शैवाल के सामान्य लक्षण, वर्गीकरण एवं उपयोग

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शैवाल (Algae)

शैवाल पर्णहरित युक्त थैलोफाइट्स (thallophytes) है इनमें सत्य जड़, तना पत्ती का अभाव होता है इसलिए इनका शरीर थैलस (thallus) कहलाता है।

इसमें भ्रूण अवस्था (embryo stage) नहीं होती। शैवाल में एककोशिकीय नोन जेकेट युक्त गेमीटेन्जिया (gametangia) उपस्थिति होते हैं।

शैवाल अध्ययन एल्गोलॉजी (algology) या फाइकोलॉजी (phycology) कहलाता है। F.E. Fritsch को शैवाल विज्ञान या फाइकोलॉजी का जनक कहा जाता है।

इनका प्रमुख पादप काय युग्मकोद्भिद होता है जो अगुणित होता है। (Their main plant body is the gametophyte which is haploid.)

 

शैवाल के मुख्य अभिलक्षण (The main characteristics of algae)

  1. शैवाल मुख्यतया जलीय, या तो लवण या अलवण जलीय होते हैं, या नम पत्थरों, मृदा व काष्ठ में रहते हैं।
  2. संरक्षित भोजन मुख्यतया स्टार्च है।
  3. संवहनीय ऊत्तक (Vascular tissues) अनुपस्थित होते हैं। विशाल अवस्था में जल संचालन की आवश्यकता नहीं होती।
  4. पोषण स्वपोषी (autotrophic) होता है।
  5. कायिक प्रजनन (Vegetative reproduction) विखण्डीकरण () द्वारा होता है। by means of fragmentation
  6. अलैंगिक जनन (Asexual reproduction) माइटोस्पोर (Mitospores) द्वारा होता है ये विभिन्न प्रकार के होते है। जैसे- चलबीजाणु (Zoospores), अचलबीजाणु (Aplanospores), हिप्नोस्पोर (Hypnospores), एकाइनीट्स (Akinetes), पाल्मेला अवस्था द्वारा (Palmella stage)।
  7. लैंगिक अंग एक कोशिकीय होते हैं। लैंगिक अंग में आवरण यानि जैकेट नहीं होते हैं। कारा में लैंगिक अंग बहुकोशिकीय होते हैं, इनकी प्रत्येक कोशिका जनन क्षम (fertile) होती है।
  8. लैंगिक जनन में युग्मक संलयन (gametic fusion) द्वारा होता है। शैवाल समयुग्मकी (isogamy), असमयुग्मकी (anisogamy ) तथा विषमयुग्मकी (oogamy) हो सकते है।
  9. जीवन चक्र हेप्लोंटिक, डिप्लोंटिक या हेप्लोडिप्लोंटिक प्रकार का होता है।

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शैवालों का वर्गीकरण (classification of algae)

आर. एच. व्हिटेकर (1969) ने प्लांटी जगत में शैवालों को मुख्यतया तीन प्रकार से वर्गीकृत किया-

  1. रोडोफाइसी (लाल शैवाल)
  2. फीयोफाइसी (भूरी शैवाल)
  3. क्लोरोफाइसी (हरी शैवाल)

 

रोडोफाइसी / लाल शैवाल (Red algae / Rhodophyceae)

ये मुख्यतया समुद्री (marine) होते हैं तथा गर्म क्षैत्रों में पाए जाते है।  ये समुंद्र में ऊपरी सतह या गहराई में रहते हैं।

पादप शरीर भिन्न-भिन्न आकार होता है जैसे-

  1. एककोशिकीय unicellular – उदाहरण पोरफाइरिडियम (e.g., Porphyridium)
  2. तन्तुमय filamentous – उदाहरण एस्टेरोसिस्टिस (e.g., Asterocystis)
  3. पेरेनकाइमेट्स शीट्स parenchymatous sheets – उदाहरण पोरफाइरा(e.g., Porphyra)
  4. रिब्बन ribbons – उदाहरण कॉन्ड्स (e.g., Chondrus)
  5. लेस के समान lace-like – उदाहरण जेलिडियम समुद्री खरपतवार (e.g., Gelidium)

 

इसमें चल या कशाभिक अवस्था सम्पूर्ण जीवन चक्र में अनुपस्थित होती है।

कोशिका भित्ति में सेल्युलॉज, पेक्टिक यौगिक तथा सल्फेट युक्त पोलिसेकेराइड होते हैं, जिन्हे फाइकोकॉलोइड (phycocolloids) कहते हैं। रोडोफाइट्स के महत्वपूर्ण फाइकोलॉइड्स अगार (agar) तथा केरेजीनिन / केरेगिन (carrageenin)  है।

लाल शैवाल में पोषण (Nutrition in red algae)

लाल शैवाल स्वपोषी (Autotrophic) होती है। इनके प्रकाशसंश्लेषी अंगों को क्रोमेटोफोर (chromatophores) कहते हैं। इनमें असमूहित या एकल थायलेकॉइड होते हैं।

प्रकाश संश्लेषी वर्णकों में पर्णहरित a एवं d, केरोटीनॉइड्स तथा फाइकोबिलिन्स होते हैं। फाइकोबिलिन्स जल घुलित वर्णक है, जिनके नाम निम्न है-

  1. फाइकोइरिथ्रिन / phycoerythrin (लाल रंग)
  2. फाइकोसायनिन / phycocyanin (नीला रंग)
  3. एलोफाइकोसायनिन / allophycocyanin (नील हरित शैवाल में)

रोडोफाइसी या लाल शैवाल का लाल रंग फाइकोइरिथ्रिन के कारण होता है। फाइकोइरिथ्रिन प्रकाश की नीली हरी तरंगदैर्ध्य को अवशोषित कर सकता है। यह तरंगदैर्ध्य जल में अधिकतम गहराई तक पहुँचने सकती है। अतः लाल शैवाल समुद्र की अधिकतम गहराई में रह सकते है, जहाँ अन्य प्रकाश संश्लेषी जीव वृद्धि नहीं कर सकते।

लाल शैवाल में भोजन का संचय (Reserve food in Red Algae)

रोडोफाइसी भोजन का संचय फ्लोरिडीयन स्टार्च (floridean starch) के रूप में होता है। फ्लोरिडीयन स्टार्च का संगठन ग्लाइकोजन के समान होता है। अन्य घुलित शर्करा फ्लोरिडोसाइड (ग्लिसरॉल का गेलेक्टोसाइड) भी पाया जाता है।

लाल शैवाल में जनन (Reproduction in Red Algae)

इसमें कायिक प्रजनन (Vegetative reproduction) विखण्डीकरण (fragmentation) द्वारा होता है। तथा अलैंगिक प्रजनन अचल बीजाणुओं द्वारा होता है।

लैंगिक प्रजनन अत्यधिक प्रगत तथा ऊगेमस (highly advanced and oogamous) होता है। यह जटिल पश्च निषेचन परिवर्तनों द्वारा पूर्ण होता है।

नर जननांग स्पर्मेटेन्जियम (spermatangium) या एन्थीरिडियम (antheridium) होते हैं। ये अकशाभिक नर युग्मक उत्पन्न करते हैं, जिन्हे स्पर्मेशियम या एन्थेरेजोइड (spermatium)  कहते हैं।

मादा जननांग फ्लास्क आकृति का होता है, जो कार्पोगोनियम (carpogonium) कहलाता है। कार्पोगोनियम में लम्बी ग्राही ग्रीवा होती है, जिसे ट्राईकोगाइनी (trichogyne) कहते है।

स्पर्मेश्यिा जल धारा द्वारा निषेचन हेतु ट्राइकोगाइनी के शीर्ष तक परिवहित होते हैं।

अनेक शैवालों में एक गुणित तथा द्विगुणित बहुकोशिकीय पीढ़ीयों का एकान्तरण होता है।

 

लाल शैवाल का आर्थिक महत्व (Economic importance of red algae)

लाल शैवाल में अधिक मात्रा में फाइकोकॉलोइड पाया जाता है जो व्यवसायिक उपयोग हेतु निकाले जाते हैं। इनमें अगार (agar), केरेजीनिन / केरेगिन (carrageenin) तथा फ्युनोरि (funori) सम्मिलित है।

अगार का उपयोग प्रयोगशाला में संवर्धन माध्यम को ठोस बनाने में किया जाता है, तथा इसे जैली, पुडिंग, क्रीम, पनीर, बेकरी के निर्माण में भी उपयोग किया जाता है।

अगार जैलिडियम (Gelidium) तथा ग्रेसिलेरिया (Gracilaria) से प्राप्त किया जाता है।

केरेजीनिन / करेगीन शराब, सफाई कारक, चमड़ा चमकाने तथा चोकलेट, आइसक्रीम, टूथ पेस्ट, पेन्ट आदि में पायसिकृत के रूप में उपयोगी है।

फ्युनोरि (funori) एक प्रकार की गोंद है, जो आसंजक के रूप में कार्य करता है। यह ग्लोइयोपेल्टिस (Gloiopeltis) से प्राप्त होता है।

पोरफायरा (लेवर),रोडिमेनिया (डुल्स), कॉन्ड्रस (आइरिश मॉस) खाने योग्य लाल शैवाल हैं।

रोडिमेनिया (भेड़ की खरपतवार) चारे के रूप में उपयोगी है।

पोरफाइरा व्यवसायिक दोहन के लिए जापान में उगाई जाती है।


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भूरी शैवाल (Brown algae) फीयोफाइसी (Phaeophyceae)

ये समुद्री आवास में पाई जाने वाली शैवाल है। शरीर आकृति व आकार में अत्यधिक विभिन्नता दर्शाता है जैसे-

  1. शाखित तन्तुमय संरचना (निम्नतर अवस्था) – उदाहरण एक्टोकार्पस
  2. पेरेनकाइमेट्स संरचना (उच्चतर अवस्था) – उदाहरण मेक्रोसिस्टिस सारगेसम, लेमिनेरिया, फ्युकस

Note – भूरी शैवाल (Brown algae)  की एककोशिकीय अवस्था ज्ञात है।

विशाल भूरी शैवाल केल्प (kelps) कहलाती है, जो ऊँचाई में 100 मीटर तक होती है। सबसे बड़ी केल्प मेक्रोसिस्टिस (Macrocystis) तथा नीरीयोसिस्टिस (Nereocystis) है।

इनका पादप शरीर तीन भागों में विभेदित होता है-

  1. हॉल्डफास्ट (holdfast) – आधार से जोडती है।
  2. स्टिप (stipe)- वृन्त जैसी संरचना।
  3. फ्रान्ड (frond) पत्ती के समान प्रकाशसंश्लेषी अंग।

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सारगेसम (Sargassum) तथा फ्युकस (Fucus) की कुछ जातियाँ मुक्त प्लावी होती हैं।

फीयोफाइसी (Phaeophyceae) की कोशिका भित्ति में आन्तरिक परत सेल्युलॉज की बनी तथा बाह्य परत म्युसिलेज और एल्जिन (algin) की बनी होती है।

 

भूरी शैवाल के फाइकोकॉलोइड नोन सल्फेटेड पोलिसेकेराइड होते हैं। इनमें से सामान्य एल्जिनिक अम्ल (alginic acid), फ्युकॉइडिन (fucoidin) तथा फ्युसिन (fucin) है।

ये ज्वारीय क्षैत्रों में रहने वाली जातियों में प्रचुर होते हैं। फाइकोकॉलोइड निम्न ज्वार के दौरान शुष्कन, निम्न तापमान में फ्रीजिंग तथा चट्टानों द्वारा चोट से सुरक्षा करते हैं।

भूरी शैवाल में पोषण (Nutrition in red algae)

ये स्वपोषी (Autotrophic) होते है इनमें प्रकाश संश्लेषी वर्णक पर्णहरित a rFkk b पाया जाता है।

फीयोफाइसी (Phaeophyceae) का भूरा रंग जैन्थोमोनास की अधिक मात्रा की उपस्थिति के कारण होता है, इसे फ्युकोजैन्थिन (fucoxanthin) भी कहते हैं।

इसकी कोशिकाओं में अपवर्तनशील आशय या पुतिकाएँ (refractile vesicles) होते हैं, जिन्हें फ्युकोसन आशय या पुटिका (fucosan vesicles) कहते हैं। आशयों में फीनोलिक रसायन होता है, जिसे फ्युकोसन (fucosan) कहते हैं। फ्युकोसन जल के अन्दर रंगहीन किन्तु वायु में आने पर भूरा या काला हो जाता है।


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भूरी शैवाल में भोजन का संचय (food storage in brown algae)

इसमें संचित भोजन लेमिनेरियन स्टार्च (laminarin starch) तथा मेनिटोल (mannitol) होता है।

इसमें संचालन नलिकाएँ (Conducting tubes) होती है जो भोजन को लेमिना से हॉल्डफास्ट में स्थानान्तरित करती है, इनको ट्रम्पेट हाइफी (trumpet hyphae) कहते है।  ये बड़ी भूरी शैवालों या केल्प्स में उपस्थित होती हैं।

 

भूरी शैवाल में जनन (reproduction in brown algae)

कायिक प्रजनन (Vegetative reproduction) विखण्डीकरण / fragmentation (उदाहरण सारगेसम), अपस्थानिक शाखाओं / adventitious branches, स्टोलोन / stolons (उदाहरण डिक्टियोटा) आदि द्वारा होता है।

अलैंगिक जनन चल बीजाणुओं तथा अचल बीजाणुओं की सहायता से होता है। चल बीजाणु नाशपाती की आकृति के होते हैं, जिनमें दो हेटेरोकॉन्ट कशाभिका (heterokont flagellat) यानि अलग अलग आकार की कशाभिका होती है। ये पार्श्वीय रूप से अर्न्तवेशित होते हैं।

बीजाणु का उत्पादन जिस धानी में होता है, उनको बीजाणुधानी या स्पोरेन्जिया (sporangia) कहते है। फीयोफाइसी में स्पोरेन्जिया विभिन्न प्रकार के होते है जैसे –

  1. एक पालित बीजाणुधानी / युनिलॉक्युलर स्पोरेन्जिया (Unilocular sporangia): इस प्रकार के स्पोरेन्जिया में द्विकशाभिक जूस्पोर अर्द्धसूत्री रूप से उत्पन्न होते हैं। ये जूस्पोर अंकुरण पर अगुणित पादप या युग्मकोदभिद उत्पन्न करते हैं।
  2. बहु पालित बीजाणुधानी / प्ल्युरिलोक्युलर या उदासीन स्पोरेन्जिया (Plurilocular or neutral sporangia) : ये बहुकोशिकीय स्पॉरेन्जिया द्विगुणित पादप पर उत्पन्न होते हैं। जूस्पोर पर द्विगुणित पादप उत्पन्न करते हैं।

फीयोफाइसी में  लैंगिक जनन समयुग्मकी (isogamy), असमयुग्मकी (anisogamy ) तथा विषमयुग्मकी (oogamy)  प्रकार का होता है।

आइसोगेमी तथा एनआइसोगेमी में दोनों युग्मक हेटेरोकॉन्ट कशाभिकीकरण युक्त चल होते हैं।

ऊगेमी में नर युग्मक चल तथा मादा युग्मक अचल होते हैं।

 

पीढ़ी का आइसोमॉर्फिक पीढ़ी एकान्तरण कुछ शैवालों में पाया जाता है, उदाहरण एक्टोकार्पस, डिक्टियोटा। इसमें अगुणित तथा द्विगुणित पीढ़ियाँ उपस्थित होती है, तथा संरचना में समान होती है।

अनेक भूरी शैवालों में द्विगुणित पीढ़ी प्रभावी होती है। अगुणित पीढ़ी युग्मकों द्वारा प्रदर्शित होती है, उदाहरण फ्युकस तथा सारगेसम। पीढ़ी का हेटेरोमॉर्फिक एकान्तरण लेमिनेरिया में पाया जाता है।

 

भूरी शैवालों का आर्थिक महत्व (Economic importance of brown algae)

फ्युकस तथा लेमिनेरिया आयोडिन का प्रचुर स्त्रोत है।

मेक्रोसिस्टिस तथा नीरीयोसिस्टिस में पोटाश अत्यधिक होता है।

कुछ देशों में अनेक भूरी शैवाल भोजन के रूप में उपयोग होती है, उदाहरण लेमिनेरिया (कॉम्बु), मेक्रोसिस्टिस, सारगेसम तथा एलेरिया (सेरूमेन)।

भूरी शैवालों से एल्जिनिक अम्ल प्राप्त होता है। उदाहरण नीरीयोसिस्टिस, मेक्रोसिस्टिस, लेमिनेरिया,  फ्युकस, सारगेसम एल्जिनिक अम्ल तथा इसके लवण इमलसन बनाने में उपयोगी है। जिनका उपयोग टूथपेस्ट, आइसक्रीम, मलहम, सौन्दर्य प्रशाधन जैसे क्रीम, शैम्पू आदि में होता है।


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हरी शैवाल (Green algae)  क्लोरोफाइसी (Chlorophyceae)

क्लोरोफाइसी (Chlorophyceae)  की अधिकांश जातियाँ अलवण जलीय होती है। कुछ जातियाँ समुद्री होती है, जैसे एसीटाबुलेरिया Acetabularia ( यह सबसे बड़ी पादप कोशिका है), कोलेर्पा (Caulerpa) , कोडियम (Codium), अल्वा (Ulva)।

कोशिका भित्ति के आंतरिक परत सेल्युलॉज तथा बाहरी परत पेक्टोज की बनी होती है।

प्रकाश संश्लेषी वर्णक उच्चतर पादपों के पर्णहरित a, b केरोटीन तथा जैन्थोफिल समान होते हैं।

हरी शैवाल में भोजन का संचय (Green algae)

भोजन का संचय स्टार्च के रूप में होता है। हरितलवक में स्टार्च के संग्रहण के लिए एक या अनेक पाइरेनॉइड (Pyrenoids) होते हैं।

पाइरेनॉइड (Pyrenoids) में केंद्र में प्रोटीन होता जो स्टार्च के द्वारा घिरा रहता है।

इसमें हरितलवक अनेक आकृतियों में होता है, जैसे-

  1. सर्पिलाकार (Spiral) – स्पाइरोगायरा (Spirogyra)
  2. ताराकार (Star shaped) – जिग्नीमा (Zygnema)
  3. जालिकावत (Reticulate) – ईडोगोनियम (Oedogonium)
  4. कपाकार (Cup shaped) – क्लेमाइडोमोनास (Chlamydomonas)
  5. मेखलाकार या घोड़े की नाल आकृति (Girdle / Horse shoe shaped) – युलोथ्रिक्स (Ulothrix)
  6. डिस्कॉइड (Discoid) – क्लोरेला (Chlorella)

 

हरी शैवाल में जनन (reproduction in green algae)

कायिक प्रजनन खण्डीकरण द्वारा होता है।

अलैंगिक प्रजनन कशाभिक बीजाणुओं द्वारा होता हैं सामान्य अलैंगिक संरचनाएँ जूस्पोर, एप्लेनोस्पोर, हिप्नोस्पोर, एकाइनीट्स ऑटोस्पोर है।

लैंगिक प्रजनन लैंगिक कोशिकाओं के प्रकार तथा निर्माण में विभिन्नताएँ दर्शाता है। इन विधियों में आइसोगेमी, एनआइसोगेमी तथा ऊगेमी सम्मिलित है।

हरी शैवालों में तीन प्रकार के जीवन चक्र में सुविकसित बहुकोशिकीय अगुणित तथा द्विगुणित थैलस होता है। यह बीजाण्विक अर्द्धसूत्रण द्वारा अभिलक्षित होता है, उदाहरण अल्वा, क्लेडोफोरा।

 

हरी शैवाल का आर्थिक महत्व (economic importance of green algae)

कोडियम तथा अल्वा (समुद्री लेट्युस) शूष्कन तथा लवणीकरण के बाद यूरोपीयन देशों में सलाद या सब्जी के रूप में उपयोग होते हैं।

क्लोरेला पाइरेनॉइडोसा (अन्तरिक्ष शैवाल) भोजन, ऑक्सीजन, तथा CO2 के अन्तरिक्ष में डिस्पोजल के लिए एक्जोबायोलॉजिस्ट (exobiologists) द्वारा उपयोग किया जाता है।

सीफेल्यूरॉस वरसेन्स (Cephaleuros virescence) परजीवी हरी शैवाल है, जो चाय में रेड रस्ट रोग (red rust of tea) उत्पन्न करता है।

 

इन्हें भी पढ़ें

  1. ब्रायोफाइट (Bryophyte) पादपो का सामान्य परिचय एवं जीवन चक्र (General Introduction and Life Cycle of Bryophyte Plants in Hindi)
  2. टेरिडोफाइट पादपो का सामान्य परिचय एवं विशिष्टता (General Introduction and Characteristics of Pteridophyta Plants)
  3. संघ पोरिफेरा या स्पंज का संघ (Phylum-Porifera or Sponge Hindi)
  4. संघ सीलेन्ट्रेटा या नाइडेरिया (Phylum – Coelenterata or Cnidaria in Hindi)
  5. Phylum संघ – टीनोफोरा

 

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