राजस्थान के भौतिक प्रदेश

राजस्थान के भौतिक प्रदेश (Rajasthaan ke Bhautik Pradesh)

राजस्थान  विश्व का प्राचीनतम  भूखंड है। जिसका निर्माण टेथिस सागर  तथा गोंडवाना लैंड से हुआ है। राजस्थान की खारे पानी की झीले  एवं थार के मरुस्थल का निर्माण  टेथिस सागर से  तथा  अरावली पर्वत माला  और प्रायद्वीपीय पठार का निर्माण गोंडवाना लैंड से हुआ है।

समुद्रतल से ऊँचाई के आधार पर भौगोलिक क्षेत्र को पांच भागों में बांटा जाता हैं-

  1. पर्वत शिखर
  2. पर्वत श्रंखला
  3. उच्च भूमि या पठार
  4. मैदान
  5. निम्न भूमि

 


पर्वत शिखर या उच्च शिखर

इनकी ऊंचाई समुद्र तल से 900 मीटर से अधिक होती है। जैसे गुरुशिखर, जरगा, सेर, दिलवाडा आदि। यह राजस्थान के

संपूर्ण भौगोलिक क्षेत्र का 1% भाग  है।

पर्वत माला या पर्वत श्रंखला

इनकी ऊंचाई समुद्र तल से 600 से 900 मीटर होती है। जैसे अरावली पर्वत श्रंखला। यह राजस्थान के संपूर्ण भौगोलिक क्षेत्र का 6% भाग है।

उच्च भूमि या पठार

इनकी ऊंचाई समुद्र तल से 300 से 600 मीटर होती है। जैसे नागौर की उच्च भूमि, हाड़ौती का पठार आदि। यह राजस्थान के संपूर्ण भौगोलिक क्षेत्र का 31% है।

मैदान

इसकी ऊंचाई समुद्र तल से 150 से 300 मीटर होती है। जैसे राजस्थान का पूर्वी तथा उत्तरी पूर्वी मैदान इनका निर्माण नदियों द्वारा बहा कर लाई गई मृदा से होता है।  यह राजस्थान के संपूर्ण भौगोलिक क्षेत्र का 51% है।

 

निम्न भूमि

इसकी ऊंचाई 150 मीटर से कम होती है। जैसे खारे पानी की झीले और रन का मैदान। यह राजस्थान के संपूर्ण भौगोलिक क्षेत्र का 11% है।

 

 



धरातलीय स्वरूप के आधार पर राजस्थान के भौगोलिक क्षेत्र को चार भौतिक प्रदेशों में विभक्त किया गया हैं-

  1. थार का मरुस्थल
  2. अरावली पर्वत माला
  3. पूर्वी मैदान
  4. दक्षिणी पूर्वी पठार

 

 

1. थार का मरुस्थल

यह उत्तर पश्चिमी रेतीला मैदान है। यह टेथिस सागर का अवशेष है।  यह ग्रेट पोलियो आर्केटिक अफ्रीकी मरुस्थल का पूर्वी विस्तार है। जो भारत और पाकिस्तान में फैला हुआ है। इसको भारत में मरू प्रदेश या थार का मरुस्थल तथा पाकिस्तान में चोलीस्तान के नाम से जाना जाता है।

थार का रेगिस्तान ऊतर-पश्चिम में लगभग 640 किलोमीटर लम्बा तथा लगभग 300 किलोमीटर चौड़ा है।

 

यह राजस्थान के कुल क्षेत्रफल का 61.11% भाग (209142.25 वर्ग किलोमीटर) है। जो कि लगभग दो तिहाई हिस्सा है। संपूर्ण भारत में 142 डेजर्ट ब्लॉक में से 85 डेजर्ट ब्लॉक राजस्थान में है।

 

थार के मरुस्थल की में कुल जनसंख्या लगभग का 40% भाग (लगभग 2,74,19,375) है।  थार के मरुस्थल में सर्वाधिक जनसंख्या और जैव विविधता पाई जाती है। थार का मरुस्थल विश्व का सबसे युवा और सर्वाधिक जनसंख्या वाला (घनत्व 100 व्यक्ति प्रति वर्ग किमी) मरुस्थल है।

 

थार के मरुस्थल को 25 सेंटीमीटर वर्षा रेखा दो भागों में विभक्त करती हैं-

  1. शुष्क मरुस्थल
  2. अर्द्ध शुष्क मरुस्थल

 

 

शुष्क मरुस्थल

इस भाग में 25 से कम वर्षा होती है। इसका विस्तार कच्छ की खाड़ी से अंतरराष्ट्रीय सीमा के सहारे पंजाब तक है। शुष्क मरुस्थल को पुनः दो भागों में विभक्त किया गया हैं-

  1. बालुका स्पूत (Sand Dunes) युक्त क्षेत्र
  2. बालुका स्तूप मुक्त क्षेत्र

 

A. बालुका स्पूत युक्त क्षेत्र

इसका विस्तार जैसलमेर, बाड़मेर, बीकानेर तथा जोधपुर में है। बालुका स्पूत निम्न प्रकार के होते हैं-

1. अनुप्रस्थ बालुका स्पूत

पवन के वेग के समकोण पर बनने वाले

2. अनुदैर्ध्य बालुका स्पूत

पवन के वेग के समानांतर बनने वाले

3. पैराबोलिक बालुका स्पूत

पवन के वेग के विपरीत दिशा में बनने वाले

4. शब्रकाफीज बालुका स्पूत

मरुस्थलीय वनस्पति के आसपास बनने वाले

5. बरखान बालुका स्पूत

अर्द्धचंद्राकार सर्वाधिक गतिशील  रेत के टीले

6. उर्मिकाएँ बालुका स्पूत

लहरदार बालूका स्पूत

 

सीफ – पवनों के वेग के कारण लम्बे बालूका स्तूप बनते है इनके बीच में कटी आकृति या खली जगह को सीफ कहते है ।

 

B. बालूका स्पूत मुक्त क्षेत्र

इस क्षेत्र में टर्शीअरी युग की अवसादी परतदार चट्टाने पाई जाती है।  जिनमें चुना पत्थर की अधिकता होती है।

इसी क्षेत्र में थार का घड़ा, चंदन नलकूप और लाठी सीरीज भूगर्भिक पट्टी स्थित है।

 

अर्द्ध शुष्क मरुस्थल

इस भाग में 25 से 50 सेंटीमीटर तक वर्षा होती है।  इसे चार भागों में बांटा गया हैं-

  1. लूनी बेसिन
  2. नागौर की उच्च भूमि
  3. शेखावाटी का अन्तःप्रवाही क्षेत्र
  4. घग्घर प्रदेश

 

लूनी बेसिन

नदियों के द्वारा निर्मित मैदान को बेसिन कहते हैं। लूनी बेसिन का निर्माण लूनी नदी के द्वारा हुआ है। इसके अंतर्गत जालौर, पाली तथा बाड़मेर जिले आते हैं। जिनको गोडवाड प्रदेश भी कहा जाता है।

बाड़मेर में मोकलसर से सिवाना तक छप्पन गोलाकार पहाड़ियां हैं जिन्हें छप्पन की पहाड़ियां कहते हैं। इन पहाड़ियों में नाकोड़ा पर्वत व हल्देश्वर की पहाड़ी प्रमुख पहाड़िया है।

हल्देश्वर पहाड़ी पर पिपलुंद गांव बसा हुआ है। जिसे राजस्थान का लघु माउंट आबू भी कहा जाता है। जालौर में जसवंतपुरा की पहाड़ियां है। जिसमें सुंधा/सुंडा पर्वत स्थित है।

नागौर की उच्च भूमि

यह नागौर में फैली हुई है। जो समुंदर तल से लगभग 500 मीटर ऊंचाई पर स्थित है।

शेखावाटी का अंतः प्रवाही क्षेत्र

इसके अंतर्गत सीकर, चूरू तथा झुंझुनू जिलों को सम्मिलित किया गया है। जिन्हें बांगर प्रदेश भी कहा जाता है।

घग्गर प्रदेश

गंगानगर तथा हनुमानगढ़ जिलों का लगभग 75% भाग घग्गर प्रदेश के अंतर्गत आता है। इसका निर्माण घग्गर नदी के बेसिन में हुआ है।  हनुमानगढ़ में घग्गर के मैदान को नाली या पाट का मैदान कहा जाता है।

थार के मरुस्थल को मरुस्थल के प्रकार के आधार पर भी चार भागों में बाँटा गया है-

  1. महान मरुस्थल
  2. चट्टानी मरुस्थल
  3. पथरीला मरुस्थल
  4. लघु मरुस्थल

 

1.  महान मरुस्थल

यह शुष्क मरुस्थल है। जो कच्छ की खाड़ी से पंजाब तक फैली है इसे सहारा में इर्ग कहते है।

2. चट्टानी मरुस्थल

यह जैसलमेर के पोकरण व रामगढ़, बाड़मेर तथा जालौर के मध्य फैली रहती है। इसे सहारा में हम्मादा कहते है।

3. पथरीला मरुस्थल

यह जैसलमेर के रुद्रवा व रामगढ़ में फैला है। इसे सहारा में रेग कहा जाता है।

4. लघु मरुस्थल

यह कच्छ ले रन से बीकानेर के महान मरुस्थल तक फैला है।

 


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2. अरावली पर्वत माला

इसकी उत्पत्ति प्रीकैंब्रियन युग में हुई है। यह प्राचीनतम वलित पर्वत माला है। इनमें क्वार्टजाइट चट्टाने पायी जाती है। वर्तमान में यह अवशिष्ट पर्वत वाला है। जिसकी तुलना अमेरिका के अपल्लेशियन पर्वत से की गई है।

यह राजस्थान के कुल क्षेत्रफल का 9% भाग (30801.57 वर्ग किलोमीटर) है। इसमें राजस्थान की 10% (लगभग 68,54,844) जनसंख्या निवास करती है।

राजस्थान में प्रीकैंब्रियन युगों के चट्टानों का अध्ययन सर्वप्रथम  हैरोज ने किया।

राजस्थान में अरावली का विस्तार दक्षिण-पश्चिम से उत्तर-पूर्व की ओर है। इसका विस्तार खेड़ब्रह्मा (पालनपुर, गुजरात) से रायसीना पहाड़ी (राष्ट्रपति भवन, दिल्ली) तक है।  यह सिरोही जिले के ईशानकोण गाँव से राजस्थान में प्रवेश करती है, तथा झुंझुनू के खेतड़ी से राजस्थान से बाहर निकलती है।

इसकी कुल लंबाई 692 किलोमीटर है। जिसमें से 550 किलोमीटर राजस्थान में स्थित है। अरावली का 80%  भाग राजस्थान में स्थित है।

अरावली का सर्वाधिक विस्तार उदयपुर में तथा सबसे कम विस्तार अजमेर में है।  अरावली का सर्वाधिक घनत्व राजसमंद में तथा सबसे अधिक ऊंचाई माउंट आबू में है।  इसकी न्यूनतम ऊंचाई पुष्कर घाटी अजमेर है।

इसके अन्य नाम मेरुपर्वत, सुमेरु पर्वत, पुराणानी आदि है।

 

यह अरावली पर्वतमाला गंगा-यमुना के मैदान को सतलज-व्यास के मैदान से अलग करती है। यह सिंघु बेसिन तथा गंगा बेसिन के मध्य जलविभाजक या क्रेस्ट लाइन का निर्माण करता है।

अरावली पर्वत माला को तीन भागों में बांटा गया हैं-

  1. उत्तरी-पूर्वी अरावली
  2. मध्यवर्ती अरावली
  3. दक्षिण-पश्चिमी अरावली

 

1. उत्तरी-पूर्वी अरावली

जयपुर, सीकर, झुंझुनू तथा अलवर जिलों में फैली है। उत्तरी-पूर्वी अरावली की सबसे ऊंची पर्वत चोटी रघुनाथगढ़ है, जो सीकर में स्थित है। रघुनाथगढ़ की ऊंचाई 1055 मीटर है।

शेखावाटी में अरावली की पहाड़ियों को मालखेत या तोरावाटी की पहाड़ियां कहते है। सीकर में अरावली की पहाड़ियां हर्ष की पहाड़ियों तथा अलवर में हर्षनाथ की पहाड़ियों के नाम से प्रसिद्ध है।

 

उत्तरी-पूर्वी अरावली क्षेत्र की प्रमुख चोटियाँ

 

रघुनाथगढ़ सीकर 1055 मीटर
खोह जयपुर 920 मीटर
भैराच अलवर 792 मीटर
बरवाडा जयपुर 786 मीटर
बबाई झुंझनु 780 मीटर
बिलाली अलवर 775 मीटर
मनोहरपुर जयपुर 747 मीटर
बैराठ जयपुर 704 मीटर
सरिस्का अलवर 677 मीटर
जयगढ़ जयपुर 648 मीटर

 

2. मध्यवर्ती अरावली

इसका विस्तार अजमेर, पुष्कर, किशनगढ़, ब्यावर तथा नसीराबाद में है। अरावली के इस भाग में अजमेर की मुख्य पहाड़ियां तथा नागौर की निम्न पहाड़ियों को शामिल किया गया है।

मध्यवर्ती अरावली, अरावली का न्यूनतम विस्तार व न्यूनतम ऊंचाई वाला भाग है। मध्यवर्ती अरावली की सबसे ऊंची चोटी तारागढ़ हैं, जो अजमेर में स्थित है।  तारागढ़ की ऊंचाई 870 मीटर है। अन्य चोटी नाग तथा गोरमजी है।

इस भाग में झिलवाडा, कछवाली अरनिया, देबारी, पिपली, बार पखेरिया शिवपुर घाट तथा सूरा घाट दर्रे है।  इनमें से बार पखेरिया शिवपुर घाट तथा सूरा घाट दर्रे ब्यावर तहसील (अजमेर) में है।

मध्यवर्ती अरावली की प्रमुख चोटियाँ

गोरमजी अजमेर 934 मीटर
तारागढ़ अजमेर 870 मीटर
नाग अजमेर 795 मीटर

 

3. दक्षिणी-पश्चिमी अरावली

यह अरावली का सबसे ऊँचा, सर्वाधिक विस्तृत और पर्यटन की दृष्टि से सबसे अधिक महत्वपूर्ण भूभाग है। इसका विस्तार सिरोही, उदयपुर, डूंगरपुर तथा राजसमंद जिलों में है।

दक्षिणी-पश्चिमी अरावली का आकार हाथ के पंजे के समान है।

इस क्षेत्र के प्रमुख दर्रे जिलवा की नाल, सोमेश्वर की नाल, हाथी गुढा की नाल, देसुरी की नाल, देवर तथा हल्दीघाटी की नाल आदि है।

मध्यवर्ती अरावली की प्रमुख चोटियाँ

गुरुशिखर सिरोही 1722 मीटर
सेर सिरोही 1597 मीटर
देलवाडा सिरोही 1442 मीटर
जरगा 1431 मीटर
अचलगढ़ 1380 मीटर
कुम्भलगढ़ राजसमन्द 1224 मीटर
धोनिया 1183 मीटर
ऋषिकेश 1017 मीटर
कमलनाथ नक 1001 मीटर
सज्जनगढ़ 938 मीटर
लीलागढ़ 874 मीटर

 


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3. पूर्वी-मैदानी भाग

इसका निर्माण नदियों के द्वारा लाई गई जलोढ़ मृदा से हुआ है। यह टेथिस सागर का अवशेष है। इस भूभाग में गंगा-यमुना की सहायक नदियां बहती है।

मैदानी भाग राजस्थान के क्षेत्रफल का 23% भाग है। जिसमें लगभग 39% जनसंख्या निवास करती है। यह राजस्थान का सर्वाधिक जनसंख्या घनत्व वाला भाग है। क्योंकि राज्य की सबसे उपजाऊ भूमि इसी क्षेत्र में पाई जाती है। इस क्षेत्र में गेहूं, जौ, चना, तिलहन सरसों आदि की खेती होती है।

इस क्षेत्र की सिंचाई का प्रमुख स्रोत कुँए है।

मैदानी भाग को तीन भागों में विभक्त किया गया हैं-

  1. चंबल बेसिन
  2. माही बेसीन
  3. बनास-बाणगंगा बेसिन

 

1. चंबल बेसिन

चित्तौड़, कोटा, बूंदी, सवाई माधोपुर,धौलपुर, करौली आदि जिलों में चंबल बेसिन का मैदान फैला हुआ है। चंबल नदी अपने मार्ग में बीहड़ भूमि का निर्माण करती है। सबसे लम्बी बीहड़ पट्टी कोटा से बारां (480किलोमीटर) के मध्य है।

2. माही बेसिन

बांसवाड़ा, डूंगरपुर तथा प्रतापगढ़ जिले में माही बेसिन का मैदान फैला हुआ है। जिसमें काली दोमट मिट्टी पाई जाती है। माही नदी बांसवाड़ा तथा प्रतापगढ़ के मध्य 56 के मैदान का निर्माण करती है।

3. बनास-बाणगंगा बेसिन

इसका विस्तार राजसमंद, चित्तौड़, अजमेर, भीलवाड़ा, टोंक, सवाई माधोपुर आदि जिलों में है। इसमें शिष्ट तथा नीस चट्टाने पायी जाती है। जयपुर, दौसा, अलवर तथा भरतपुर में बाणगंगा नदी के द्वारा जलोढ़ मृदा का जमाव किया गया है।

बनास नदी दो मैदानों का निर्माण करती हैं-

मेवाड़ का मैदान

यह राजसमंद तथा चित्तौड़गढ़ जिले में है।

मालपुरा का मैदान

यह टोंक जिले में है। बनास बेसिन में भूरी दोमट मिट्टी पाई जाती है।

 


4. दक्षिणी-पूर्वी पठारी भाग

यह दक्कन के पठार का उत्तरी भाग है। इस भाग का निर्माण ज्वालामुखी से निकले बेसाल्टिक लावा ठंडे होने से हुआ है। इसलिए इसे लावा पठार भी कहते है। यह गोंडवाना लैंड का अवशेष है।

 

इसे हाड़ौती का पठार या सक्रांति प्रदेश भी कहते है। सक्रांति प्रदेश अरावली पर्वतमाला को विध्यांचल पर्वत माला से अलग करता है।  यह क्षेत्रफल की दृष्टि से सबसे छोटा भाग है।

इस भूभाग में काली रेगर मिट्टी पाई जाती है। इसमें कपास, सोयाबीन तथा अफीम की खेती होती है।
इस पठार को दो भागो में विभक्त किया गया हैं-

विध्यांचल कगार भूमि

यह बनास तथा चंबल नदी के बीच स्थित दक्षिणी पूर्वी पठारी भाग है।

दक्कन लावा का पठार

यह कोटा तथा बूंदी जिले में फैला हुआ है। यह ऊपर माल के नाम से प्रसिद्ध है।


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राजस्थान के प्रमुख पठार

  1. उड़ीया का पठार – [उंचाई 1360/1380 मीटर] यह राजस्थान का सबसे ऊँचा पठार है। यह सिरोही जिले में है। इसी पर गुरुशिखर चोटी स्थित है।
  2. आबू का पठार – [ऊँचाई 1200 मीटर] यह राजस्थान का दूसरा सबसे ऊँचा पठार है। यह सिरोही जिले में है।
  3. भोराट का पठार – [ऊँचाई 1200 मीटर] यह राजस्थान का तीसरा सबसे ऊँचा पठार है। गोगुन्दा से कुम्भलगढ़ राजसमन्द के मध्य स्थित होती है। जरगा इसी पठार पर है।
  4. लसाडिया का पठार– यह जयसमन्द झील के पूर्व की ओर स्थित है। प्रतापगढ़ जिला इसी पठार पर स्थित है।
  5. मेसा का पठार – [ऊँचाई 620 मीटर] यह चित्तोडगढ जिले में स्थिर चित्तोड़ दुर्ग इसी पठार पर स्थित है।
  6. ऊपरमाल का पठार – यह भैसरोड़गढ़ से बिजोलिया के मध्य स्थित है।
  7. काकनबाडी का पठार – यह अलवर जिले में फैला है।

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राजस्थान की प्रमुख पहाड़ियाँ

  • भाकर – सिरोही जिले में स्थित
  • गिरवा – उदयपुर में तश्तरीनुमा पर्वत
  • मुकुंदरा हिल्स – कोटा तथा झालावाड के मध्य स्थित
  • मालाणी पर्वत – बालोतरा (बाड़मेर) में स्थित
  • नाकोडा पर्वत – सिवाना (बाड़मेर) में स्थित (अन्य नाम छप्पन की पहाड़ियाँ)
  • सुंधा पर्वत – भीनमाल (जालौर)
  • भैंराच पर्वत – अलवर
  • खो पर्वत – अलवर
  • छपना रा भाखर – सिवाना (बाड़मेर) में स्थित इसी पर हल्देश्वर तीर्थ स्थित है।
  • चिड़ियाँटूक पहाड़ी – जोधपुर, मेहरानगढ़ दुर्ग इसी पर स्थित है।
  • त्रिकूट पहाड़ी – जैसलमेर किला इसी पर स्थित है
  • मेरवाड़ा की पहाड़ियां –अजमेर तथा राजसमंद की पहाड़ियां मेरवाड़ा की पहाड़ियां कहलाती है।  क्योंकि यह मेवाड़ को मारवाड़ से अलग करती है।
  • जसवंतपुरा पहाड़ी – जालौर, इस पर डोरा पर्वत, रोजा भाखर, इसराना भाखर, तथा झाडोल पहाड़ स्थित है।

 


महत्वपूर्ण तथ्य

व्यर्थ भूमि

भारत की कुल व्यर्थ भूमि का 20% भाग राजस्थान में है। तथा राजस्थान में सर्वाधिक व्यर्थ भूमि जैसलमेर में है। जबकि अनुपातिक दृष्टि से सर्वाधिक व्यर्थ भूमि राजसमंद में है।

अधात्विक खनिज

भारत में सर्वाधिक अधात्विक खनिज अरावली पर्वतमाला में पाये जाते है।

 

हमो की भू

सज्जनगढ़ अभयारण्य में अरावली के टीलेनुमा में पर्वतों को हमो की भू कहा जाता है।

 

सर या सरोवर

वर्षा ऋतु में बने अस्थाई तालाब को सर या सरोवर कहते है।

 

जोहड या नाडा

कच्चे-पक्के कुओं को जोहड या नाडा कहते है।

 

प्लाया

पवन निर्मित अस्थाई खारे पानी की झीलों को प्लाया कहा जाता है।

 

खड़ीन

जैसलमेर में 15वीं शताब्दी में पालीवाल ब्राह्मणों द्वारा अपनाई गई वर्षा जल संग्रहण पद्धति को खड़ीन कहते है।


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हम्मादा

पथरीले मरुस्थल को हम्मादा कहते है। इसका विस्तार जैसलमेर के लोद्रवा व रामगढ़ में है।

 

रेग

मिश्रित मरुस्थल को रेग कहा जाता है।

 

मरू त्रिकोण

इसके अंतर्गत बीकानेर, जैसलमेर तथा जोधपुर जिले आते है।

 

सौर त्रिकोण

इसके अंतर्गत बाड़मेर, जैसलमेर तथा जोधपुर जिले आते है।

 

नाचना

जैसलमेर का नाचना गांव मरुस्थल के प्रसार के लिए जाना जाता है।  मरुस्थल के प्रसार को रेगिस्तान का मार्च पास्ट भी कहा जाता है।

 

थली

चूरू से बीकानेर तक मरुस्थलीय पट्टी थली कहलाती है।


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रन/ठाट

मरुस्थल में टीलों के बीच में वर्षा ऋतु से बनने वाली अस्थाई खारे पानी की झीलों या दलदली भूभाग को रन कहते है।

डांड

मरुस्थलीय क्षेत्र में विशिष्ट लवणीय झिल्लो को डांड कहते है।

वल्लभ या मांड क्षेत्र

जैसलमेर और बाड़मेर के आसपास का क्षेत्र वल्लभ या मांड क्षेत्र कहलाता है।

नेबखा

झाड़ियों के पीछे बनने वाले रेतीले नेबखा कहलाते है।

लाठी सीरीज

यह भूगर्भीय जलीय पट्टी है। जिसका विस्तार जैसलमेर के मोहनगढ़ से पोकरण तक है।

संतों का शिखर

जेम्स टॉड ने गुरुशिखर को संतों का शिखर कहा है।

राजस्थान का बर्खोयान्सक

माउन्ट आबू (सिरोही) को कहा जाता है।

हाथी गुढा की नाल

कुम्भलगढ़ दुर्ग हाथी गुढा की नाल पर स्थित है।

कांठल प्रदेश

बांसवाड़ा तथा प्रतापगढ़ के मध्य का पहाड़ी भाग कांठल प्रदेश के नाम से जाना जाता है।

मेवल प्रदेश

बांसवाड़ा तथा डूंगरपुर के मध्य का पहाड़ी भाग मेवल प्रदेश के नाम से जाना जाता है।

भूडोल प्रदेश

कांठल प्रदेश तथा मेवल प्रदेश के मध्य का भाग भूडोल प्रदेश कहलाता है।

भोमट प्रदेश

सिरोही, उदयपुर तथा डूंगरपुर का पहाड़ी भाग भोमट प्रदेश कहलाता है।

ईडर प्रदेश

दक्षिणी राजस्थान तथा गुजरात के मध्य का सीमावर्ती प्रदेश ईडर प्रदेश कहलाता है।

भद्र प्रदेश

पुष्कर घाटी तथा नागौर का सीमावर्ती प्रदेश भद्र प्रदेश कहलाता है।

सपाद लक्ष

सांभर झील से सीकर तक का भूभाग सपाद लक्ष कहलाता है।

कारवा गासी

बरखान बालुका स्पूत के मध्य में ऊंटों के आने जाने का रास्ता होता है। जिन्हें कारवा गासी कहते है।

पीडमानट मैदान

बनास-बाणगंगा के द्वारा बना मैदान

मगरा

उदयपुर के उत्तरी-पश्चिमी भाग का पर्वतीय क्षेत्र।

आबू पर्वत खण्ड

इसे गुरुमाथा, बैथोलिक तथा इसेलबर्ग की संज्ञा डी जाती है।


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