नर जनन तंत्र

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नर जनन तंत्र – Male Reproductive System


नर के लैंगिक अंग में वृषण, वृषण कोष, अधिवृषण, शुक्रवाहक, मूत्र मार्ग, शिश्न तथा सहायक ग्रंथियाँ सम्मिलित है| जिनकी सरंचना और कार्य निम्न प्रकार है-


A)वृषण (TESTES) एकवचन (TESTIS)


नर के लैंगिक अंग में वृषण (Testis) प्रमुख जनन ग्रंथियां (reproductive gland) हैं। ये उदर से बाहर त्वचा व संयोजी उतकों (Connective tissue) की बनी एक थैली के भीतर स्थित होते हैं। जिन्हें वृषण कोष (SCROTUM) कहते हैं।
वृषणकोष सामान्य नाम अंडकोश/फोता है।
संरचनात्मक रूप से प्रत्येक वृषण श्वेत तंतु युक्त संयोजी ऊतकों के एक संपुट (Capsule) में बंद रहता हैं जिसमें तीन परतें होती है-

  1. सबसे बाहर TUNICA VAGINALIS
  2. मध्य में  TUNICA ALBUGINEA
  3. सबसे अन्दर TUNICA VASCULOSA

प्रत्येक वृषण में लगभग 250 वृषण पलिकाएँ (Testicular lobules) होती है।  तथा  प्रत्येक वृषण पालिका (Testicular lobule) में 2-3  अत्यधिक कुंडलित (convoluted) नलिकाएं होती हैं। जिन्हें शुक्रजनक नलिकाएं(SEMINIFEROUS TUBULES) (संख्या 750-1000) कहते हैं।
शुक्रजनक नलिकाएं में सरटोली(Sertoli) तथा नर जर्म कोशिका  (male germ cells) होती है।
सरटोली कोशिका शुक्राणुओं को पोषण देती है। तथा इन्हिबिन नामक प्रोटीन हॉर्मोन का स्राव होता है। जो FSH हॉर्मोन के कार्य का नियमन करता है।
नर जर्म कोशिका  शुक्राणुओं का निर्माण करती है।
शुक्र जनक नलिकाओं के बीच में खाली स्थान (interstitial space) होता है। जिनमें  लीडिग कोशिकाएं (Lyding cells) होती है। ये कोशिका नर लिंग हार्मोन टेस्टोस्टेरॉन का स्राव करती हैं। टेस्टोस्टेरॉन नर में प्राथमिक व गौण लैंगिक लक्षणों को बनाए रखता है।
शुक्र जनक नलिकाएँ छोटी-छोटी नलिकाओं के घने जाल में खुलती है। जिसे वृषण जालक (Rete testis) कहते है।
वृषण जालक (Rete testis) से 15-20 शुक्रवाहिकाएँ (Vasa efferentia) निकलती है। जो अधिवृषण में खुलती है।


B)वृषण कोष(SCROTUM)


वृषण कोष ताप नियंत्रक की भाँति  कार्य करता है। यह वृषण का तापमान शरीर के तापमान  से 2-3 ºC नीचे बनाये रखता है। जो तापमान शुक्राणुओं के परिवर्धन के लिये अनुकूल होता है।
वृषण कोष डारटोस पेशी (Dartos muscle) तथा क्रिमास्टर पेशी (Cremaster muscle) के द्वारा उदर गुहा से जुड़ा रहता है।
सर्दियों में वृषण कोष का ताप कम होने पर डारटोस पेशी (Dartos muscle) तथा क्रिमास्टर पेशी (Cremaster muscle)   सिकुड़कर वृषण कोष (Testicle) को उदरगुहा के पास कर लेती है।
यदि शरीर का ताप अधिक होता है तो डारटोस पेशी तथा क्रिमास्टर पेशी शिथिल होकर वृषण कोष को उदरगुहा से दूर कर लेती है।
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जनन के समय वृषण जब उदर गुहा के बाहर वृषण कोष में नहीं आते तो इसे CRYPTORCHIDISM  कहते है।


C)अधिवृषण(EPIDIDYMIS)


प्रत्येक अधिवृषण (epididymis) एक लंबी अत्यधिक कुंडलित (convoluted) नली है। जो वृषण से जुड़ी रहती है और वृषण कोष के अन्दर विद्यमान रहती है। अधिवृषण में शुक्राणु संचित रहते हैं।
अधिवृषण शुक्राणुओं (Sperm) के वृषण से परिवहन के लिये एक मार्ग प्रदान करता है।
अधिवृषण के तीन भाग होते है-

  1. शीर्ष अधिवृषण (Caput epididymis)
  2. मध्य अधिवृषण (Corpus epididymis)
  3. पुच्छक अधिवृषण (Cauda epididymis)

D)शुक्रवाहक(VAS DEFERENS)


प्रत्येक अधिवृषण से नली के रूप में एक शुक्रवाहक निकलता है। यह मूत्राशय के ऊपर से होता हुआ आगे बढ़कर उदर के भीतर पहुँचता है। और शुक्राशय की वाहिका से मिलकर स्खलनीय वाहिका (EJACULATORY DUCT) का निर्माण करता है।
स्खलनीय वाहिका मूत्र मार्ग में खुल जाती है।


E)मूत्र मार्ग(URETHRA)


नर में मूत्र मार्ग लगभग 15-20 सेमी लंबा व तीन भागों में विभेदित होता है।
अग्रवर्ती प्रोस्टेट – भाग यह कि प्रोस्टेट ग्रंथि से गुजरता हैं।
मध्यवर्ती झिल्लीदार भाग
पश्चवर्ती शिश्नीय भाग =  यह मैथुन अंग (COPULATORY ORGAN)  शिश्न से होकर गुजरता है।
मूत्र मार्ग शुक्र एवं मूत्र दोनों के लिये मार्ग का कार्य करता है।


D)शिश्न(PENIS)


यह एक  बेलनाकार,  कॉर्पस स्पंजीओसम (Corpus spongisum) पेशीय से बना नर का मैथुन अंग  (COPULATORY ORGAN) हैं।
मूत्र मार्ग इसके केन्द्र से होकर गुजरता है। और शुक्र व मूत्र दोनों के लिये एक ही पथ होता है।
लैंगिक उत्तेजना के दौरान स्पंजी ऊतकों में रुधिर भर जाने से यह कड़ा व खड़ा हो जाता है।
नर के लैंगिक अंग


बाह्य रूप से शिश्न त्वचा से ढका रहता है। शिश्न का शीर्ष भाग नरम व अत्यधिक संवेदनशील होता है। जिसे शिश्नमुण्ड(GLANS PENIS) कहते हैं।
शिश्नमुण्ड(GLANS PENIS) त्वचा के एक ढीले वलन से ढका रहता है। जिसे शिश्नमुण्डच्छद(FORE SKIN) कहते हैं। यह आंकुचनशील(ERECTABLE) होता है।


E)सहायक ग्रंथियाँ (ASSOSARY GLAND)


नर के लैंगिक अंग में निम्न सहायक ग्रंथियाँ पायी जाती है –


1) शुक्राशय(SEMINAL VESICLE)


यह एक जोड़ी ग्रंथि है जो मूत्राशय  के आधार  पर स्थित होती इसे UTEROUS MASCULINS भी कहते है।
ये शुक्रीय तरल कर स्राव करती हैं। शुक्रीय तरल में इसमें कार्बोहाइड्रेट (फ्रुक्टोज) तथा प्रोटीन जो शुक्राणुओं को पोषण  प्रदान करता है।
यह स्राव शिश्न से स्खलित शुक्र से बाहर  निकलने वाले वीर्य  का 40-80% प्रतिशत  भाग  होता  है।


2) पुरस्थ/प्रोस्टेट ग्रंथि(PROSTATE)


प्रोस्टेट ग्रंथि मूत्र मार्ग के प्रथम भाग को चारों ओर से घेरे रहती है।
यह एक क्षारीय तरल का स्राव करती है। जो मूत्राशय में विसर्जित होता है।
यह तरल शुक्राणुओं को जीवित रखता है। और उन्हें तेजी से तैरने में सहायता प्रदान करता है।
पुरस्थ ग्रंथि का स्राव वीर्य का 5-30 प्रतिशत भाग होता है।


3) काउपर ग्रंथियाँ(COWPERS GLAND)


इसे बल्बोयुरेथ्रल ग्रथि (BULBO URETHRAL GLAND)  भी कहते है।
ये एक जोड़ी ग्रंथियाँ है। जो प्रोस्टेट ग्रंथि के नीचे स्थित होती हैं ।
काउपर ग्रंथियाँ एक सफेद श्यान क्षारीय स्राव निकालती है। जो स्नेहक (Lubricant) का कार्य करता है।

वीर्य (Semen in Hindi)

वीर्य एक गाढ़ा सफेद रंग का तरल है। जो  शुक्राणु तथा शुक्रजनक नलिकाओं, शुक्राशय, प्रोस्टेट ग्रन्थि तथा बल्बोयुरेथ्रल ग्रन्थि का मिश्रण है।
एक स्खलन (Ejaculation) में वीर्य का औसत आयतन 2-5.5ml होता है, जिसमें 200 से 300 मिलियन शुक्राणु होते हैं, सामान्य जनन क्षमता हेतु लगभग 60 प्रतिशत शुक्राणु सामान्य आकृति वाले होने चाहिये तथा लगभग 40 प्रतिशत शुक्राणु तीव्र गतिशीलता वाले होने चाहिये। जब शुक्राणु की मात्रा 20 मिलियन / मिली के नीचे होती है, तो इसे बंध्यता (Infertility) कहते हैं।
वीर्य का pH  7.2-7.7 होती है।
प्रोस्टेट का स्त्रावण वीर्य को दूधिया बनाता है।
शुक्राशय तथा बल्बोयुरेथ्रल ग्रन्थियों से स्त्रावित द्रव्य चिपचिपी बनावट देता है। तथा वीर्य शुक्राणुओं को परिवहन माध्यम तथा पोषण प्रदान करता है, यह नर मूत्रमार्ग तथा मादा योनि (Male urethra and female vagina) के अत्यधिक अम्लीय वातावरण को उदासीन करता है।
प्रमुख पूछे गये प्रश्न

  1. मानव जनन तंत्र
  2. नर जनन तंत्र का चित्र कैसे बनाएं
  3. पुरुष जनन तंत्र का नामांकित चित्र
  4. नर जनन तंत्र का कार्य
  5. मनुष्य के नर जनन तंत्र के वृषण का क्या कार्य है
  6. मादा जनन तंत्र का चित्र कैसे बनाएं
  7. मनुष्य में नर जनन तंत्र में वृषण का क्या कार्य है
  8. मनुष्य के नर जनन तंत्र में

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इन्हें भी पढ़े

  1. अंत: स्रावी ग्रंथियां एवं हॉर्मोन
  2. हाइपोथैलेमस अन्तःस्त्रावी ग्रंथि के रूप
  3. पीयूष ग्रंथि एवं हॉर्मोन

 

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