गुरुबीजाणुजनन एवं भूर्णकोष

Megasporogenesis and Embryo sac

गुरुबीजाणुजनन एवं भूर्णकोष (Megasporogenesis and Embryo sac)

गुरुबीजाणुजनन वह जैविक प्रक्रिया है जिसमें गुरुबीजाणुमातृ कोशिका (Megaspore Mother Cell) से गुरुबीजाणु (megaspore) बनते हैं और अंततः एक पूर्ण विकसित भूर्णकोष (embryo sac) का निर्माण होता है। यह प्रक्रिया पुष्पीय पौधों (angiosperms) में यौन प्रजनन का अनिवार्य और केंद्रीय चरण है। नीचे इस प्रक्रिया का क्रमबद्ध, चरण-दर-चरण और विस्तृत विवेचन दिया गया है, जिसमें संरचना, प्रकार, महत्त्व और परिणाम शामिल हैं।

परिचय — मूलभूत अवधारणा

अंडाशय (ovary) के अंदर मौजूद बीजाण्ड (ovule) में विकसित होने वाली वह कोशिका जो द्विगुणित (diploid, 2n) होती है — उसे गुरुबीजाणुमातृ कोशिका कहा जाता है। यह कोशिका meiosis प्रक्रियाके माध्यम से चार हैप्लोइड (n) गुरुबीजाणु बनाती है। इन चारों में से अधिकांश मामलों में तीन गुरुबीजाणु अपघटित हो जाते हैं और केवल एक जीवित गुरुबीजाणु आगे जाकर भूर्णकोष का निर्माण करता है — इस प्रकार का विकास एकबीजाणुज (monosporic) कहते हैं।

गुरुबीजाणुजनन की चरणबद्ध प्रक्रिया

1. गुरुबीजाणुमातृ कोशिका का निर्माण

पुष्प के बनने के समय अंडाशय की परतों के भीतर बीजाण्ड बनते हैं। हर बीजाण्ड के भीतर एक विशेष बड़ी द्विगुणित कोशिका बनती है जिसे गुरुबीजाणुमातृ कोशिका कहा जाता है। यह कोशिका विभाजन शुरू करने से पहले पर्याप्त साइटोप्लाज्म और संख्यात्मक न्यूक्लियर सामग्री इकट्ठा कर लेती है।

2. अर्द्धसूत्री विभाजन (Meiosis)

गुरुबीजाणुमातृ कोशिका मेयोसिस से गुजरती है — इस अर्द्धसूत्री विभाजन के परिणामस्वरूप चार हैप्लोइड गुरुबीजाणु बनते हैं। ये चार गुरुबीजाणु रैखिक क्रम (linear tetrad) में व्यवस्थित होते हैं, जिसे गुरुबीजाणु चतुष्क (megaspore tetrad) कहा जाता है।

3. तेट्राड से एक कार्यशील गुरुबीजाणु

बहुत सी प्रजातियों में इन चारों में से केवल एक (अधिकतर निभाग/chalaza की ओर वाला) जीवित रहता है; बाकी तीन अपघटित हो जाते हैं। इस जीवित गुरुबीजाणु से भूर्णकोष का विकास होता है — इस प्रक्रिया को एकबीजाणुज विकास (monosporic development) कहते हैं।

4. माइटोटिक विभाजन और आठ-नाभिकीय अवस्था

कार्यशील गुरुबीजाणु कई बार माइटोसिस करता है (आमतौर पर तीन बार) और परिणामस्वरूप आठ केंद्रक (nuclear) या नाभिक बनते हैं। इन आठ नाभिकों का स्थानांतरण और विभाजन करके 7 कोशिकाओं वाली संरचना बनती है — यही पूर्ण विकसित भूर्णकोष (embryo sac) है, जिसमें कुल 8 नाभिक और 7 कोशिकाएँ होती हैं।

Megasporogenesis and Embryo sac

भूर्णकोष (Embryo Sac) — संरचना और कोशिकाएँ

पूर्ण विकसित भूर्णकोष में कोशिकाएँ और नाभिक इस प्रकार व्यवस्थित होते हैं:

  • अंड उपकरण (Egg apparatus) — बीजाण्डद्वार (micropyle) की ओर स्थित तीन कोशिकाएँ: दो सहायक कोशिकाएँ (synergids) और एक अंड कोशिका (egg cell).
  • प्रतिव्यसांत कोशिकाएँ (Antipodal cells) — निभाग (chalaza) की ओर स्थित तीन कोशिकाएँ, जो अक्सर अल्पजीवी होती हैं और निषेचन के बाद अपघटित हो सकती हैं।
  • केन्द्रीय कोशिका (Central cell) — मध्य में दो ध्रुवीय नाभिक (polar nuclei) होते हैं, जो मिलकर द्विगुणित द्वितीयक नाभिक (secondary nucleus) बनाते हैं और निषेचन के बाद त्रिगुणित भूर्णपोष (endosperm) का निर्माण करते हैं।

अंड कोशिका (Egg cell)

अंड कोशिका की संख्या एक होती है। निषेचन के समय यह नर युग्मक (male gamete) से मिलकर द्विगुणित भ्रूण (embryo, 2n) बनाती है — यही पश्चात्पल के विकास की मूल इकाई है।

सहायक कोशिकाएँ (Synergids)

दो सहायक कोशिकाएँ अंड कोशिका के दोनों ओर होती हैं। इनका कार्य परागनलिका (pollen tube) को मार्गदर्शित करना और बीजाण्डकाय से पोषक तत्वों का अवशोषण सुनिश्चित करना है। सहायक कोशिकाएँ रसायनों का स्राव करती हैं जो परागनलिका को आकर्षित करते हैं।

प्रतिव्यसांत कोशिकाएँ (Antipodal cells)

निभाग की ओर स्थित ये तीन कोशिकाएँ अक्सर अल्पजीवी होती हैं और इन्हें पौधे के प्रकार के आधार पर अलग-अलग भूमिका दी जाती है — कुछ प्रजातियों में वे पोषण संबंधी गतिविधियों में संलग्न रहती हैं।

केन्द्रिक कोशिका (Central cell / Polar nuclei)

दो ध्रुवीय नाभिक मिलकर केंद्रीय कोशिका बनाते हैं। निषेचन के दौरान एक नर युग्मक इन ध्रुवीय नाभिकों से मिलकर ट्रिप्लॉइड (3n) एंडोस्पर्म बनाता है — यह द्विगुणित निषेचन (double fertilization) की विशिष्ट घटना है जो केवल आवृतबीजियों में पायी जाती है। एंडोस्पर्म भ्रूण के विकास के लिए पोषकांश प्रदान करता है।

गुरुबीजाणुजनन के प्रकार

गुरुबीजाणुजनन के आधार पर भूर्णकोष विकास के प्रकार विभक्त होते हैं — विशेषकर यह इस बात पर निर्भर करता है कि कितने गुरुबीजाणु कार्यशील रहते हैं और उनकी माइटोटिक गतिविधि कैसी है। प्रमुख प्रकार:

  • Monosporic (एकबीजाणुज) — केवल एक गुरुबीजाणु से भूर्णकोष बनता है; यह सबसे सामान्य प्रकार है (उदा. Polygonum type)।
  • Bisporic (द्विबीजाणुज) — दो गुरुबीजाणु मिलकर भूर्णकोष बनाते हैं।
  • Tetrasporic (चतुष्कबीजाणुज) — चारों गुरुबीजाणु कार्यशील रहते हैं और संयुक्त रूप से भूर्णकोष बनाते हैं।

विकास का श्रेणीबद्ध सारांश (Flow summary)

गुरुबीजाणुमातृ कोशिका (2n) → (Meiosis) → गुरुबीजाणु चतुष्क (n, n, n, n) → (तीन अपघटित) → एक जीवित गुरुबीजाणु (n) → (माइटोटिक विभाजन) → आठ नाभिकीय अवस्था → (विन्यास) → भूर्णकोष (7 कोशिकाएँ, 8 नाभिक)

भूर्णकोष का जैविक महत्व एवं भूमिका

  • यौन प्रजनन में केंद्रीय भूमिका: अंड कोशिका और ध्रुवीय नाभिक की निषेचन क्रिया से भ्रूण और एंडोस्पर्म का निर्माण होता है।
  • द्विगुणित निषेचन (Double fertilization): एक नर युग्मक अंड कोशिका से मिलकर भ्रूण बनाता है, तो दूसरा नर युग्मक ध्रुवीय नाभिकों से मिलकर एंडोस्पर्म बनाता है—यह एक विशिष्ट और महत्वपूर्ण प्रक्रिया है।
  • एंडोस्पर्म: वे पोषक तत्व प्रदान करता है जो बीज के अंकुरण और प्रारम्भिक भ्रूण विकास के लिए आवश्यक होते हैं।
  • आनुवंशिक विविधता: मेयोसिस के कारण उत्पन्न विविधताएँ पौधों की अनुकूलन क्षमता बढ़ाती हैं।

प्रयोगिक और शोध संबंधी उपयोग

गुरुबीजाणुजनन और भूर्णकोष की संरचना का अध्ययन बॉटनी, पालेनियोलॉजी, प्लांट ब्रिडिंग, जीनोमिक्स और विकासात्मक जीवविज्ञान में उपयोगी होता है। भूर्णकोष के प्रकार और विकास पैटर्न का उपयोग पौधों के वर्गीकरण और विकासशास्त्र में भी किया जाता है।

प्रश्नोत्तर (FAQ) — संक्षेप में

प्रश्न: क्या प्रत्येक बीजाण्ड में एक ही भूर्णकोष बनता है?
उत्तर: हाँ—आमतौर पर आवृतबीजियों (angiosperms) में एक बीजाण्ड में केवल एक भूर्णकोष विकसित होता है।
प्रश्न: भूर्णकोष में कुल कितनी कोशिकाएँ और नाभिक होते हैं?
उत्तर: परिपक्व भूर्णकोष में कुल 7 कोशिकाएँ और 8 नाभिक होते हैं।
प्रश्न: ध्रुवीय नाभिकों का क्या महत्व है?
उत्तर: ध्रुवीय नाभिक निषेचन के बाद एंडोस्पर्म बनाते हैं जो भ्रूण के लिए पोषण का मुख्य स्रोत होता है।

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