बुद्धि के सिद्धांत एवं संवेगात्मक बुद्धि

बुद्धि के सिद्धांत (Theory of intelligence)

अलग-अलग मनोवैज्ञानिकों द्वारा बुद्धि के कई सिद्धांत दिए गये है। जिनमें से कुछ निम्न प्रकार है-

  • एक तत्व सिद्धांत (One-Factor Theory)
  • द्वितत्व सिद्धांत (Two-Factor Theory)
  • त्रितत्व सिद्धांत (Three-Factor Theory)
  • बहुतत्व सिद्धांत (Multi-Factor Theory)
  • समूहतत्व सिद्धांत (Group-Factor Theory)
  • त्रिआयामी सिद्धांत (Three Dimensional Theory)
  • बहु बुद्धि कारक सिद्धांत (Theory of Multiple Intelligence)
  • प्रतिचयन या प्रतिदर्श  सिद्धांत (Sampling theory)
  • सूचना प्रसारण सिद्धांत (Information transmission theory)
  • मानसिक योग्यता सिद्धांत (Mental ability theory)
  • पदानुक्रमिक सिद्धांत (Hierarchical Theory)

 

एक तत्व सिद्धांत

इस सिद्धांत का प्रतिपादन अल्फ्रेड बिने ने किया। अल्फ्रेडबिने के अनुसार बुद्धि एक अखंड तथा अविभाज्य एक ही तत्व से निर्मित है।

टरमन, स्टर्न तथा साइमन ने इसका समर्थन किया।

उदाहरण- यदि कोई बालक किसी एक विशेष क्षेत्र में प्रतिभाशाली है। तो दूसरे क्षेत्र में भी श्रेष्ठ साबित होगा। जैसे जॉनसन के अनुसार यदि न्यूटन कविता करते तो वह अच्छे कवि होते।

 

द्वि तत्व सिद्धांत

इस सिद्धांत का प्रतिपादन स्पीयरमेन ने किया। स्पीयरमेन ने बुद्धि के दो तत्व सामान्य कारक (general ability) तथा विशिष्ट कारक (specific abilities) बताए हैं।

सामान्य कारक

इसको G कारक भी कहा जाता है। यह कारक जन्मजात होता है। तथा वंशानुगत लक्षणों के रूप में प्राप्त होता है। इस पर परीक्षण एवं वातावरण का प्रभाव नहीं पड़ता।

यह अर्जित नहीं किया जा सकता। सभी क्रियाओं के लिए इसका मान इकाई होता है। स्पीयरमेन सामान्य कारक को सामान्य मानसिक ऊर्जा कहा है।

विशिष्ट कारक

इसको S कारक भी कहा जाता है। यह वंशानुगत नहीं होता। यह वातावरण द्वारा अर्जित कारक है। परीक्षण एवं वातावरण का इस पर प्रभाव पड़ता है। प्रत्येक कार्य के लिए इसका मान अलग-अलग होता है।

 

त्रितत्व सिद्धांत

इसका प्रतिपादन भी स्पीयरमेन किया। स्पीयरमेन अपने द्वि तत्व सिद्धांत में संशोधन करके तीसरा तत्व सामूहिक तत्व (Collective Factor) जोड़ा इसके अनुसार कुछ व्यक्ति ऐसे होते हैं, जिनमें सामान्य कारक (G Factor) तथा विशिष्ट कारक (S Factor) दोनों साथ भी पाये जाते है।

 

बहुतत्व सिद्धांत

इस सिद्धांत का प्रतिपादन थार्नडाइक ने किया। थार्नडाइक ने बताया कि बुद्धि एक, दो या तीन तत्व न होकर बहु तत्व युक्त होती है। प्रत्येक तत्व एक अलग क्रिया को संपन्न करता है।

 

थार्नडाइक ने अपने सिद्धांत की तुलना बालू रेत के टीले से की तथा उन्होंने इसमें आकृति, आकार, लंबाई, चौड़ाई आदि गुणों का समावेश किया।

थार्नडाइक के इस सिद्धांत को परमाणुवादी सिद्धांत भी कहा जाता है।

 

समूह तत्व सिद्धांत

इस सिद्धांत का प्रतिपादन थस्टर्न के द्वारा किया। थस्टर्न ने बताया कि बुद्धि एक, दो, तीन या बहुत व न होकर समूह तत्व के रूप में उपस्थित होती है। अर्थात बुद्धि इकाई ना होकर इकाइयों का समूह है।

थस्टर्न ने इन समूहों की संख्या 7 बताई है। जो निम्न हैं-

  1. आंकिक क्षमता (Numerical Ability)
  2. स्मृति संबंधी क्षमता (Memory Ability)
  3. तार्किक क्षमता (Reasoning Ability)
  4. शब्द परवाह क्षमता (Word flow Ability)
  5. स्थानिक क्षमता (Spatial Ability)
  6. शाब्दिक योग्यता (Verbal Ability)
  7. प्रत्यक्षात्मक (Perceptual Ability)

थस्टर्न ने इन समूहों को आधार मानते हुए “Primary Mental Ability Test (PMAT)” नामक पुस्तक लिखी।

 

त्रिआयामी सिद्धांत

इस का प्रतिपादन गिलफोर्ड ने किया। इस सिद्धांत के अनुसार तीन कारक बुद्धि को नापते हैं-

  1. विषय वस्तु (Content)
  2. संक्रिया (Operation)
  3. उत्पाद (Product)

 

विषयवस्तु

किसी समस्या को सुलझाने हेतु काम में ली गई सामग्री विषय-वस्तु कहलाती है। विषय वस्तु चार प्रकार की होती हैं। विषय वस्तु में संशोधन करके इनकी संख्या 5 कर दी गई है-

  1. दृश्य (Visual)
  2. श्रवण (Auditory)
  3. शाब्दिक (Semantic)
  4. सांकेतिक (Symbolic)
  5. व्यवहारिक (Behavioral)

संक्रिया

सामान्य समस्या समाधान हेतु अपनायी गयी क्रिया संक्रिया कहलाती है। किसी समस्या को सुलझाने के लिए अपनाएं की संक्रिया प्रक्रिया कहलाती है। संक्रिया पांच प्रकार की होती हैं-

  1. स्मृति प्रतिधारण (Memory Retention)
  2. मूल्यांकन (Evaluation)
  3. अपसारी चिंतन (Divergent Production)
  4. अभिसारी चिंतन (Convergent Production)
  5. संज्ञानात्मक (Cognition)

उत्पाद

विषयवस्तु में संक्रिया लागू करने पर जो परिणाम प्राप्त होते हैं उसे उत्पाद कहते है उत्पाद छः प्रकार के होते हैं

  1. इकाई (Units)
  2. वर्ग (Classes)
  3. संबंध (Relations)
  4. प्रणाली (Systems)
  5. रूपांतरण (Transformations)
  6. निहितार्थ (Implications)

 

इस सिद्धांत को बुद्धि संरचना मॉडल (structure of intellect mode), बॉक्समॉडल, घनाकार कोष्ठ मॉडल आदि नामों से भी जाना जाता है।

बहु बुद्धि कारक सिद्धांत

इस सिद्धांत का प्रतिपादन गार्डनर ने किया। गार्डनर के अनुसार बुद्धि के 10 कारक है। ये कारक निम्न हैं-

  1. भाषाई बुद्धि-लेखक, साहित्यकार, शिक्षक प्रवक्ता
  2. संगीतात्मक बुद्धि– संगीतज्ञ, गीतकार, वाद्य यंत्र बजाने वाले
  3. तार्किक बुद्धि – सांख्यिकी विशेषज्ञ, गणितज्ञ, वकील, अनुसंधान अधिकारी, वैज्ञानिक
  4. स्थानिक बुद्धि– कारीगर, मूर्तिकार, चित्रकार, मिस्त्री, इंजीनियर आदि
  5. शारीरिक गतिज बुद्धि – नृत्य करने वाले, मुक्केबाज, शल्य चिकित्सक,एयर फोर्स का पायलट,एथलीट, तैराक, खिलाड़ी आदि
  6. अन्तरावैयक्तिक बुद्धि – योगी, तपस्वी, संत,
  7. अन्तवैयक्तिक बुद्धि – वकील, डॉक्टर,कैरियरकाउंसलर, राजनेता, सामाजिक कार्यकर्ता, शिक्षक आदि
  8. अस्तित्ववादी बुद्धि – दार्शनिक, विचारक, चिंतक, साहित्यकार, बुद्ध
  9. प्रकृतिवादी बुद्धि- किसान, जंतु वैज्ञानिक, वनस्पति वैज्ञानिक, पर्यावरण विशेषज्ञ
  10. अध्यात्मवादी बुद्धि- लोक परलोक को जोड़ने वाले व्यक्ति

 

प्रतिचयन या प्रतिदर्श  सिद्धांत

यह थॉमसन द्वारा दिया गया। इसे का प्रादर्शमॉडल भी कहा जाता है। जैसे गेहूं का मुट्ठी में लेकर जांच करना।

 

मानसिक योग्यता सिद्धांत

यह केली के द्वारा दिया गया

 

सूचना प्रसारण सिद्धांत

इसका प्रतिपादन स्टैनफोर्ड ने किया।

 

पदानुक्रमिक सिद्धांत

यह वेरनोन (Vernon) द्वारा दिया गया

 

संवेगात्मक बुद्धि

स्वयं की भावनाओं के साथ-साथ दूसरों की भावनाओं को पहचानने और प्रबंधित करने की क्षमता संवेगात्मक बुद्धि है। इसको Emotional quotient (EQ), Emotional Intelligance तथा भावनात्मक बुद्धि भी कहा जाता है।

संवेग का अंग्रेजी शब्द इमोशन (Emotion) ग्रीक भाषा के शब्द इमोवियर (Emorveere) से बना है जिसका अर्थ उत्तेजित करना, उथल-पुथल मचाना, क्रांति उत्पन्न करना, आदि है।

संवेग के प्रकार

यह दो प्रकार का होते है-

  1. सुखद संवेग (Pleasant Emotions)
  2. दुःखद संवेग (Sad Emotions)

सुखद संवेग

इनके कारण व्यक्ति में नई शक्ति उजागर होती है। उसको आनन्द तथा प्रसन्नता प्राप्त होती है वह कार्यों को कुशलता के साथ करने लगता है।

दुःखद संवेग

इनके कारण व्यक्ति में निराशा बढ़ती है। उसकी कार्य क्षमता में कमी आती है। वह ईर्ष्या, भय, चिंता आदि का शिकार हो जाता है।

 

संवेगात्मक बुद्धि की विशेषताएं

  • संवेग अचानक उत्पन्न होते है।
  • संवेगों में तीव्रता होती है।
  • संवेग क्षणिक होते है।
  • संवेग से मानसिक एवं शारीरिक परिवर्तन आते है।
  • संवेगात्मक बुद्धि हमें बताते हैं कि कोई व्यक्ति जीवन में कितना सफल होगा।

 

संवेगात्मक बुद्धि का अध्ययन तथा इतिहास

संवेगात्मकबुद्धि के बारे में सबसे पहले डॉक्टर पीटर सलावे (Peter Salovey) तथा डॉक्टर जॉन मेयर (John Mayer) ने बताया। लेकिन इसके जिस स्वरूप वर्तमान में उपयोग किया जाता है, वह मनोवैज्ञानिक डॉक्टर डैनियल गोलमैन (Daniel Goleman) के द्वारा दिया गया।

डॉ डैनियन गोलमैन ने अपनी पुस्तक “संवेगात्मक बुद्धि – यह बुद्धिलब्धि से बेहतर क्यों हो सकता है ( Emotional Inteligence- why it can better more than IQ)” में संवेगात्मक बुद्धि शब्द का प्रयोग किया।

गोलमेन संवेगात्मक बुद्धि का सूत्र

=(संवेगात्मकआयु)/(वास्तविकआयु)×100

डैनियल गोलमैन (Daniel Goleman) के अनुसार व्यक्ति के जीवन कि सफलता का मंत्र 20 प्रतिशत बुद्धिलब्धि के कारण तथा 80 प्रतिशत संवेगात्मक बुद्धि के कारण होता है।

सिरिल बटी शिक्षालब्धि सूत्र

=(शैक्षिकआयु)/(वास्तविकआयु)×100

शारीरिक लब्धि सूत्र

=(शारीरिकआयु)/(वास्तविकआयु)×100

 

संवेगात्मक बुद्धि का अभिप्राय अपनी तथा दूसरों की भावनाओं, संवेदनाएं तथा संवेगों को समझना व उद्देश्य प्राप्ति में उनका प्रयोग करना है।

संवेगात्मक बुद्धि के अनुप्रयोग

इसका उपयोग समाज में उचित स्थान प्राप्त करने हेतु किया जा सकता है।

इसके द्वारा संबंधों तथा रिश्तो में घनिष्ठा बनाए रखी जा सकती है।

यह जीवन को सुखमय तथा शांतिमय बनाने में आवश्यक है।

ये वांछित सफलता प्राप्त करने में मदद करती है।

यह बालक को कक्षा में प्रथम स्थान प्राप्त करने के लिए तैयार करती है।

उच्च उपलब्धि अभिप्रेरणा स्तर प्राप्ति हेतु सहायक है।

यह क्रोध नियन्त्रण हेतु अभ्यास तथा परिक्षण में सहायक है।

संवेगात्मक बुद्धि के तत्व

डैनियल गोलमैन (Daniel Goleman) में भावनात्मक बुद्धि के पांच तत्व बताये है जो निम्न है।

  1. स्व-जागरूकता (Self-Awareness)
  2. सामजिक जागरूकता (Social Awareness)
  3. स्व नियमन (Self-Regulation)
  4. आत्म अभिप्रेरण (Self-Motivation)
  5. सहानुभूति या समवेदना (Empathy)

 

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