आनुवंशिकी  एवं मेंडल के आनुवंशिकी के नियम

आनुवंशिकी  एवं मेंडल के आनुवंशिकी के नियम

आनुवंशिकी (Genetics)

जीवविज्ञान की वह शाखा जिसमें वंशागति एवं विभिन्नता का अध्ययन किया जाता है, आनुवंशिकी कहलाती है। जेनेटिक्स नाम विलियम बेटसन (1905) के द्वारा दिया गया।

आनुवंशिकी के मूल सिद्धांतों का अध्ययन सबसे पहले ऑस्ट्रिया के पादरी, ग्रेगोर जोह्न मेंडल द्वारा किया गया था। इसलिए मेंडल को आनुवंशिकी का जनक कहा जाता है।

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वंशागति (Heredity / Inheritance)

लक्षणों पर एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में गमन वंशागति कहलाता है।

 

मेंडल ने उद्यान मटर (पाइसम सैटाइवम) पर संकरण का अध्ययन करके  “पादप हाइब्रिडाइजेशन पर प्रयोग Experiments on plant hybridisation” नामक शोधपत्र “प्राकृतिक इतिहास सोसाइटी ऑफ ब्रून  (Natural History Society of Brunn)” में 1866 में प्रकाशित किये।

1900 में, मेंडल तीन जीवविज्ञानियों ह्यूगो डी व्रीज, कार्ल कोरेंस और एरिक वॉन शेरमाक द्वारा मेंडल के नियमों की दुबारा खोज की।

 

आनुवंशिकी से जुड़ी शब्दावली (Terms in Genetics)

जीन (Gene)

कोशिका के अंदर का वह भाग जो किसी सजीव के लक्षणों को नियंत्रित करता है जीन कहलाता है। यह डीएनए का छोटा खंड होता है, जिस पर आनुवांशिक कोड पाए जाते हैं। जोह्नसन ने जीन शब्द दिया। मेंडल ने जीन को कारक (Factor) कहा।

युग्मविकल्पी या एलील (Allele)

लक्षणों का नियंत्रण  करने वाली  जीन के एक या अधिक संभावित रूप जो गुणसूत्र में एक ही स्‍थान पर पाए जाते हैं, एलील कहलाते है।

जैसे पादप की लंबाई के लिए T एवं t एलील होते है।  इसी प्रकार बीज के आकार के लिए R एवं r एलील होते है।

समयुग्मजी (Homozygous)

यदि एलील के जोड़े में दोनों एलील समान होते हैं तो इसे समयुग्मजी कहते है। जैसे TT, tt, RRYY, rryy

विषमयुग्मजी (Heterozygous)

यदि एलील के जोड़े में दोनों एलील अलग-अलग होते हैं तो इसे विषमयुग्मजी कहते है। जैसे Tt, Rr, RrYy

दृश्य-प्ररूप (Phenotype)

किसी लक्षण का बाहरी रूप दृश्य-प्ररूप कहलाता है। जैसे- लम्बा, बौना, लाल, सफेद, गोल आदि।

जीनी-प्ररूप (Genotype)

किसी लक्षण से सम्बन्धित जीनी संरचना जीनी-प्ररूप कहलाता है। जैसे- लम्बे के लिए TT, Tt, बौने के लिए tt , लाल के लिए RR, सफेद rr, गोल RR आदि।

प्रभावी लक्षण (Dominant Charaters)

वह लक्षण जो मेंडल के संकरण में प्रथम पीढ़ी में अपना प्रभाव दिखाता है। प्रभावी लक्षण होता है। यह समयुग्मजी तथा विषमयुग्मजी दोनों अवस्था में अपना प्रभाव दिखाता है।

प्रभावी लक्षण के एलील हमेशा कैपिटल अक्षर में काम लेते है। जैसे लम्बे के लिए T, गोल के लिए R, पीले के लिए Y, आदि।

अप्रभावी लक्षण (Recessive Charaters)

वह लक्षण जो मेंडल के संकरण में प्रथम पीढ़ी में अपना प्रभाव नहीं दिखाता है। अप्रभावी लक्षण होता है। यह केवल विषमयुग्मजी अवस्था में अपना प्रभाव दिखाता है।

प्रभावी लक्षण के एलील हमेशा स्माल अक्षर में काम लेते है। जैसे बौने के लिए t, झुरीदार के लिए r , हरे के लिए y, आदि।

 

एकल संकर संकरण (Monohybrid Cross)

जब एक ही प्रकार के विप्रयासी लक्षणों का उपयोग करके संकरण कराया जाता है तो इसे एकल संकर संकरण कहते है। जैसे TT x tt

आनुवंशिकी  एवं मेंडल के आनुवंशिकी के नियम

आनुवंशिकी  एवं मेंडल के आनुवंशिकी के नियम

 

 

द्विसंकर संकरण (Dihybrid Cross)

जब दो प्रकार के विप्रयासी लक्षणों का उपयोग करके संकरण करवाया जाता है तो उसे द्विसंकर संकरण कहते है। जैसे RRYY x rryy

आनुवंशिकी  एवं मेंडल के आनुवंशिकी के नियम

बहुसंकर संकरण (Polyhybrid Cross)

जब कई प्रकार के लक्षणों का उपयोग करके संकरण करवाया जाता है तो इसे बहुसंकर संकरण कहते है। जैसे RRYYTT x rryytt

आनुवंशिकी  एवं मेंडल के आनुवंशिकी के नियम

मेंडल के आनुवंशिकी के नियम (Mendelian law of Genetics)

मेंडल के वंशागति के तीन सिद्धांत हैं:

  1. प्रभाविता का नियम
  2. पृथक्करण का नियम
  3. स्वतंत्र अपव्युहन का नियम

1. प्रभाविता का नियम (Law of Dominance)

यह नियम बताता है कि जब किसी प्रजाति के दो विप्रयासी लक्षणों का उपयोग करके  संकरण करवाया जाता है तो आप प्रथम पीढ़ी में  एक लक्षण है  दिखाई देता है  जो प्रभावी होता है तथा अन्य लक्षण  दिखाई नहीं देता  जिसे अप्रभावी लक्षण कहते हैं

जब लंबे और बौने पौधों के बीच एक क्रॉस करवाया जाता है तो प्रथम पीढ़ी में केवल लंबे पौधे ही देखे जाते हैं। इसका मतलब है कि लंबा लक्षण बौना लक्षण पर हावी है।

प्रभाविता का नियम के अपवाद

  • अपुर्ण प्रभाविता
  • सहप्रभाविता
  • बहुप्रभाविता

 

2. पृथक्करण का नियम (Law of Segregation)

युग्मकों के निर्माण के समय  एलील के जोड़े में से एलील के जोड़े में से प्रत्येक एलील एक-दूसरे से पृथक होकर संतति में जाता है।

उदाहरण के लिए जब एकल संकर संकरण में प्रथम पीढ़ी के पादपों का आपस में संकरण करवाया जाता है तो द्वितीय पीढ़ी में लम्बे पादपों के साथ-साथ बोने पादप भी प्राप्त होते हैं
युग्मक के निर्माण में एक-दूसरे से अलग होते है। इस सिद्धांत को युग्मकों की शुद्धता के नियम के रूप में भी जाना जाता है।

3. स्वतंत्र अपव्युहन का नियम (Law of Independent Assortment)

जब दो या अधिक लक्षणों का उपयोग करके संकरण करवाया जाता है तो प्रत्येक लक्षण स्वतंत्र रूप से संतति में जाता है।
उदाहरण-लंबा हरा तथा बौना पीला पादपों में संकरण करवाया जाता है तो लंबे के साथ पादप पीला एवं बोने पादप के साथ हरा लक्षण भी दिखाई देता है जो स्वतंत्र अपव्युहन को दिखाता है।

स्वतंत्र अपव्युहन नियम के अपवाद

  • सहलग्नता
  • पुनर्योजन

 

मेंडेलिज्म का महत्व –

  1. यूजेनिक्स या सुजंनिकी मेंडेलिज्म पर आधारित है।
  2. मेंडेलिज्म के आधार पर, जानवरों और पौधों की किस्मों में विभिन्न संकर नस्लों का उत्पादन किया गया है।
  3. घातक जीन के बारे में जानकारी मिलती है।

लेक्चर विडियो

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इन्हें भी पढ़े

  1. अनुवांशिक विज्ञान / आनुवंशिकी
  2. मेंडलवाद (Mendelism), मेंडल का इतिहास (History of Mendel)
  3. एक संकर संकरण और द्विसंकर संकरण
  4. मेंडल के वंशागति के नियम
  5. घातक जीन : प्रभावी और अप्रभावी घातक जीन

बाहरी कड़ियाँ

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  4. Biology Notes

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