथ, नूर मोहम्मद

मुख्य चित्र

रागमाला सेट – डालूराम द्वारा 1768 में चित्रित सबसे बड़ा कोटा कलम का सेट

भागवत का लघु सचित्र ग्रन्थ

चित्र की विशेषता

चम्पा, सिंह तथा मोर का चित्रण, हाथियों की लड़ाई, शिकार के चित्र, रानियों को शिकार करते हुए दिखाया गया है।


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ढूढाड शैली

स्थान – जयपुर तथा उसके आस-पास का क्षेत्र

स्वर्णकाल – सवाई प्रताप सिंह का काल

प्रमुख चित्रकार – साहिबराम, सालिगराम, मोहम्मद शाह, लालचंद

मुख्य चित्र

  1. कुरआन पढ़ती स्त्रियाँ
  2. भीख मांगती स्त्रियाँ
  3. दुर्गा सप्तमी
  4. इश्वरी सिंह का आदमकद पोट्रेट चित्र – साहिबराम के द्वारा चित्रित
  5. जानवरों की लड़ाई के चित्र – लालचंद के द्वारा चित्रित

रंग – केसरिया पीला, लाल तथा हरा

प्रमुख वृक्ष – पीपल

चित्र की विशेषता

गीत गोविन्द तथा कामसूत्र पर आधारित ग्रन्थ, नायिका के कमर तक फैले केश, मछलियो के समान (पटोलाक्ष) तथा मादक आँखे

सूरतखाना à जयसिंह-I  द्वारा निर्मित चित्रों का संग्रहालय

सवाई मानसिंह का त्रिवियामी चित्र

ढूढाड शैली की उपशैलियाँ

  1. आमेर शैली
  2. अलवर शैली
  3. उणीयारा शैली
  4. शेखावाटी शैली

 

आमेर ढूढाड उपशैली

स्थान – आमेर

स्वर्णकाल – मानसिंह-I का काल

प्रमुख चित्रकार

रंग – हिरमच, गैरु, कालूस आदि का अधिक प्रयोग

मुख्य चित्र – बारहमासा चित्र बोस्टन संग्रहालय में सुरक्षित

चित्र की विशेषता

मुगल शैली से सर्वाधिक प्रभावित, उद्यानों के चित्रों की अधिकता

 

अलवर ढूढाड उपशैली

स्थान – अलवर

स्वर्णकाल – विजय सिंह का काल

प्रमुख चित्रकार – बलदेव गुलामअली, मूलचंद, नानगराम

रंग – हरा, नीला, सुनहरी

मुख्य चित्र

  1. गुलिस्ता – बलदेव तथा गुलाम अली द्वारा “शेखसादी के गुलिस्ताँ” का चित्रण
  2. योगासन
  3. चंडी पाठ

 

चित्र की विशेषता

वेश्याओं (गणिकाओं) का चित्रण, महाराज शिवदान सिंह के समय कामशात्र का चित्रण, हाथी दाँत तथा चावल के दानों पर मूलचंद द्वारा चित्रण

 

उणीयारा ढूढाड उपशैली

स्थान – जयपुर तथा बूंदी रियासत के मध्य नरुका ठिकाना

स्वर्णकाल

प्रमुख चित्रकार – धीमा, मीर बक्श, कशी राम, बखता

मुख्य चित्र – राम, लक्ष्मण तथा हनुमान के चित्र

चित्र की विशेषता

कवी केशव की कविप्रिया पर आधारित चित्र, बारहमासा तथा रागरागिनी राजाओं के चित्र

 

शेखावाटी ढूढाड उपशैली

स्थान – सीकर, चुरू, झुंझुनूं

स्वर्णकाल

प्रमुख चित्रकार

मुख्य चित्र –  मोटरगाड़ी, रेलगाड़ी तथा वायुयान के चित्र

चित्र की विशेषता – बलखाती बालों की लट वाली स्त्रियाँ

मंडावा (झुंझुनूं) तथा फतेहपुर (सीकर) भित्ति चित्रों के लिए प्रसिद्ध

 

रंग

शैली

लाल उदयपुर शैली
हरा जयपुर तथा अलवर शैली
पीला जोधपुर तथा बीकानेर शैली
नीला कोटा शैली
सुनहरा बूंदी शैली
श्वेत किशनगढ़ शैली
गुलाबी किशनगढ़ शैली

 


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राजस्थान के प्रमुख आधुनिक चित्रकार

  1. राजगोपाल विजयवर्गीय – एकल चित्र प्रदर्शनी के राजस्थान के प्रथम चित्रकार, अभिसार निशा साहित्य
  2. परमानंद चोयल – भैसों के चितेरे
  3. भूरसिंह शेखावत – शहीदों का चित्रण
  4. कृपाल सिंह शेखावत – ब्लू पोटरी के कृपाल शैली (25 रंगों का प्रयोग) के जनक
  5. गोवर्धन लाल (लाल बाबा) – भीलों के चितेरे
  6. सोभागमल गहलोत – नीड़ का चितेरा
  7. देवकीनंदन शर्मा – Master of Nature and Living objects

प्रमुख चित्रकला विकास संस्थायें

  1. क्रिएटिव आर्टिस्ट ग्रुप – पैग (जयपुर)
  2. आयाम कलावृत – जयपुर
  3. चितेरा , धोरा – जोधपुर
  4. तुलिका कलाकार परिषद – उदयपुर

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