क्रिस्टलों में निबिड़ संकुलन (Close packing in Crystals in Hindi)
किसी क्रिस्टलीय संरचना के बनते समय उसके अवयवी कणों की व्यवस्था इस प्रकार रहती है कि कणों के मध्य न्यूनतम स्थान रहे ताकि उच्चतम घनत्व व स्थाईत्व प्राप्त हो सके। इस प्रकार के संकुलन को निबिड़ संकुलन (close packing) कहते हैं।
इस प्रकार की संरचना में प्रत्येक अवयवी कण इतने अधिक से अधिक अवयवी कणों से घिरा रहता है जितने ज्यामितीय आधार पर उसके चारों ओर एकत्रित हो सके।
अवयवों के निबिड़तम संकुलन का प्रकार उनके आकार पर निर्भर करता है।
यहाँ हम केवल धातु क्रिस्टलों में परमाणुओं के संकुलन के प्रकारों का अध्ययन करेंगे क्योंकि धातु के सभी परमाणु एक जैसे होते हैं। धातु के परमाणुओं को एक पंक्ति में रखने पर निम्न संरचना प्राप्त होती है-
इस पहली पंक्ति को अन्य पंक्तियों से मुख्यतः दो प्रकार से मिलाया जाता है-
- वर्ग निबिड़ संकुलन (Square close packing)
- षट्कोणीय निबिड़ संकुलन (Hexagonal close packing)
1. वर्ग निबिड़ संकुलन (Square close packing)
इस प्रकार की व्यवस्था में अन्य पंक्ति को इस प्रकार पहली पंक्ति के ऊपर व नीचे रखा जाता है कि उनके अवयव एक दूसरे के ठीक ऊपर व नीचे होते हैं। इस प्रकार के संकुलन को वर्ग निबिड़ संकुलन कहते हैं।
इस प्रकार बनी एक परत पर जब दूसरी परत रखी जाती है तो दूसरी परत के अवयवी कण पहली परत के कणों के मध्य छूटे रिक्त स्थानों (voids) पर आते हैं। इस प्रकार दूसरी परत का प्रत्येक कण पहली परत के चार कणों को छूता है।
तीसरी परत दूसरी परत पर इस प्रकार रखी जाती है ताकि इसके कण पहली परत के कणों के ठीक ऊपर रहें। इस प्रकार दूसरी परत का प्रत्येक कण ऊपर व नीचे मिलाकर आठ कणों को छूता है। इस प्रकार की व्यवस्था काय केन्द्रित घन संरचना (bcc) कहलाती है।
इस संरचना में प्रत्येक अवयवी कण की समन्वय संख्या 8 होती है। इस प्रकार की व्यवस्था में अवयवी कण कुल आयतन का 68% भाग घेरे रहते हैं तथा 32% भाग रिक्त रहता है।
अतः संकुलन दक्षता (packing efficienty) केवल 68% होती है इसीलिये ऐसी धातुओं का घनत्व कम होता है। क्षार धातुएं इस श्रेणी में आती है।
2. षट्कोणीय निबिड़ संकुलन (Hexagonal close packing)
इस प्रकार की व्यवस्था में अवयवी कणों की पंक्तियों को इस प्रकार रखा जाता है कि पहली पंक्ति के गर्त में दूसरी पंक्ति से कण स्थान पाते हैं। तथा तीसरी पंक्ति के कण पहली पंक्ति के ठीक नीचे आते हैं। इस प्रकार बनी एक परत का प्रत्येक कण अन्य छ: कणों से घिरा रहता है तथा एक षट्कोणीय संरचना बनती है
षट्कोणीय निबिड़ संकुलन से त्रिविम संरचना दो प्रकार से बनायी जा सकती है-
- षट्कोणीय निबिड़तम संकुलन (Hexagonal closest packing)
- घनीय निबिड़ संकुलन (Cubic close packing)
(i) षट्कोणीय निबिड़तम संकुलन (Hexagonal closest packing)
षट्कोणीय निबिड़ संकुलन से बनी एक परत (A) पर दूसरी परत (B) इस प्रकार रखी जाये कि पहली परत के b गर्त में उसके कण जम जाएं तथा गतं खाली रह जाये। अब यदि एक तीसरी परत इस प्रकार रखी जाये कि इसके कण ठीक पहली परत के कणों के उपर आयें।
इसे ABAB… संरचना कहेंगे। इसे षट्कोणीय निबिड़तम संकुलन (hcp) कहते हैं।
इसकी संकुलन दक्षता 74% होती है। इस संरचना में प्रत्येक कण अन्य 12 कणों से घिरा रहता है अतः समन्वय संख्या 12 है। उदाहरणार्थ Be, M, Tl, Zr आदि के क्रिस्टलों के जालकों में षटकोणीय निविड़तम संकुलन होता है।
(ii) घनीय निबिड़ संकुलन (Cubic close packing)
षट्कोणीय निबिड़ संकुलन से बनी पहली परत (A) पर दूसरी परत (B) इस प्रकार रखी जाये ताकि b गर्त में उसके कण आ जाये तथा c गर्त खाली रह जाये जैसा कि hep में किया गया है। परन्तु तीसरी परत (C) के कण पहली परत के गर्त के ऊपर आ जायें तो इसे ABCABC… संरचना कहेंगे।
इसमें हर चौथी सतह के कण ठीक एक दूसरे के ऊपर होते हैं। इसे घनीय निबिड़ संकुलन (ccp) अथवा फलक केन्द्रित घन (face centred cubic, fcc) संरचना कहते हैं।
इसकी संकुलन दक्षता भी 74% होती है। उदाहरणार्थ Fe, Ni, Cu, Ag आदि के क्रिस्टलों के जालकों में घनीय निविड़ संकुलन होता है।
यहां यह ध्यान रखने योग्य है कि ताप के परिवर्तन से धातु की संरचना में भी बदलाव आ जाता है। उदाहरणार्थ, Sr के लिये 25°C, 350°C तथा 600°C पर संरचना क्रमशः ccp, hcp, bcc होती है।