पृथ्वी पर जीवन की उत्पत्ति
वैज्ञानिक अनुमानों के अनुसार, ब्रह्मांड लगभग 20 अरब वर्ष (2000 करोड़ वर्ष) पुराना है।
ब्रह्मांड की उत्पत्ति और विस्तार की व्याख्या अक्सर “बिग बैंग” सिद्धांत के माध्यम से की जाती है, जो बताता है कि सारा पदार्थ और ऊर्जा एक ही बिंदु में संकेंद्रित थे, जो फटकर फैलने लगे।
पृथ्वी का निर्माण (Formation of Earth)
पृथ्वी का निर्माण लगभग 4.5 बिलियन वर्ष पूर्व (450 करोड़ वर्ष) पहले सौरमंडल में मौजूद धूल और गैसों के संयोग से हुआ।
प्रारंभ में, पृथ्वी का वायुमंडल मुक्त ऑक्सीजन (O₂) से रहित था और इसमें मुख्यतः जलवाष्प, मीथेन (Methane), कार्बन डाइऑक्साइड (Carbon Dioxide) और अमोनिया (Ammonia) शामिल थे। पृथ्वी की सतह ठंडी होने पर जलवाष्प संघनित होकर महासागरों का निर्माण हुआ।
रासायनिक विकास और जैविक अणुओं का निर्माण (Chemical Evolution and Formation of Organic Molecules)
माना जाता है कि पृथ्वी पर जीवन का आरंभ लगभग 4 बिलियन वर्ष (400 करोड़ वर्ष) पहले हुआ जब सरल जैविक अणु जैसे कि अमीनो अम्ल (Amino Acids), प्रोटीन (Proteins) और न्यूक्लियोटाइड्स (Nucleotides) ने प्रारंभिक महासागरों में बनना शुरू किया।
स्टेनली मिलर (Stanley Miller) एवं हेरोल्ड उरे (Harold Urey) का प्रयोग
वैज्ञानिक स्टेनली मिलर (Stanley Miller) और हेरोल्ड उरे (Harold Urey) ने 1953 में एक प्रयोग किया, जिसने प्रारंभिक पृथ्वी की परिस्थितियों का अनुकरण किया। उन्होंने मीथेन (CH₄), अमोनिया (NH₃), हाइड्रोजन (H₂), और जलवाष्प (H₂O) का मिश्रण प्रयोगशाला में रखा और 800 ⁰ C पर बिजली के स्पार्क्स के माध्यम से विद्युत निर्वहन किया। इस प्रयोग से जैविक अणुओं का निर्माण हुआ, जिससे यह सिद्ध हुआ कि जीवन की मूलभूत ईकाइयाँ स्वाभाविक रूप से उत्पन्न हो सकती हैं।
जीवन की उत्पत्ति के सिद्धांत (Theories of Origin of Life)
स्वतःजनन (Abiogenesis)
इस सिद्धांत के अनुसार जीवन की उत्पत्ति निर्जीव पदार्थों से स्वतः ही हुई। यह सिद्धांत एक समय में व्यापक रूप से मान्यता प्राप्त था, लेकिन बाद में **लुई पाश्चर (Louis Pasteur)** जैसे वैज्ञानिकों के प्रयोगों से यह सिद्ध हुआ कि सूक्ष्मजीव स्वतः नहीं उत्पन्न होते हैं।
जीवन की प्राचीन परिकल्पनाएँ (Ancient Theories for Origin of Life)
ये निम्न प्रकार है-
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विशिष्ट सृष्टि का सिद्धांत (Theory of Special Creation)
यह सिद्धांत धार्मिक मान्यताओं पर आधारित है।
ईसाई धर्म के अनुसार, फादर सुआरेज (Father Suarez) ने कहा कि भगवान ने पृथ्वी, आकाश, जल, और सभी जीवों की रचना कुछ ही दिनों में की। इसमें एक ही दिन में पेड़-पौधे, सूर्य, चंद्रमा, तारे, और जीवों की रचना की गई थी
– पहला दिन दिन और रात बने
– दूसरा दिन आकाश और जल का निर्माण
– तीसरा दिन पृथ्वी, जल, और वनस्पति
– चौथा दिन सूर्य, चंद्रमा, तारे
– पाँचवा दिन जलचर और पक्षी
– छठा दिन स्थलीय जीव और मनुष्य की रचना
यह सिद्धांत वैज्ञानिक दृष्टिकोण से समर्थित नहीं है, इसलिए इसे आधुनिक विज्ञान में मान्यता नहीं दी जाती।
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स्वतः जनन का सिद्धांत (Theory of Spontaneous Generation – Abiogenesis or Autogenesis)
यह सिद्धांत कहता है कि जीवन स्वतः निर्जीव पदार्थों से उत्पन्न हो सकता है।
अरस्तु (Aristotle) और अन्य कई वैज्ञानिकों ने इसे प्राचीन काल में स्वीकार किया था।
हालांकि, फ्रांसेस्को रेडी (Francesco Redi) ने 1668 में यह सिद्ध करने के लिए प्रयोग किया कि कीड़े (maggots) सड़े हुए मांस से नहीं, बल्कि मक्खियों द्वारा दिए गए अंडों से उत्पन्न होते हैं।
लाजारो स्पैलंजानी (Lazzaro Spallanzani) ने भी प्रयोग कर दिखाया कि यदि सूप को उबाल कर बंद कर दिया जाए, तो उसमें कोई सूक्ष्मजीव उत्पन्न नहीं होते हैं।
लुई पाश्चर (Louis Pasteur) ने 1862 में अपने प्रयोगों के माध्यम से यह सिद्ध किया कि जीवन सिर्फ जीवन से उत्पन्न होता है, और कीटाणु रोग सिद्धांत (Germ Theory of Disease) को भी स्थापित किया।
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कोस्मोजोइक सिद्धांत (Cosmozoic Theory)
रिचटर (Richter) द्वारा प्रस्तुत इस सिद्धांत के अनुसार, जीवन का उद्भव पृथ्वी पर नहीं हुआ बल्कि यह अंतरिक्ष से जीवन के बीज या स्पोर्स (Spores) के रूप में आया।
यह सिद्धांत यह मानता है कि जीवन के बीज (Protoplasm) कोस्मिक धूल (Cosmic Dust) के साथ पृथ्वी पर फैले थे।
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कोस्मिक पैनस्पर्मिया सिद्धांत (Cosmic Panspermia Theory)
इस सिद्धांत का समर्थन अरहेनियस (Arrhenius) ने किया।
इसके अनुसार, जीव के बीजाणु (Spores) या बीज अंतरिक्ष में धूल या उल्काओं के माध्यम से पृथ्वी पर आए और जीवन की शुरुआत की।
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जीवन की अनन्तता का सिद्धांत (Theory of Eternity of Life)
– हेल्महोल्ट्ज़ (Helmholtz) और अन्य वैज्ञानिकों ने यह विचार प्रस्तुत किया कि जीवन अनंतकाल से चला आ रहा है और इसकी कोई उत्पत्ति नहीं है।
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जीवन के जीवजनन सिद्धांत (Theory of Biogenesis)
इस सिद्धांत के अनुसार, जीवन केवल जीवन से उत्पन्न हो सकता है।
हार्वे (Harvey, 1651) और हक्सले (Huxley, 1870) ने इस सिद्धांत का समर्थन किया। इनका प्रसिद्ध कथन है ‘Omnis vivum ex ovo‘ यानी ‘जीवन जीवन से उत्पन्न होता है।’
2. जीवन की उत्पत्ति का आधुनिक सिद्धांत (Modern Theory of Origin of Life)
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ओपेरिन-हेल्डेन सिद्धांत (Oparin-Haldane Theory of Origin of Life)
इसे रासायनिक विकास का सिद्धांत (Chemical Evolution Theory) भी कहा जाता है।
अलेक्जेंडर ओपेरिन (Alexander Oparin) और जे. बी. एस. हेल्डेन (J.B.S. Haldane) ने इस सिद्धांत को प्रस्तुत किया।
इनके अनुसार, पृथ्वी का प्रारंभिक वातावरण अपचयी (Reducing) था जिसमें विभिन्न रासायनिक पदार्थ जैसे मीथेन (Methane), अमोनिया (Ammonia), और हाइड्रोजन (Hydrogen) शामिल थे। इनका परस्पर संयोजन और बिजली की चमक या अल्ट्रावायलेट किरणों की क्रिया ने जैव-अणुओं (Biomolecules) का निर्माण किया।
– इस सिद्धांत का समर्थन स्टैनली मिलर और हेरोल्ड यूरे (Stanley Miller and Harold Urey) ने 1953 में अपने प्रयोगों द्वारा किया, जिसमें उन्होंने 800 ⁰C पर बिजली की चमक और मीथेन (CH₄), अमोनिया (NH₃), हाइड्रोजन (H₂), और जलवाष्प (H₂O) के माध्यम से कार्बनिक यौगिकों का निर्माण किया।
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महत्वपूर्ण बिंदु (Important Points) –
जीवन की उत्पत्ति के लिए आवश्यक शर्तें-
- पृथ्वी का प्रारंभिक वातावरण अपचयी था।
- जीवन का प्रारंभिक रूप अवायवीय (Anaerobic) था।
- पृथ्वी के शुरुआती वातावरण में मुक्त ऑक्सीजन अनुपस्थित थी।
- प्रकाश संश्लेषण के साथ जीवन के विकास ने वातावरण को ऑक्सीडाइजिंग (Oxidizing) बना दिया।
पाश्चर के प्रयोग (Pasteur’s Experiment)
– लुई पाश्चर (Louis Pasteur) ने सिद्ध किया कि जीवाणु और सूक्ष्मजीव स्वतः नहीं उत्पन्न होते। उन्होंने एक विशेष आकार की गर्दन वाली फ्लास्क में शक्कर और यीस्ट को उबाल कर हवा में छोड़ दिया। परिणामस्वरूप, जीवाणु का विकास नहीं हुआ, जिससे यह सिद्ध हुआ कि जीवन स्वतः नहीं उत्पन्न हो सकता।
प्रथम कोशिकाओं का विकास और जीवन का क्रमिक विकास (Development of First Cells and Evolution of Life)
जीवन का अकोशिकीय स्वरूप लगभग 3 बिलियन वर्ष (300 करोड़ वर्ष) पहले उपस्थित हुआ होगा। जीवन के प्रथम रूप संभवतः सरल, एककोशीय जीव जैसे कि प्रोकैरियोट्स (Prokaryotes) – बैक्टीरिया (Bacteria) और आर्किया (Archaea) थे। ये जीव अत्यधिक प्रतिकूल परिस्थितियों में भी जीवित रह सकते थे।
समय के साथ, विकास की प्रक्रिया और प्राकृतिक चयन (Natural Selection) के माध्यम से, ये एककोशीय जीव अधिक जटिल बहुकोशीय जीवों में विकसित हुए, जिससे आज की जीवन की विविधता उत्पन्न हुई।
वर्तमान समझ और भविष्य के अनुसंधान (Current Understanding and Future Research)
आधुनिक शोध यह पता लगाने का प्रयास कर रहे हैं कि जीवन की उत्पत्ति की सटीक प्रक्रियाएँ क्या थीं। पृथ्वी पर चरम परिस्थितियों में जीवित रहने वाले जीवों (Extremophiles) का अध्ययन इस बात का संकेत देता है कि हमारे सौरमंडल और अन्य ग्रहों और चंद्रमाओं पर भी जीवन संभव हो सकता है।
– नई सिद्धांत जैसे RNA वर्ल्ड हाइपोथिसिस (RNA World Hypothesis) और हाइड्रोथर्मल वेंट हाइपोथिसिस (Hydrothermal Vent Hypothesis) जीवन की उत्पत्ति के लिए वैकल्पिक परिदृश्य प्रस्तुत करते हैं, जिसमें यह सुझाव दिया गया है कि आत्म-प्रतिकृति करने वाले RNA अणु जीवन के पूर्ववर्ती हो सकते हैं या कि जीवन का आरंभ पानी के नीचे ज्वालामुखीय वेंट के पास हुआ।
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