विषाणु या वायरस

Virus In Hindi विषाणु या वायरस की खोज, संरचना, प्रकार एवं उत्पन्न रोग

विषाणु की खोज (virus)

वायरस अविकल्पी अन्तः कोशिकीय परजीवी (obligate intracellular parasites) है। ये सजीव तथा निर्जीव के बीच मध्यवर्ती (intermediate between living and non living) होते हैं। 1892 में इवानवस्की (Iwanowsky) ने विषाणु की खोज की। सर्वप्रथम खोजा गया विषाणु TMV था। विषाणु शब्द लुई पाश्चर (Pasteur) द्वारा दिया गया। बीजेरिन्क (Beijerinck) ने विषाणु को कोन्टाजियम वाइवम फ्लुडम (जीवित संक्रामक द्रव्य) / Contagium vivum fluidum (living infectious fluid) कहा।

 

विषाणु की निर्जीव प्रकृति (Non living nature of virus)

  1. इसमें प्रोटोप्लास्ट (protoplast) का अभाव होता है, अर्थात इसमें कोई कोशिकांग (Cell Orgenelles) नहीं पाए जाते।
  2. इसमें क्रिस्टलिकृत (crystallized) होने की क्षमता होती है, उदाहरण पोलियोमाइलिटिस विषाणु, TMV। 1935 में स्टेनले (Stanley) ने TMV को क्रिस्टलीकृत किया।
  3. ये बिना किसी जीवित कोशिका के स्वतन्त्र रूप से जीवित नहीं रह सकते यानि इनमें कार्यात्मक शारिरिकी का अभाव होता है।
  4. ये उच्च विशिष्ट प्रवणता (High specific gravity) दर्शाते है, जो केवल निर्जिवों में पाई जाती है।
  5. इनमें श्वसन, ऊर्जा संग्रहण तंत्र, वृद्धि तथा विभाजन अनुपस्थित होता है।

 

विषाणु की सजीव प्रकृति (Living nature of virus)

  1. इनमें कार्बनिक वृहद् अणुओं (organic macromolecules) का निर्माण होता है।
  2. वायरस में आनुवंशिक पदार्थ (genetic material) होता है जो उत्परिवर्तन (mutations) भी दर्शाता है।
  3. कुछ विषाणुओं में एन्जाइम जैसे न्यूरेमिनिडेज, ट्रांसक्रिप्टेज तथा लाइसोजाइम होते हैं।
  4. विषाणु ऑटोक्लेविंग तथा पराबैंगनी किरणों द्वारा ‘‘मारे‘‘ जा सकते हैं।
  5. ये परपोषी कोशिका की जैवसंश्लेषी मशीनरी (biosynthetic machinery) ग्रहण करते हैं, तथा इनके बहुगुणन के लिए आवश्यक रसायन उत्पन्न करते हैं।
  6. इसमें संक्रमणता (Infectivity) तथा परपोषी विशिष्टता (host specificity) की क्षमता होती है।
  7. विषाणु अनेकों संक्रमित रोगों (infectious disease) के लिए उत्तरदायी है, जैसे सामान्य सर्दी, एपिडेमिक इनफ्लुएंजा, चिकन पॉक्स, मम्प्स, पोलियोमायलिटिस, रेबीज, हर्पीज, एड्स, सार्स आदि।

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विषाणुओं के संरचनात्मक घटक (Structural Components of Viruses)

आवरण (Envelope)

बाह्य पतला आवरण है, जो प्रोटीन, लिपिड तथा कार्बोहाइड्रेट के बने होते हैं, इसमें छोटी उपइकाईयाँ होती है, जिन्हे पेप्लोमर (peplomers) कहते हैं, आवरण की प्रोटीन विषाणु से और लिपिड तथा कार्बोहाइड्रेट दोनों परपोषी कोशिका से प्राप्त होते है ऐसे वायरस जिनमें आवरण पाया जाता है उन्हें आवरण विषाणु (Enveloped Virus) कहते है उदाहरण-हर्पीज विषाणु, भ्प्टए वेक्सिनिया विषाणु आदि।

यदि आवरण उपस्थित नहीं होते हैं, तो इन्हे नग्न विषाणु (Naked Virus) कहते हैं।

केप्सिड (Capsid)

यह बाह्य प्रोटीन आवरण है, जो उपइकाइयों का बना होता है, जिन्हे केप्सोमीयर (capsomeres) कहते हैं, इनकी संख्या विषाणु विशिष्ट होती है। इनमें एन्टिजेनिक गुण होते हैं।

आनुवंशिक पदार्थ ((genetic material))

आनुवंशिक पदार्थ के रूप में विषाणुओं में या तो DNA या RNA होता है। विषाणु में DNA तथा RNA दोनों नहीं होते हैं।

DNA युक्त विषाणु डीऑक्सीराइबोज वाइरस कहलाता है। ये दो प्रकार के होते हैं-

द्विरज्जुकी DNA (dsDNA) विषाणु

उदाहरण-पॉक्स विषाणु, फूल गोभी मोजेक विषाणु।

एकरज्जुकी DNA (ssDNA) विषाणु

उदाहरण कोलिफेज f ×174, M 13 अवस्था।

RNA युक्त विषाणु या राइबोवाइरस दो प्रकार के होते हैं।

द्विरज्जुकी RNA (ds RNA) विषाणु

उदाहरण-रीयोवाइरस, वाउण्ड ट्युमर विषाणु।

एकल रज्जुकी RNA (ss RNA) विषाणु

उदाहरण- TMV, इनफ्लुएन्जा विषाणु, पैर तथा मुख रोग विषाणु, रीट्रोवाइरस (HIV)।

 

 

तम्बाकू मोजेक विषाणु (TMV) की संरचना (Structure of the Tobacco Mosaic Virus, TMV)

यह 3000 Å लम्बा तथा 180Å व्यास वाला वाइरस है जो लम्बी छड़ समान समान होता है इसकी  प्रोटीन 39.4 × 106  डाल्टन आण्विक भार की होती है।

इसमें 2130 केप्सोमीयर हेलिकल रूप से व्यवस्थित होते हैं, तथा केप्सिड बनाते हैं। ssRNA की स्ट्रेण्ड हेलिकल होती है। ssRNA 6400 न्युक्लीयोटाइड्स तथा केप्सोमीयर का अनुपात 3 : 1 होता है।

 

 

जीवाणुभोजी की संरचना (structure of bacteriophage)

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ऐसे वायरस जो जीवाणु (bacteria) को संक्रमित करते हैं, जीवाणुभोजी (bacteriophage) कहलाते हैं।

इसमें बहुफलकीय शीर्ष (polyhedral head) युक्त टेडपोल समान संरचना होती है, जो हेलिकल पूँछ से जुड़ी होती है। इनका शीर्ष भाग न्यूक्लीक अम्ल (nucleic acid) का बना होता है, जो प्रोटीन आवरण या केप्सिड द्वारा घिरा होता है।

इसमें न्यूक्लीक अम्ल (nucleic acid) द्विरज्जुकी DNA (double stranded DNA) होता है। इसमें पूँछ होती जो प्रोटीन की बनी नलिका-समान होती है, केन्द्रिय भाग आच्छद द्वारा घिरा होता है।

एक सिरे पर पूंछ पतले कॉलर द्वारा शीर्ष से जुड़ी होती है, तथा दूसरे सिरे पर छः छोटी पिन्स तथा छः छोटे तन्तुओं युक्त हेक्जागोनल आधारी पट्टिका (hexagonal base plate) होती है। जो परपोषी कोशिका से फेज को जोड़ने में सहायक है।

 

 

उप विषाण्वीय कारक (Sub Viral Agents)

ये विषाणु के कण होते हैं, इनमें अनिवार्य घटक का अभाव होता है जैसे –

  1. वाइरॉइड्स (Viroids)
  2. विरूसॉइडस (Virusoids)
  3. प्रियॉन (Prions)

 

वाइरॉइड्स (Viroids)

ये डाईनर (Diener) द्वारा 1971 में खोजे गए थे ये वायरस से छोटे स्वप्रतिकृत (self replicating particles) कण होते हैं। वाइरॉइड्स में प्रोटीन आवरण नहीं होता केवल संक्रामक RNA कण होते हैं।

ये अविकल्पी परजीवी (obligate parasites) होते हैं। वाइरॉइड का आण्विक भार निम्न होता है। ये केवल पादपों में ही रोग करते हैं, उदा. आलू तर्कु कन्द रोग, क्राईसेन्थेमम स्टन्ट तथा सिट्रस एक्जोकॉर्टिस।

विरूसॉइड (Virusoids)

यह रेन्डल तथा सहयोगियों (Randle et. al) द्वारा खोजा गया, ये RNA विषाणु होते हैं, किन्तु अन्य बड़े विषाणु के केप्सिड के अन्दर होते हैं। ये परपोषी के अन्दर प्रतिकृत (replicate) होते हैं, तथा कोई संक्रमण नहीं करते हैं।

प्रियॉन (Prions)

यह एल्पर तथा सहयोगियों (by Alper et al) द्वारा खोजा गया। यह केवल वायरस प्रोटीन है जो संक्रामक होती हैं इससे रोग उत्त्पन्न होते है। जैसे- बोविन स्पॉन्जिफॉर्म एनसीफेलोपेथि (मेड काउ रोग), कुरू रोग (मानव में हास्य मृत्यु रोग), भेड़ में स्क्रेपी रोग, क्रूट्ज फेल्ड्ट जेकब रोग


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