
आर्तव चक्र (menstrual cycle)
प्राइमेट मादाओं में होने वाले जननिक चक्रीय परिवर्तन को आर्तव चक्र या मासिक धर्म या माहवारी कहते है।
रजोदर्शन (menarch)
10-14 वर्ष की आयु में प्रथम बार आर्तव चक्र की शुरुआत को रजोदर्शन (menarch) कहते है।
रजोनिवृति (menopause)
45-50 वर्ष की आयु में आर्तव चक्र लगभग बंद हो जाता है। और मादा में अंडाणुओं का निर्माण नहीं होता इसे रजोनिवृति (menopause) कहते है।
रजोदर्शन (menarch) तथा रजोनिवृति (menopause) के मध्य की अवधि को जनन अवधि कहते है।
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आर्तव चक्र को निम्न प्रव्स्थाओ में विभक्त किया जाता है-
- स्रावी प्रावस्था (menses phases)
- पुटकीय प्रावस्था (follicular phase)
- अण्डोत्सर्ग प्रावस्था (ovulatory phase)
- ल्युटीयल प्रावस्था (luteal phase)
स्रावी प्रावस्था (Menses phases)
यह 1 से 5th दिन के मध्य होती है। निषेचन की प्रक्रिया नहीं होने पर अनिषेचित अण्डाणु का योनी (Vagina) के माध्यम से निष्कासन होता है।
इस दौरान पीत पिण्ड (Carpus Lutium) ह्रासित होता है और यह श्वेत पिण्ड (Carpus Abucans) में बदल जाता है।
कार्पस ल्युटीयम के ह्रासित होने पर किसी प्रकार के हॉर्मोन का स्राव नहीं होता जिससे गर्भाशय के अन्त स्तर (endometrium) का विखंडन होने लगता है।
योनी मार्ग द्वारा रक्त के रूप में गर्भाशय अन्त स्तर (endometrium) तथा अनिषेचित अण्डाणु को बहार निकाल दिया जाता है जिसे ऋतु स्रावी कहते है।
पुटकीय प्रावस्था (Follicular phase)
यह 6th से 13th दिन के मध्य होती है।
इस प्रावस्था के दौरान अण्डाशय के अन्दर प्राथमिक पुटक (Primary follicle) में वृद्धि होती है। और यह एक पूर्ण परिपक्व ग्राफीयन पुटक (Graafian follicle) में बदल जाता है।
गर्भाशय में पुनरुदभवन (proliferation) के द्वारा अन्तस्तर (endometrium ) का पुन: निर्माण होता है। इसलिए इसे पुनरुदभवन प्रावस्था (proliferation phase) भी कहते है।
अण्डाशय तथा गर्भाशय में इस प्रकार का परिवर्तन पीयुष हार्मोन (Pittutary gland) तथा अण्डाशयी हार्मोन द्वारा प्रेरित होते है।
पीयुष ग्रंथि (Pittutary gland) द्वारा गोनेडोट्रोपिनस (LH a FSH) का स्राव अधिक होता है।
गोनेडोट्रोपिनस (LH a FSH) पुटकीय परिवर्धन (Follicle Development) को प्रेरित करता है। तथा साथ ही पुट्को द्वारा एस्ट्रोजन हार्मोन के स्राव को प्रेरित करता है।
अण्डोत्सर्ग प्रावस्था (Ovulatory phase)
LH व FSH का स्राव आर्तव चक्र के मध्य में (14 वे दिन) सर्वाधिक होता है। जिसे LH सर्ज कहते है।
14 वे दिन LH सर्ज ग्राफियन पुटक के फटने को प्रेरित करता है जिससे ग्राफीयन पुटक फटकर अण्डाणु को मोचित करता है। इसे अण्डोत्सर्ग (Ovulation) कहते है।
पीतक/ ल्युटीयल प्रावस्था (Luteal phase)
यह 15th से 28th दिन के मध्य होती है।
इस प्रावस्था को पश्च अण्डोत्सर्ग प्रावस्था (Post ovulation phase) या स्रावी पूर्व प्रावस्था permenstrual phase भी कहते है।
अण्डोत्सर्ग पश्चात शेष बचे पुटकीय कोशिकाओ के द्वारा एक पीत पिण्ड (कार्पस ल्युटीयम) का निर्माण होता है।
पीत पिण्ड (कार्पस ल्युटीयम) प्रोजेस्ट्रोन हार्मोन का स्राव करता है।
प्रोजेस्ट्रोन हार्मोन गर्भाशय के अन्त स्तर (endometrium) को बनाय रख़ने का कार्य करता है।
यह हार्मोन अन्तस्तर (endometrium) में निषेचित अंड के अन्तरोपण (Implantation) तथा सगर्भता (Pregnancy) को बनाय रखने का कार्य करता है।
सगर्भता (Pregnancy) के दौरान आर्तव चक्र बंद हो जाता है।
यदि निषेचन नहीं होता तो रक्त स्रावी प्रावस्था पुनः आ जाती है।
स्रावी प्रावस्था (menses phases) की अनुपस्थिति निषेचन (Fertilization) तथा गर्भधारण (Pregnancy) का संकेत है।
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