मलेरिया एवं प्लाज्मोडियम
Malaria and Plasmodium Hindi , मलेरिया के बारे में नोट्स (Notes on Malaria), मलेरिया एवं प्लाज्मोडियम
1. मलेरिया का परिचय (Introduction to Malaria)
प्रोटोजोआ द्वारा जनित सभी संक्रमणीय रोगों में से मलेरिया मनुष्य के लिए सबसे हानिकारक है। यह रोग उष्णकटिबंधों, उपोष्णकटिबंधों, और समशीतोष्ण क्षेत्रों के कुछ हिस्सों में व्यापक रूप से फैलता है।
मलेरिया सदियों से मानव के लिए एक विनाशकारी रोग रहा है। । उदाहरण के लिए, ग्रीक और रोमन साम्राज्यों के पतन में मलेरिया का विशेष योगदान रहा है।
संक्षिप्त इतिहास (Brief History)
उन्नीसवीं सदी तक यह माना जाता था कि मलेरिया गंदी और नम हवा के कारण होता है। इसीलिए इसका नाम ‘मलेरिया’ (Mal = गंदी + aria = हवा) रखा गया। लान्सिसी (Lancisi, 1717) ने सर्वप्रथम मलेरिया का संबंध मच्छरों से बताया। सन् 1897 में भारतीय सेना के डॉ. रोनाल्ड रॉस (Dr. Ronald Ross) ने मादा एनोफिलीज मच्छर में प्लास्मोडियम की ओऑसिस्ट्स (Oocysts) देखी और इस खोज के लिए उन्हें 1902 में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
- मलेरिया का प्रारंभिक धारणा:
प्रारंभ में मलेरिया को दलदल से निकलने वाली बदबूदार गैसों के कारण होने वाला रोग माना गया था, इसलिए इसका नाम ‘मलेरिया’ रखा गया। यह इटली का शब्द है, जिसका अर्थ है ‘खराब वायु’ (Mal-aria)। - मलेरिया शब्द की उत्पत्ति:
‘मलेरिया’ शब्द को मैक्युलोच (Macculloch, 1837) द्वारा दिया गया। - मलेरिया परजीवियों की खोज:
एक फ्रेंच आर्मी चिकित्सक, चार्ल्स लैवरॉन (Charles Laveran, 1880) ने मलेरिया रोगी के रक्त में मलेरिया के परजीवी (Plasmodium vivax एवं Plasmodium malariae) की खोज की। - प्लाज्मोडियम की अन्य खोजें:
स्टेफेन्स ने प्लाज्मोडियम ओवेल (Plasmodium ovale) की खोज की, और वेल्च ने प्लाज्मोडियम फैल्सीपरम (Plasmodium falciparum) की खोज की। लान्सिसी ने यह संदेह व्यक्त किया कि मलेरिया वहां होता है, जहां मच्छर पाये जाते हैं। - मलेरिया के संचरण का सिद्धांत:
रिचर्ड (Richard, 1892) ने यह समझाया कि मलेरिया के संचरण में कुछ रक्त चूसने वाले कीट सम्मिलित होते हैं। - मच्छरों की भूमिका:
स्कॉटलैंड के चिकित्सक पैट्रिक मेन्सन (Patrick Manson, 1894) ने बताया कि मलेरिया के संचरण में मच्छर की कुछ भूमिका होती है। - रॉनाल्ड रॉस की खोज:
भारतीय सेना के एक चिकित्सक, सर रॉनाल्ड रॉस (Sir Ronald Ross, 1897) ने मच्छर एवं मलेरिया के मध्य संबंध को प्रमाणित किया। 29 अगस्त 1897 को, रॉनाल्ड रॉस ने मादा एनाफिलीज मच्छर के क्रोप में प्लाज्मोडियम के ऊसिस्ट (Oocyst) अवस्था को देखा। इसलिए 29 अगस्त को ‘मच्छर दिवस’ (Mosquito Day) के रूप में मनाया जाता है। उनकी इस बहुमूल्य खोज के लिए, रॉनाल्ड रॉस को 1902 में चिकित्सा के नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया। - मलेरिया परजीवी का जीवन चक्र:
बी. ग्रासी (B. Grassi, 1917) के द्वारा मादा एनाफिलीज मच्छर में मलेरिया परजीवी के जीवन चक्र का अध्ययन किया गया। ए. बिगनामी (A. Bignami) एवं जी. बैस्टियनैली (G. Bastianelli) ने भी मलेरिया के अध्ययन में योगदान दिया। - रक्त में परजीवियों की वृद्धि का अध्ययन:
मनुष्य के रक्त में इरिथ्रोसायटिक शाइजोगोनी (Erythrocytic Schizogony) का अध्ययन गॉल्जी (Golgi, 1885) द्वारा किया गया। - यकृत में परजीवियों का विकास:
ई. शार्ट (E. Shortt, 1948) ने मनुष्य के यकृत में मलेरिया परजीवी के विकास का वर्णन किया। - मलेरिया परजीवियों का मोनोग्राफ:
मलेरिया परजीवियों के मोनोग्राफ का लेखन पी.सी.सी. गरनहेम (P.C.C. Garnham, 1996) द्वारा किया गया, और उनकी स्पष्ट संरचना एम. रूदजिन्सका (M. Rudzinska, 1969) द्वारा अवलोकित की गई।
उद्भवन काल (Incubation Period of Malaria and Plasmodium Hindi)
मलेरिया परजीवियों की चार प्रजातियाँ पाई जाती हैं। मानव शरीर में प्लास्मोडियम के स्पोरोजाइट्स (Sporozoites) के प्रवेश से लेकर रोग के पहले आक्रमण तक के समय को उद्भवन काल कहा जाता है।
2. प्लाज्मोडियम की प्रजातियाँ (Species of Plasmodium)
मलेरिया उत्पन्न करने वाले प्लाज्मोडियम की चार प्रजातियां होती है।
मलेरिया का प्रकार (Type of Malaria) | जाति (Species) | उद्भवन काल (Incubation Period) |
बेनिगनटर्टेन (Benigntertain) | प्लास्मोडियम वाइवेक्स (Plasmodium vivax) | 10 दिन |
मैलिगनेंटटर्टेन (Malignanttertain) | प्लास्मोडियम फैल्सीपरम (Plasmodium falciparum) | 10 दिन |
मिल्डटर्टेन (Mild tertain) | प्लास्मोडियम ओवेल (Plasmodium ovale) | 14 दिन |
क्वार्टन (Quartan) | प्लास्मोडियम मलेरी (Plasmodium malariae) | 27-37 दिन |
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3. प्लाज्मोडियम का जीवन चक्र (Life Cycle of Plasmodium)
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- संक्रमित मच्छर का काटना:
जब एक संक्रमित मादा एनाफिलीज मच्छर (Anopheles mosquito) एक व्यक्ति को काटता है, तो मच्छर की लार के साथ बहुत सारे परजीवी (स्पोरोजोइट्स – Sporozoites) मनुष्य के रक्त प्रवाह में प्रवेश कर जाते हैं। - स्पोरोजोइट्स का यकृत में प्रवेश (Pre-Erythrocytic Stage):
रक्त प्रवाह में प्रवेश करने के बाद, स्पोरोजोइट्स (Sporozoites) परिसंचरण के माध्यम से यकृत (Liver) में पहुँचते हैं, जहाँ वे यकृत कोशिकाओं में प्रवेश करते हैं। इस चरण को पूर्व रूधिराणु प्रावस्था (Pre-Erythrocytic Stage) कहा जाता है। - यकृत में मीरोजोइट्स का निर्माण:
यकृत की कोशिकाओं में स्पोरोजोइट्स तेजी से बहुगुणित (Multiply) होते हैं और मीरोजोइट्स (Merozoites) का निर्माण करते हैं। - रक्त कोशिकाओं में मीरोजोइट्स का प्रवेश (Erythrocytic Stage):
5 से 9 दिनों के पश्चात, मीरोजोइट्स यकृत से निकलकर लाल रक्त कोशिकाओं (Red Blood Cells) में प्रवेश करते हैं। इस चरण को रूधिराणु प्रावस्था (Erythrocytic Stage) कहा जाता है। - ट्रोफोजोइट्स और शाइज़ोन्ट्स का निर्माण:
लाल रक्त कोशिकाओं में प्रवेश करने के बाद, मीरोजोइट्स ट्रोफोजोइट्स (Trophozoites) में परिवर्तित होते हैं, जो आगे परिपक्व होकर शाइज़ोन्ट्स (Schizonts) का निर्माण करते हैं। - लाल रक्त कोशिकाओं का विकृत होना:
जब शाइज़ोन्ट्स लाल रक्त कोशिकाओं को नष्ट करते हैं, तो रूधिराणु मीरोजोइट्स (Erythrocytic Merozoites) रक्त प्रवाह में मुक्त हो जाते हैं, जिससे रोगी को मलेरिया ज्वर का आक्रमण (Malaria Fever Attack) होता है। - प्लीहा का बढ़ना:
मलेरिया के संक्रमण के दौरान, लाल रक्त कोशिकाओं का विनाश होता है, और प्लीहा (Spleen) का आकार बढ़ जाता है। कुछ मीरोजोइट्स, जो पुन: संक्रमण का कारण बन सकते हैं, यकृत में लौटकर एक्सो इरिथ्रोसायटिक प्रावस्था (Exo-Erythrocytic Stage) में विकसित होते रहते हैं। यह प्रावस्था प्लाज्मोडियम फेल्सीपेरम (Plasmodium falciparum) के जीवन चक्र में अनुपस्थित होती है। - गैमिटोसाइट्स का निर्माण:
कुछ मीरोजोइट्स शाइज़ोन्ट्स में विकसित नहीं होते हैं, बल्कि अज्ञात कारणों से नर और मादा गैमिटोसाइट्स (Male and Female Gametocytes) में विकसित होते हैं। - गैमिटोसाइट्स का मच्छर द्वारा अर्न्तग्रहण:
जब एक मच्छर संक्रमित व्यक्ति को काटता है, तो ये गैमिटोसाइट्स मच्छर के शरीर में प्रवेश कर जाते हैं। - मच्छर के आमाशय में जनन:
मच्छर के आमाशय (Stomach) में गैमिटोसाइट्स आपस में मिलकर युग्मन करते हैं और स्पोरोजोइट्स (Sporozoites) का निर्माण करते हैं। - स्पोरोजोइट्स का मच्छर की लार ग्रंथियों में पहुँचना:
बने हुए स्पोरोजोइट्स मच्छर की लार ग्रंथियों (Salivary Glands) में पहुँच जाते हैं। - चक्र का पूर्ण होना:
जब मच्छर एक नए व्यक्ति को काटता है, तो ये स्पोरोजोइट्स मनुष्य के रक्त प्रवाह में पुनः प्रवेश कर जाते हैं, और इस प्रकार मलेरिया के जीवन चक्र का पूरा चक्र पुनः शुरू हो जाता है।
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3. रोग के लक्षण एवं प्रावस्थाएँ (Symptoms and Phases of Disease)
पूर्व-लक्षण (Prodromal Symptoms)
मलेरिया में बुखार चढ़ने से पहले रोगी को सिर दर्द (Headache), जोड़ों में दर्द (Joint ache) आदि लक्षण महसूस होते हैं और उसे ठंड लगती है।
दौरे (Paroxysm)
मलेरिया का मुख्य आक्रमण कई प्रकार की शारीरिक प्रक्रियाओं के बाद होता है। एरिथ्रोसाइट चक्र की प्रक्रिया पूरी होने पर हेमोजोइन (Haemozoin) और अन्य विषैले पदार्थों की अधिक मात्रा में उत्पन्न होते हैं। जिसे निम्नलिखित लक्षण उत्पन्न होते हैं-
- कंपकंपी लगकर ठण्ड के साथ बुखार आना।
- रोगी को दिल की धड़कन (Heart beat) तेज हो जाती है।
- सिर और कमर में दर्द होता है।
- पसीना अधिक निकलता है।
- इस दौरान रोगी का तापमान 104°-105°F तक बढ़ जाता है।
रोग के प्रकार (Types of Malaria Malaria and Plasmodium Hindi)
(i) तृतीयक मलेरिया (Tertian Malaria): इसमें बुखार का दौर हर 48 घंटे (तीसरे दिन) आता है। यह प्लास्मोडियम वाइवेक्स (Plasmodium vivax), प्लास्मोडियम फेल्सीपरम (P. falciparum), और प्लास्मोडियम ओवेल (P. ovale) के संक्रमण से होता है।
(ii) चतुर्थक मलेरिया (Quartan Malaria): इसमें बुखार का दौर हर 72 घंटे (चौथे दिन) आता है। यह प्लास्मोडियम मलेरी (Plasmodium malariae) के कारण होता है।
(iii) दैनिक मलेरिया (Quotidian Malaria): इसमें बुखार का दौर प्रतिदिन आता है।रोज़ाना निश्चित समय पर बुखार होती।
4. मलेरिया का नियंत्रण और उपचार (Control and Treatment of Malaria)
- घर के चारों ओर सफाई रखें और जलाशयों में तेल आदि डालें ताकि मच्छरों के लार्वा न पनप सकें। शरीर पर मच्छर प्रतिरोधक क्रीम (Mosquito repellent cream) लगाएं।
- जलाशयों में DDT या अन्य कीटनाशक का छिड़काव करें।
- कुछ मछलियाँ जैसे गैंबूसिया, ट्राउट, मच्छरों के लार्वे को खा जाती हैउनको जलाशय में पालना चाहिए।
मलेरिया का उपचार (Treatment of Malaria)
कुनैन (Quinine) एक प्राचीन औषधि है जो 300 वर्षों से मलेरिया के उपचार में उपयोग की जा रही है।जो सिनकोना पादप की छाल से प्राप्त होती।
इसके अलावा, कृत्रिम औषधियाँ जैसे एंटेब्रिन (Atebrine), बैसोविन (Basquin), एमक्विन (Emquin), क्लोरोक्विन (Chloroquine), निवाक्विन (Nivaquine), रेसोचिन (Resochin), और मैलोसाइड (Malocide) आदि भी प्रभावी हैं। ये औषधियाँ प्लास्मोडियम की सभी अवस्थाओं को नष्ट कर देती हैं।
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