जीवोम (बायोम) एक बड़े पैमाने के भौगोलिक क्षेत्र (large-scale geographic area) को दर्शाता करता है जो विशिष्ट जलवायु, वनस्पति और पशु जीवन की विशेषता रखता है। यह एक प्रमुख पारिस्थितिक समुदाय या पारिस्थितिकी तंत्र है जो तापमान, वर्षा, ऊंचाई और मिट्टी के प्रकार जैसे कारकों से आकार लेता है।
बायोम वनस्पतियों और जीवों का एक विशाल संयोजन है जो एक विशेष जलवायु के लिए अनुकूलित होता है। पांच प्रमुख प्रकार के बायोम जलीय (aquatic), घास के मैदान (grassland), जंगल (forest), रेगिस्तान ( desert) और टुंड्रा (tundra) हैं। हालाँकि, इन श्रेणियों को और अधिक विशिष्ट वर्गीकरणों में विभाजित किया जा सकता है, जैसे मीठे पानी, समुद्री, सवाना, उष्णकटिबंधीय वर्षावन, समशीतोष्ण वर्षावन और टैगा।
Major Biomes of India भारत के मुख्य जीवोम
प्रत्येक बायोम विशिष्ट विशेषताओं को प्रदर्शित करता है और इसकी पर्यावरणीय परिस्थितियों के लिए विशिष्ट रूप से अनुकूल जीवों की एक विविध श्रृंखला का समर्थन करता है।
भारत के बायोम को निम्नलिखित भागों में विभक्त किया जा सकता है-
उष्ण कटिबंधीय वर्षा वन (Tropical Rain forests)
भारत में उष्ण कटिबंधीय वर्षा वन मुख्यतः पश्चिमी घाट के किनारे एवं उत्तरी-पूर्वी हिमालय में पाये जाते हैं। इनमें सभी जीवोम की तुलना में सर्वाधिक स्थिर शस्य जैवभार निहित रहता है।
इन क्षेत्रों में भारी वर्षा होती है और इनमें विभिन्न प्रकार के पौधों और जानवरों की प्रजातियों के साथ उच्च जैव विविधता पायी जाती है।
इस क्षेत्र में 23-27°C औसत वार्षिक तापमान एवं 200 -350cm वर्षा होती है। इस प्रकार के वनों की मृदा अत्यधिक (निक्षालन) घुलकर बह जाती है एवं इसमें क्षार की मात्रा कम होती है। इसलिए मृदा में पोषक तत्व का जमाव कम होता है।
भारतीय वर्षा वनों में सबसे सामान्य रूप से पाये जाने वाली पेड़ की जाति डिप्टेरोकार्पस एवं होपिआ है। ये पेड़ लगभग 30-40 मीटर लम्बे होते हैं।
पुश्ता या वप्ररूप (ऊँचे वृक्षों के तने का भूमि के पास कॉफी चौड़ा होना) एवं पर्ण ड्रिप झुकना सामान्य है। जंगली लताएं एवं अधिपादप इन वनों में अधिकता से उगे रहते हैं।
Source- NCERT Book/ Major Biomes of India भारत के मुख्य जीवोम
उष्ण कटिबंधीय पर्णपाती वन (Tropical Deciduous forests)
ये मैदानों एवं निम्न पहाड़ी क्षेत्रों में भारत के उत्तरी एवं दक्षिणी भागों में पाये जाते हैं। इस क्षेत्र में 22-32°C औसत वार्षिक तापमान एवं 90-160cm वर्षा होती है।
इन वनों के सामान्य वृक्ष सॉल, टीक, तेन्दु, खैर एवं चिरौंजी है। ये वन 10-20m की ऊंचाई वाले होते है। वर्षा ऋतु के दौरान ये वन सघन पर्ण युक्त गहरे हरे रंग के होते हैं, जबकि ग्रीष्म ऋतु में बहुधा वृक्ष पर्ण विहीन हो जाते हैं।
इन वनों की मृदा कम निक्षालन के कारण पोषक तत्वों से भरपूर होती है।
मरूस्थल (Desert)
इन जीवोम में वनस्पति तापमान की तीव्रता एवं अत्यधिक कम वर्षा (10 सेमी से कम) के कारण अधिक अपर्याप्त या फैली हुयी होती है।
इस क्षेत्र में 5-25°C माध्य वार्षिक तापमान एवं 10 सेमी से कम की माध्य वार्षिक वर्षा की आवश्यकता होती है।
गर्म मरूस्थल को वाष्पीकरण-वाष्पोत्सर्जन एवं शुक्लता की उच्च दर के द्वारा अभिलक्षित किया जाता है। ठण्डे मरूस्थलों में स्थितियां कार्यिकीय दृष्टि से शुष्कता की होती है एवं ये स्थायी तुषार (परमाफ्रोस्ट) दर्शाते हैं, जबकि गर्म मरूस्थलों में स्थितियां प्राकृतिक/भौतिक रूप से शुष्कता की होती है।
भारतीय मरूस्थल के महत्वपूर्ण वृक्ष प्रोसोपिस सिनेरेरिया, अकेशिया स्पी. एवं टेमेरिक्स स्पी. है। सामान्य मांसलोद्भिद यूफोर्बिया की जातियां एवं कैक्टेसी कुल के कई सदस्य है। सेन्क्रस इन जीवोम की एक प्रचुर मात्रा की घास है।
नोट – लद्दाख के ट्रांस-हिमालयी क्षेत्र और हिमाचल प्रदेश के कुछ हिस्सों में बंजर परिदृश्य, चट्टानी इलाके और अत्यधिक ठंडा तापमान होता हैं। इसे उच्च ऊंचाई वाले ठंडे रेगिस्तान (High-altitude Cold Desert) कहते है। Major Biomes of India भारत के मुख्य जीवोम
तटीय जीवोम (Coastal/Marine Biome)
तटीय क्षेत्र समुद्री एवं स्थलीय आवासों के मध्य पारगमन के क्षेत्र होते हैं, इसलिए अति संवेदनशील होते हैं। ये अपरद आधारित जीवोम होते हैं, जहाँ पादपों को लवणता एवं जलाक्रान्त स्थितियों के लिए अनुकूलित होना पड़ता है।
मैंग्रोव लवणीय कच्छ या दलदल के साथ मुख्य प्रकार है। विशेष रूप से पश्चिम बंगाल के सुंदरवन और गुजरात और अंडमान और निकोबार द्वीप समूह के कुछ हिस्सों में, मैंग्रोव वन पाए जाते हैं।
मैंग्रोव को न्यूमेटोफोर (श्वसन मूल) की उपस्थिति एवं सजीवप्रजक बीज अंकुरण के द्वारा अभिलक्षित किया जाता है। सामान्य उदाहरण राइजोफोरा, सोनेरेशिया, एवीसीनिया एवं लैगुन्कुलेरिया है। इसके अतिरिक्त फोएनिक्स, पान्डेनस एवं कैजुराइना भी तटीय क्षेत्रों में सामान्य रूप से पाये जाते हैं।
शीतोष्ण पृथुपर्णी (चौड़े पत्ते) वन (Temperate Broad Leaf Forests)
हिमालय पर्वत श्रृंखलाओं में 1500 से 2400 मीटर के मध्य की ऊँचाई पर पाये जाते हैं। पश्चिमी हिमालय में ऑक की जातियां प्रभावी होती हैं। उदाहरण – क्यूरकस क्लोरीबण्डा, क्यूरकस लेनुजिनोस आदि।
इस क्षेत्र में 6-20°C माध्य वार्षिक तापमान एवं 100-250cm की माध्य वार्षिक वर्षा होती है। ग्रीष्मकाल के द्वारा तीव्र पर्ण पतन (पतझड़ी) दर्शाते हैं लेकिन कभी भी पर्णहीन नहीं होते हैं।
ये 25-30m ऊँचाई के साथ चार स्तरीय होते हैं एवं अधिपादप वनस्पति में समृद्ध होते हैं। शाकीय स्तर कम विकसित होता है एवं घास प्रायः अनुपस्थित होती है।
शीतोष्ण शंकुवृक्षी वन (Temperate Needle Leaf or Coniferous Forest)
ये क्षेत्र 1700-3000 मीटर ऊँचाई पर स्थित होते है। इसके अंतर्गत कश्मीर, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड आते है। इस क्षेत्र में 6-15°C माध्य वार्षिक तापमान एवं 50-170cm की माध्य वार्षिक वर्षा की आवश्यकता होती है।
यहाँ सदाहरित आवरण लम्बे वृक्ष (30-35m) पाए जाते है। इन वनों में आर्थिक दृष्टि से मूल्यवान अनावृत्तबीजी वृक्ष, पाइन (पाइनस, वालीचियाना), देवदार (सेड्रस देवदार), सीप्रस (क्यूप्रीसस टॉरूलोसा); स्प्रूस (पाइसिया स्मिथीयाना); सिल्वर फर (एबीज पिन्ड्रो) प्रधान है।
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