उद्विकास के प्रमाण (Evidences of Evolution in Hindi)
Evidences of Evolution in Hind, Physiological Evidences in Hindi,
1. शरीर विज्ञान से प्रमाण (Physiological Evidences in Hindi)
(i) समजात अंग (Homologous Organs):
मूल संरचना और विकासीय उत्पत्ति: समजात अंगों की मूल संरचना और विकासीय उत्पत्ति समान होती है।
पूर्वज का संकेत: जिन जीवों में इस प्रकार के अंग होते हैं, उन्हें एक समान पूर्वज (Common Ancestor) से उद्भवित माना जाता है।
Evidences of Evolution in Hindi Source – NCERT Book
उदाहरण:
– सील का फ्लीपर (Flipper of Seal)
– चमगादड़ के पंख (Wings of Bat)
– घोड़े के अग्र पाद (Forelimb of Horse)
– बिल्ली के पंजे (Paw of Cat)
– मनुष्य के अग्र पाद (Forelimb of Human)
पादपों में उदाहरण:
– बोगनविलिया के कांटे (Thorns of Bougainvillea)
– कुकुरबिटा के प्रतान (Tendrils of Cucurbita)
Evidences of Evolution in Hindi Source- NCERT Book
अनुकूलीय विकिरण (Adaptive Radiation): समजात अंग अपसारी विकास (Divergent Evolution) को दर्शाते हैं, जिसका अर्थ है कि समान संरचनाएं विभिन्न आवश्यकताओं के लिए अनुकूलित होने के कारण भिन्न-भिन्न दिशाओं में विकसित हुईं। इसे अनुकूलीय विकिरण (Adaptive Radiation) कहा जाता है।
(ii) समरूपी अंग (Analogous Organs):
मूल संरचना और कार्य: समरूपी अंगों की उत्पत्ति और मूल संरचना भिन्न होती है, लेकिन वे समान कार्य करते हैं।
उदाहरण:
– पक्षियों और तितली के पंख (Wings of Birds and Butterfly) – आंतरिक और संरचनात्मक रूप से भिन्न लेकिन कार्य में समान।
– पेंगुइन और डॉल्फिन के फ्लीपर्स (Flippers of Penguin and Dolphin)।
– ऑक्टोपस और स्तनधारी के नेत्र (Eyes of Octopus and Mammals) – रेटिना की स्थिति में भिन्नता लेकिन समान कार्य।
पादपों में उदाहरण:
– शकरकन्द (Sweet Potato – Root Modification)
– आलू (Potato – Stem Modification) – खाद्य संग्रहण के लिए, लेकिन पादप के भिन्न भागों का रूपान्तरण होते हैं।
अनुकूलीय अभिसरण (Adaptive Convergence): यह घटना अनुकूलीय अभिसरण कहलाती है, जिसमें समान आवास के कारण जीवों के भिन्न समूहों में समान अनुकूलीय लक्षणों का चयन होता है। समवृति अंग अभिसारी विकास (Convergent Evolution) को दर्शाते हैं, जिसका अर्थ है कि भिन्न -भिन्न जीव में समान कार्य करने वाली संरचनाएँ विकसित हुईं।
(iii) अवशेषी अंग (Vestigial Organs):
ये अंगों के अवशेष माने जाते हैं, जो जन्तुओ में कोई कार्य नहीं करते लेकिन अन्य जीव तथा उनके पूर्वजों में पूर्ण और क्रियात्मक (Functional) थे।
अवशेषी अंगों का अध्ययन अल्पविकसित अवशेषों को उद्विकासीय व्याख्या प्रदान करता है, जो जीवों के नए वातावरण में अनुकूलित होने के कारण अनावश्यक संरचना बन गए हैं।
उदाहरण:
– सरीसृप जबड़ा उपकरण (Jaw Apparatus of Reptiles)
– अजगर के पश्च पाद (Hind Limbs of Python)
– ग्रीनलैंड व्हेल (Greenland Whale)
मानव में अवशेषी अंग:
– बाह्य कर्ण की पेशियां (External Ear Muscles)
– स्कैल्प (Scalp – सिर की त्वचा)
– अल्पविकसित पुच्छ कशेरूक (Reduced Tail Vertebrae)
– नेत्र की निमेषक पटल (Vestigial Nictitating Membrane)
– सीकम की परिशेषिका (Appendix)
– अक्कल दाढ़ (Wisdom Teeth)
अवशेषी अंग का महत्व:
– अजगर और पोरपोइस में श्रोणि मेखला के अक्रियात्मक अवशेष सांप और पोरपोइस के चतुष्क पाद युक्त पूर्वज से उद्भवित होने का प्रमाण है।
– मानव में परिशेषिका को बड़ी अंधनाल के एक अवशेष के रूप में माना जाता है, जो शाकाहारी जन्तुओं में सेल्यूलोज के पाचन के लिए संग्रहण अंग है।
2. भौगोलिक प्रमाण (Geographical Evidence)
जन्तुओं एवं पादपों का पृथ्वी के विभिन्न भागों में भौगोलिक वितरण का अध्ययन जैवभौगोलिकी (Biogeography) कहलाता है।
एल्फ्रेड रसेल वैलेक (Alfred Russel Wallace) ने सम्पूर्ण विश्व को छः जैवभौगोलिक क्षेत्रों या परिमण्डल (Biogeographical Realms) में विभक्त किया:
- पेलिआर्कटिक (Palaearctic): यूरोप, उत्तरी एशिया और एटलस पर्वत सहित उत्तरी-पश्चिमी अफ्रीका।
- निआर्कटिक (Nearctic): सम्पूर्ण उत्तरी अमेरिका, अलास्का, कनाडा, संयुक्त राज्य और मैक्सिको।
- निओट्रोपिकल (Neotropical): मैक्सिको की निचली भूमि, केन्द्रीय अमेरिका, कैरिबियन द्वीप और दक्षिणी अमेरिका।
- इथियोपियन (Ethiopian): अफ्रीका (एटलस पर्वत को छोड़कर), मेडागास्कर और सटे हुए द्वीप।
- ऑरिएंटल (Oriental): हिमालय पर्वत के उत्तर के ऊष्णकटिबंधीय एशिया, सुमात्रा, जावा, बोर्नियो और फिलीपींस।
- ऑस्ट्रेलियन (Australian): ऑस्ट्रेलिया, तस्मानिया, न्यू गिनी और इंडोनेशियन द्वीप जो बोर्नियो के पूर्व में स्थित हैं।
भूगोल वैज्ञानिक मानते हैं कि कई अरबों वर्ष पूर्व सभी क्षेत्र एक एकल भू-भाग (Supercontinent) के रूप में थे।
भौगोलिक परिवर्तनों का प्रभाव (Impact of Geographical Changes): पृथ्वी की सतह के नीचे क्रस्टल प्लेट (Crustal Plates) की गतियों के कारण वृहद भूभाग टूट गए और एक-दूसरे से दूर हो गए। ये भूभाग समुद्रों द्वारा पृथक हो गए, जिससे जीवों की स्वतंत्र गति में बाधा उत्पन्न हुई। भिन्न-भिन्न वातावरणीय स्थितियों के कारण विभिन्न जैव-भौगोलिक क्षेत्रों में पादप एवं जन्तु स्वतंत्र रूप से विकसित हुए।
भारत ऑरिएंटल परिमण्डल (Oriental Realm) के अंतर्गत आता है, जो पेलिआर्कटिक और ऑरिएंटल परिमण्डलों द्वारा एक ऊंचे पर्वत से विभाजित है।
अनुकूलीय विकिरण (Adaptive Radiation):
– गैलेपैगोस द्वीप (Galápagos Islands): दक्षिणी अमेरिका के पश्चिमी तट पर स्थित 22 द्वीपों की श्रृंखला।
– चार्ल्स डार्विन ने अपनी यात्रा के दौरान इन द्वीपों पर फिंच पक्षियों (Finches) में विविधता देखी। उन्होंने निष्कर्ष निकाला कि द्वीपों पर विभिन्न किस्में अनुकूलन द्वारा विकसित हुईं।
– अनुकूलनीय विकिरण की प्रक्रिया में जीवों के समूह एक ही पूर्वज से उत्पन्न होते हैं, लेकिन अलग-अलग आवासों में विभाजित होकर नई जातियों में विकसित होते हैं।
3. भ्रौणिकी प्रमाण (Embryological Evidence)
विभिन्न कशेरूकियों (Vertebrates) में भ्रूणीय परिवर्धन (Embryonic Development) की समानताएं उद्विकास का समर्थन करती हैं। सभी कशेरूकियों में भ्रूणीय अवस्था में गिल दरारें (Gill Slits) और पृष्ठरज्जु (Notochord) पायी जाती हैं, जो वयस्क अवस्था में कशेरूक दण्ड (Vertebral Column) और फेफड़े (Lungs) द्वारा प्रतिस्थापित हो जाती हैं।
अर्नस्ट हीकल (Ernst Haeckel) के अनुसार, व्यक्तिवृतयता जातिवृतयता (Ontogeny recapitulates phylogeny) की पुनरावृत्ति है, जिसे बायोजेनेटिक नियम (Biogenetic Law) के रूप में जाना जाता है।
पादपों में उद्विकास (Evolution in Plants)
- मॉसेज (Mosses) और फर्न (Ferns) को शैवाल (Algae) से उत्पन्न माना जाता है।
- ब्रायोफाइट्स (Bryophytes) और टेरिडोफाइट्स (Pteridophytes) दोनों में कशाभिक युक्त शुक्राणु (Flagellated Sperm) होते हैं, और निषेचन (Fertilization) के लिए जल की आवश्यकता होती है।
- आदिम अनावृत्तबीजी (Primitive Gymnosperms) जैसे सायकेड्स (Cycads) और गिन्को (Ginkgo) में टेरिडोफाइट्स के समान कशाभिक शुक्राणु होते हैं, जो उनके पूर्वजों के साथ उनके वंशक्रम को इंगित करता है।
4. जीवाश्मीय प्रमाण (Fossil Evidence)
जीवाश्म (Fossils) जीवों के अवशेष और छाप होते हैं, जो भूतकाल में रहे थे। जीवाश्म वैज्ञानिकों (Paleontologists) ने पूरे विश्व से बड़े कठिन परिश्रम से जीवाश्मों का विस्तृत संग्रहण (Extensive Collection) बनाया है।
जीवों के उद्विकासीय इतिहास (Evolutionary History) या जातिवृतीयता (Phylogeny) को जीवाश्मों की सहायता से पुनः निर्मित किया जा सकता है। घोड़ा (Horse), हाथी (Elephant) और मनुष्य (Human) जातिवृतीयता के अपेक्षाकृत सम्पूर्ण पुनः निर्माण के सुन्दर उदाहरण हैं।
जीवाश्म का महत्व (Importance of Fossils)
– जीवाश्म लेख (Fossil Record) ने जैविक उद्विकास (Biological Evolution) के वृहद ऐतिहासिक क्रम (Historical Sequence) को बनाने में सहायता की है।
– रूप (Form) एवं संरचना (Structure) के अतिरिक्त, विलुप्त जातियों (Extinct Species) के स्वभाव (Nature) एवं व्यवहार (Behavior) का अनुमान सुपरिरक्षित जीवाश्मों (Well-preserved Fossils) से लगाया जा सकता है।
– जीवाश्मों से एक जीव के सम्पूर्ण आवास (Habitat) का पुनः निर्माण करना भी सम्भव है।
जीवाश्म उदाहरण: आर्कियोप्टेरिक्स (Archaeopteryx)
आर्कियोप्टेरिक्स (Archaeopteryx) सरीसृप (Reptile) और पक्षियों (Birds) दोनों के लक्षण प्रदर्शित करता है, जो इसे एक महत्वपूर्ण कड़ी बनाता है।
आर्कियोप्टेरिक्स के सरीसृप समान लक्षण (Reptilian Characteristics of Archaeopteryx):
– शरीर अक्ष (Body Axis) अधिक या कम छिपकली समान (Lizard-like) होता है।
– लम्बी पूंछ (Long Tail) की उपस्थिति।
– अस्थियां वातवीय नहीं होती (Bones are not Pneumatic).
– जबड़ों में एक समान दांत (Uniform Teeth) उपस्थित होते हैं।
– कमजोर उरोस्थि (Weak Sternum) की उपस्थिति।
– मुक्त पुच्छ कशेरूक (Free Caudal Vertebrae) की उपस्थिति जैसे छिपकली में पाई जाती है।
– हाथ प्रारूपिक सरीसृप तल का वहन करते हैं, एवं प्रत्येक अंगुली के अन्त में एक नखर (Claw) होता है।
आर्कियोप्टेरिक्स के पक्षियों समान लक्षण (Avian Characteristics of Archaeopteryx):
– शरीर पर परों (Feathers) की उपस्थिति।
– दोनों जबड़े रूपांतरित होकर चोंच (Beak) बनाते हैं।
– अग्र पाद (Forelimbs) पंखों (Wings) में रूपांतरित होते हैं।
– पश्च पाद (Hind Limbs) प्रारूपिक पक्षियों तल पर बने होते हैं।
– कपाल अस्थियों (Skull Bones) का एक घनिष्ठ संलयन (Fusion), जैसा पक्षियों में देखा जाता है।
जीवाश्मों के वितरण का विश्लेषण (Analysis of Fossil Distribution):
ऐतिहासिक समय में जब भिन्न-भिन्न जातियां निर्मित हुई थीं या विलुप्त हो गई थीं, उनका अनुमान चट्टानों के विभिन्न स्तरों में जीवाश्मों के वितरण (Distribution of Fossils in Different Layers of Rocks) के ध्यानपूर्वक विश्लेषण द्वारा लगाया जा सकता था।
Evidences of Evolution in Hindi
इन्हें भी पढ़े
- रासायनिक विकास (Chemical Evolution)
- पृथ्वी पर जीवन की उत्पत्ति
- पारितंत्र सेवाएँ (Ecosystem Services)
- पोषक चक्र (Nutrient Cycling)