धातुओं का निष्कर्षण

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धातुओं का निष्कर्षण या धातुकर्म (Extraction of Matal or Metallurgy)

अयस्क से शुद्ध अवस्था में धातु प्राप्त करने की प्रक्रिया को धातु निष्कर्षण (extraction of matal) अथवा धातुकर्म  (metallurgy) कहते हैं।

अयस्कों से धातुओं के निष्कर्षण निम्न चरणों में होता हैं-

  1. अयस्कों का संक्षोंदन या चूर्णीकरण (Pulverization of ores)
  2. अयस्क का सांद्रण या समृद्धिकरण (Concentration of ore)
  3. सांद्रित अयस्क का धातु ऑक्साइड में परिवर्तन (Conversation of concentrated ore into metal oxide)
  4. धातु ऑक्साइड का धातु में परिवर्तन (Conversion of metal oxide into metal )
  5. अयस्कों में धातु निष्कर्षण की अन्य विधियाँ (other methods of extraction of metal from their ores )
  6. धातुओं का शुध्दिकरण (purification or refining of metals )

 

 

अयस्कों का संक्षोदन या चूर्णीकरण (Pulverization of ores)

खान से निकले अयस्क के बड़े–बड़े टुकड़ों को पीसकर चूर्ण बनाना संक्षोदन (Pluverization) कहलाता है।

यह क्रिया दलित्र (crusher) में की जाती है। दलित्र दो पाटों के मध्य अयस्क को दबा कर छोटे–छोटे टुकड़ों में बदला जाता है।

दलित्र से प्राप्त अयस्क को स्टेम्प मिल में डालकर चूर्ण बनाया जाता है। ये स्टेम्प मिल ओखली (Mortar) की तरह कार्य करते हैं, जहाँ अयस्क के टुकड़ों पर मुसल की चोट पडती है तथा अयस्क चूर-चूर हो जाता है।

अयस्क का सांद्रण या समृद्धिकरण (Concentration of ore)

खान से निकले गये अयस्क में सामान्यतया अशुद्धियाँ जैसे कंकड़, मिटटी, रेत, क्ले आदि की अशुद्धियाँ पायी जाती है। इन अशुद्धियों को आधात्री या गेंग (Gang or Matrix) कहा जाता है।

चूर्णित अयस्क से गेंग को पृथक करना अयस्क का सांद्रण (Concentration of ore) कहलाता है।

 

अयस्क के प्रकार के आधार पर अयस्क का सांद्रण निम्नलिखित विधियों में से किसी एक विधि द्वारा किया जाता है –

  1. गुरुत्वीय पृथक्करण विधि (gravity separation method)
  2. झाग / फेन प्लवन विधि (froath floatation process)
  3. विद्युत चुम्बकीय पृथक्करण विधि (Electro-magnetic separation process)
  4. निक्षालन या रासायनिक विधि (Chemical method)

1. गुरुत्वीय पृथक्करण विधि (gravity separation method )

भारी ऑक्साइड अयस्क के सान्द्रण हेतु यह विधि उपयुक्त है। इसे द्रवीय धावन विधि भी कहते है। इस विधि में चूर्णित अयस्क को ढलवा प्लेटफार्म पर रख देते हैं तथा उस पर जल की प्रबल धारा प्रवाहित करते हैं। अयस्क के कण भारी होने के कारण वहीं रह जाते हैं तथा गेंग के कण हल्के होनी के कारण पानी के साथ बह जाते हैं।

2. झाग / फेन प्लवन विधि (froath floatation process)

सल्फाइड अयस्कों जैसे – काँपरपइराइटीज, जिंक ब्लेड आदि के सांद्रण के लिए विशेष रूप से यह विधि उपयुक्त है।

तेल और जल के मिश्रण में सल्फाइड अयस्क को डालने पर सल्फाइड अयस्क कण तेल द्वारा तथा अयस्क में उपस्थित गेंग के कण जल द्वारा भीग जाते हैं। इस मिश्रण में वायु प्रवाहित करने पर अयस्क के सल्फाइड कण तैलीय झाग के साथ सतहपर आ जाते हैं तथा गेंग के कण निचे बैठ जाते हैं।

इस में दो प्रकार के पदार्थ प्रयुक्त होते हैं-

(i) झाग कारक

(ii) प्लवन कारक

 

झाग कारक या फेन-स्थायीकारी

वे पदार्थ जो हवा में बुलबुले अथवा झाग बनाने में मदद करते हैं, झाग कारक कहलाते हैं। जैसे – चीड़ का तेल, यूकेलिप्टस का तेल, वसा अम्ल, जैंथेट आदि।

प्लवन कारक या संग्राही

वे पदार्थ जो सल्फाइड अयस्क के कणों को सतह पर लाने तथा उन्हें जल से प्रतिकर्षी बनाने में मदद करते हैं, प्लवनकारक कहलाते हैं । जैसे सोडियम एथिल जैन्थेट , पोटेशियम एथिल जैन्थेट।

बारीक़ पिसे हए अयस्क तथा प्लवन कारक के मिश्रण को पानी से भरे आयताकार बर्तन में दल दिया जाता हैं। इसमें चीड़ का तेल अथवा तारपीन का तेल मिला दिया जाता है तथा वायु की प्रबल धारा प्रवाहित की जाती है।  सल्फाइड अयस्क कण तेल में भीगकर झाग के साथ साथ प्लवन कारक की सहायकता से ऊपर उठ जाते है। जबकि आधात्री या गेंग के कण जल से भीगकर टेंक के पेंदे में बैठ जाते हैं।

झाग अथवा फेन को अन्य पात्र में इकठ्ठा कर सुखा लिया जाता है। इस प्रकार सांद्रित अयस्क प्राप्त हो जाता है।


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3. विद्युत चुम्बकीय पृथक्करण विधि (Electro-magnetic separation process)

इस विधि का उपयोग उन अयस्कों के लिए किया जाता है। जिनमें अयस्क अचुम्बकिय तथा अशुद्धियाँ चुम्बकिय हों या इसके विपरीत अयस्क चुम्बकिय एंव अशुद्धियाँ अचुम्बकीय होती हैं।

उदाहरण

टिनस्टोन या टिन अयस्क में टिनस्टोन अयस्क स्वंय अचुम्बकीय होता है , जबकि उसमें उपस्थित आधात्री लोहा और मैंग्नीज टंगस्टेटस चुम्बकीय होते हैं।  चूर्णित अयस्क को विद्युत चुम्बकीय रोलर के ऊपर घूमते हुए पटटे पर गिराया जाता है।  चुम्बकीय अशुद्धियों की पट्टे से गिरकर आकर्षण के कारण चुम्बकीय रोलर के पास इकठ्ठे हो जाते है। जबकि अचुम्बकीय सांद्रित अयस्क कणों का ढेर अपकेंद्री बल के प्रभाव के कारण चुम्बकीय पट्टे से कुछ दुरी पर लगता है।

4. रासायनिक विधि (Chemical method)

यदि अयस्क बहुत ही शुद्ध रूप में है इस विधि को इस्तेमाल किया जाता है। इस विधि को निक्षालन भी कहते है।  जैसे-

(A) बॉक्साइट अयस्क से एलुमिना का निक्षालन

बॉक्साइट अयस्क में SiO2, TiO2 और Fe2O3 की अशुद्धियाँ होती हैं।

जब बॉक्साइट के चूर्णित अयस्क को NaOH के साथ मिलाया जाता है, तो Al2O3 सोडियम एलुमिनेट के रूप में, SiO2 सोडियम सिलिकेट में बदल जाता है, जबकि इस प्रकार बॉक्साइट के चूर्णित अयस्क से अघुलनशील अशुद्धियाँ पृथक हो जाती हैं, जिन्हे छान कर अलग कर लिया जाता हैं।

Al2O3 + 2NaOH → 2NaAlO2 + H2O

छनित का तनुकरण करने के बाद अच्छी तरह से हिलाने पर एलुमिनियम हाइड्रोक्साइड अवक्षेपित हो जाता है, जिसे छान कर अलग लिया जाता हैं।

अवक्षेप को गर्म करने पर शुद्ध एलुमिना प्राप्त हो जाता है।

NaAlO2 + 2H2O → Al(OH)2 + NaOH

2Al(OH)3 → Al2O3 + 3H2O

(B) अर्जेंटाइट अयस्क का निक्षालन

चांदी को अयस्क अर्जेंटाइट (Ag2S) से निकाला जाता है।

चांदी के चूर्णित अयस्क अर्जेंटाइट को वायु की उपस्थिति में सोडियम साइनाइड या पोटैशियम साइनाइड घोल से उपचारित किया जाता है। जिससे सोडियम अर्जेंटो साइनाइड Na[Ag(CN)2 बनाती है।

Ag2S + 4NaCN ⇌ 2Na[Ag(CN)2]+ Na2S

सोडियम अर्जेंटो साइनाइड के घोल को जिंक चूर्ण के साथ मिलाने पर सोडियम टेट्रा सायनोजिकेट और चाँदी का अवक्षेप बनाता है। इस अवक्षेपित चांदी को स्पंजी सिल्वर कहा जाता है।

Zn + 2Na[Ag(CN)2] → Na2[Zn(CN)4]+ 2Ag

उपरोक्त विधि सोने के धातुकर्म में सोने के निक्षालन में होती है।


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