प्रकाश संश्लेषण की खोज में विभिन्न वैज्ञानिकों का योगदान

प्रकाश संश्लेषण की खोज में विभिन्न वैज्ञानिकों के द्वारा योगदान निम्न प्रकार है-

(1) स्टीफन हेल्स (Stephan Hales, 1727)

सर्वप्रथम सिद्ध किया कि वायु तथा प्रकाश के गैसीय घटक पादप शरीर को बनाने करने के लिए सहयोग करते हैं। स्टीफन हेल्स (Stephan Hales) को पादप कार्यिकी का जनक (Father of plant physiology) कहा जाता है।

(2) जोसेफ प्रिस्टले (Joseph Priestley) (1772)

निष्कर्ष दिया कि पादप जीवों द्वारा मुक्त अशुद्ध वायु को शुद्ध करते हैं।

जोसेफ प्रिस्टले 1770 में प्रयोगों की एक श्रृंखला पर कार्य किया जो कि हरे पादपों की वृद्धि में वायु के महत्वपूर्ण योगदान को प्रदर्शित करता है। 1774 में प्रिस्टले ने ऑक्सीजन की खोज की थी।

प्रिस्टले ने अवलोकन किया कि एक जलती हुई मोमबत्ती को बेलजार में रखते है तो ये शीघ्र बुझ जाती है। इसी प्रकार, एक चूहे को जलती हुई मोमबत्ती के साथ बेलजार में रखते है तो मोमबत्ती बुझ बुझ जाती है और चूहा शीघ्र ही दम घुटने के कारण मर जायेगा। उसने निष्कर्ष निकाला कि जलती हुयी मोमबत्ती या एक जन्तु जो कि वायु श्वसन करते हैं, दोनों ही किसी कारण से वायु की हानि करते हैं।

प्रकाश संश्लेषण की खोज में विभिन्न वैज्ञानिकों का योगदान

प्रकाश संश्लेषण की खोज में विभिन्न वैज्ञानिकों का योगदान

किन्तु जब उसने एक पुधीना के पौधे को बैलजार में जलती हुई मोमबत्ती तथा चूहे के साथ रखा, तब उसने पाया कि चूहा जीवित था तथा मोमबत्ती लगातार जल रही थी। प्रिस्टले परिकल्पना के अनुसार है: पादप उस वायु को पुनः शुद्ध करता है जो जीव के श्वसन तथा मोमबत्ती के जलने से मुक्त होती है।

(3) जॉन इन्जेन-हाऊस (Jan Ingenhousz, 1779)

उल्लेखित किया कि सूर्य के प्रकाश में हरी पत्तियां अत्यधिक ऑक्सजनीय वायु देती है तथा अंधेरे में ये हरा भाग की अधिकता वाली वायु देता है तथा वायु को अशुद्ध बनाता है। प्रकाश-संश्लेषण  में सूर्य के प्रकाश की आबश्यकता बताई।

(4) जीन सिनेबियर (Jean Senebier, 1782)

खोज की कि हरे पौधे कार्बन डाइऑक्साइड का उपयोग करते हैं। यह प्रकाश-संश्लेषण की खोज में एक प्रमुख तथ्य था।

(5) एन.टी.डी. सेसर (N.T. de Saussure, 1804)

सिद्ध किया कि उपयुक्त कार्बन डाई ऑक्साइड का आयतन मुक्त ऑक्सीजन के आयतन के बराबर होता है। उसने यह भी दर्शाया कि प्रकाश-संश्लेषण में जल मूलभूत आवश्यकता है।

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(6) जे. आर. मेयर (Julius Robert Von Mayer,1845)

यह विचार प्रस्तावित किया कि प्रकाश संश्लेषण के दौरान प्रकाश-ऊर्जा को रासायनिक-ऊर्जा में परिवर्तित किया जा रहा है।

(7) जूलियस वॉन सेक्स (Julius von Sachs) (1854)

पाया कि पादपों में हरे भाग जहां ग्लूकोज बनता है तथा ग्लूकोज सामान्यतया स्टार्च के रूप में जमा होता है।

(8) टी. डब्ल्यू. इन्जैलमैन (T.W. Engelmann, 1873)

क्लेडोफोरा तथा स्पाइरोगाइरा पर प्रयोग किये। उसने प्रकाश को इसके घटकों में विभाजित करने के लिए एक प्रिज्म का उपयोग किया तथा वायवीय जीवाणु के निलम्बन में रखी हरी शैवाल को प्रकाशित किया। उन्होंने विघटित स्पेक्ट्रम के नीले तथा लाल प्रकाश के क्षेत्र में जीवाणु के संचयन का अवलोकन किया। अतः इस प्रकार उन्होंने प्रकाश-संश्लेषण के प्रथम क्रिया स्पेक्ट्रम का वर्णन किया।

(9) एफ. एफ. ब्लेकमेन (F.F. Blackman, 1905)

अवलोकित किया कि प्रकाश-संश्लेषण का प्रक्रम दो पदों में होता है: एक प्रकाश-रसायन क्रिया जो कि केवल प्रकाश की उपस्थिति में होती है तथा एक अप्रकाशीय क्रिया जिसके लिए प्रकाश आवश्यक नहीं होता है। इसके अतिरिक्त, उन्होंने सीमाकारी कारक का नियम (law of limiting factor) भी प्रतिपादित किया।

(10) सी. बी. वान नील (Van Niel, 1930)

उनके बैंगनी तथा हरे सल्फर जीवाणु पर अध्ययन के आधार पर प्रदर्शित किया कि हाइड्रोजन उचित ऑक्सीकारी यौगिकों से मुक्त होती है, कार्बोहाइड्रेटों से CO2 अपचयित करती है तथा प्रस्तावित किया कि जल O2 का स्रोत है। प्रकाश संश्लेषण में निकलने वाली ऑक्सीजन जल से प्राप्त होती है

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(11) राबर्ट हिल (Robert Hill, 1937)

स्टीलेरिया मीडिया पर प्रयोग करके प्रदर्शित किया कि सूर्य के प्रकाश, जल तथा एक उचित हाइड्रोजन ग्राही की उपस्थिति में, विलगित हरितलवक ऑक्सीजन मुक्त करते हैं, यद्यपि यदि कार्बन डाईऑक्साइड अनुपस्थित है।

यह प्रयोग प्रकाश क्रिया के समतुल्य माना गया है। हिल ऑक्सीकारक हाइड्रोजन ग्राही हैं। प्रकाश-संश्लेषण में फेरीसायनाइड, बेन्जोक्विनॉन तथा डाईक्लोरोफीनॉल इन्डोफीनॉल (DCPIP, dichlorophenol indophenol) एक समान हैं जबकि NADP+  प्राकृतिक H+ ग्राही है।

(12) हिल तथा बेन्डाल(Hill and Bendall, 1937)

प्रकाश क्रियाओं की पद्धति को प्रस्तावित किया।

(13) रूबेन, हासिद तथा कामेन (Ruben, Hassid and Kamen, 1941)

रेडियोएक्टिव ऑक्सीजन (O18) का उपयोग किया तथा निश्चित किया कि प्रकाश-संश्लेषण में ऑक्सीजन का स्रोत जल है।

(14) मेल्विन केल्विन (Melvin Calvin, 1954) तथा उनके सहयोगियों

C14O2 का उपयोग कर कार्बन डाई ऑक्साइड का कार्बोहाइड्रेटों में परिवर्तन में सम्मिलित कई अभिक्रियाओं की खोज की। इन अभिक्रियायों को संयुक्त रूप से C3 चक्र या केल्विन चक्र के रूप में जाना गया। उसे इस कार्य के लिए 1961 में नोबल पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

 

(15) डेनियल अर्नोन (Daniel Arnon, 1954)

प्रकाश संश्लेषी फास्फारिलीकरण (photophosphorylation) की खोज की।

(16) एम. डी. हेच तथा सी. आर. स्लेक (M.D. Hatch and C.R. Slack, 1966)

बहुत से उष्णकटिबन्धीय पौधों में प्रकाशसंश्लेषित CO2 के समावेशीकरण में सम्मिलित क्रियाओं की नई श्रृंखला की खोज की। इन पादपों में प्रकाशसंश्लेषी प्रक्रम में पहला स्थायी यौगिक एक 4.कार्बन यौगिक है, इसलिए क्रियाओं की इस श्रृंखला को C4 चक्र के रूप में जाना जाता है।

(17) पीटर डी मिशेल (Peter D. Mitchell)

रसायन परासरणी सिद्धांत (Chemiosmotic Theory) दिया।

(18) पैलेटियर तथा कैवेन्टन (Pelletier and Caventou)

पत्तियों में उपस्थित हरे रंग के पदार्थ को क्लोरोफिल नाम दिया।

(19) वारबर्ग (Warburg)

क्लोरेला पर प्रयोग किया।

(20) इमरसन तथा आरनॉल्ड (Emerson and Arnold)

प्रयोगों की मदद से ज्ञात किया कि प्रकाश-संश्लेषण की प्रकाश क्रिया में दो स्पष्ट प्रकाश-रसायन प्रक्रम होते हैं।

(21) हूबर तथा इनके सहयोगियों (Huber et. al)

रोडोस्यूडोमोनास विरिडिस जीवाणु की अभिक्रिया केन्द्र की त्रि आयामी संरचना का अध्ययन किया तथा नोबल पुरस्कार प्राप्त किया।

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  1. ग्लाइकोलाइसिस – ग्लुकोज का विखण्डन पथ
  2. क्रेब्स चक्र, सिट्रिक अम्ल चक्र या ट्राइकार्बोक्सिलिक अम्ल (TCA) चक्र
  3. श्वसन की क्रियाविधि
  4. हेक्सोस मोनोफॉस्फेट शंट (HMP पथ)
  5. श्वसन गुणांक (R.Q.)
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Hamid Ali
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