
मानव का A, B, AB तथा O रक्त समूह
मानव के रक्त समूह का वर्गीकरण आरबीसी पर पाए जाने वाले प्रतिजन के आधार पर किया जाता है। इनका वर्गीकरण सर्वप्रथम लैंडस्टीनर (Landsteiner) के द्वारा किया गया।
रक्त समूह चार प्रकार का होता है-
A रक्त समूह (A Blood Group)
आरबीसी पर A प्रतिजन (Antigen) तथा रक्त प्लाज्मा में B प्रतिरक्षी (Antibody) पाई जाती है। A रक्त समूह वाला व्यक्ति A तथा AB रक्त समूह वाले व्यक्ति को रक्तदान कर सकता है। यह A तथा O रक्त समूह वाले व्यक्ति से रक्त ग्रहण कर सकता है।
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B रक्त समूह (B Blood Group)
आरबीसी पर B प्रतिजन (Antigen) तथा रक्त प्लाज्मा में A प्रतिरक्षी (Antibody) पाई जाती है। B रक्त समूह वाला व्यक्ति B तथा AB रक्त समूह वाले व्यक्ति को रक्तदान कर सकता है। यह B तथा O रक्त समूह वाले व्यक्ति से रक्त ग्रहण कर सकता है।
मानव का A, B, AB तथा O रक्त समूह
back to menu ↑AB रक्त समूह (AB Blood Group)
आरबीसी पर A तथा B दोनों प्रकार के प्रतिजन (Antigen) तथा रक्त प्लाज्मा में A तथा B प्रतिरक्षी (Antibody) नहीं पाई जाती है। B रक्त समूह वाला व्यक्ति केवल AB रक्त समूह वाले व्यक्ति को रक्तदान कर सकता है। यह A, B, AB तथा O रक्त समूह वाले व्यक्ति से रक्त ग्रहण कर सकता है।
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O रक्त समूह (O Blood Group)
आरबीसी पर कोई प्रतिजन(Antigen) नहीं पाया जाता। लेकिन रक्त प्लाज्मा में A तथा B दोनों प्रकार की प्रतिरक्षी पाई जाती है। O रक्त समूह वाला व्यक्ति A,B, AB तथा O रक्त समूह वाले व्यक्ति को रक्तदान कर सकता है। परंतु केवल O वाले व्यक्ति से रक्त ले सकता है।
back to menu ↑आरएच प्रतिजन (Rh Antigen)
A तथा B प्रतिजन के अलावा आरबीसी पर आरएच प्रतिजन (Rh Antigen) भी पाए जाते हैं। यह प्रतिजन रिसस मकाका बंदर में खोजे गए थे। इसलिए इनका नाम Rh रखा गया।
यदि RBC पर Rh प्रतिजन पाया जाता है। तो उसे Rh पॉजिटिव या धनात्मक तथा Rh प्रतिजन नहीं पाया जाता, उन्हें आरएच नेगेटिव या ऋणआत्मक कहते हैं।
सर्वाधिक मात्रा आरएच पॉजिटिव वाले की होती है यह चार प्रकार का होता है-
- RhD,
- RhC,
- Rh c
- RhE,
- Rh e
आरएच निगेटिव रक्त वाले व्यक्ति आरएच पॉजिटिव रक्त वाले व्यक्ति से रक्त नहीं ले सकते हैं। क्योंकि जब आरएच नेगेटिव ब्लड को आरएच पॉजिटिव व्यक्ति के शरीर में डाला जाता है, तो शरीर में आरएच एंटीजन के लिए शरीर में एंटीबॉडीज बन जाते हैं, जो आरबीसी को नष्ट कर देता है। जिससे व्यक्ति की मृत्यु भी हो सकती है।
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एरीथ्रोब्लास्टोसिस फेटलिस (Erythroblastosis Fetalis)
यदि माता का रक्त समूह आरएच नेगेटिव हो और उसके गर्भ का रक्त समूह आरएच पॉजिटिव हो तो प्रसव के दौरान इन दोनों का रक्त एक दूसरे के संपर्क में आता है। जिससे माता के शरीर में आरएच प्रतिजन के विरुद्ध प्रतिरक्षी बनने लग जाते हैं।
यदि द्वितीय गर्भ का रक्त समूह आरएच पॉजिटिव होता है। तो पहले से निर्मित प्रतिरक्षी (Antibody) प्लेसेंटा को पार कर के गर्भ में पहुंच कर उसके आरबीसी को नष्ट करवाने लग जाते हैं। जिससे आरबीसी के नष्ट होने से गर्भ में रक्त की कमी आ जाएगी और उसकी जन्म से पूर्व ही मृत्यु हो जाती है। इसे इन एरीथ्रोब्लास्टोसिस फेटलिस, गर्भ रक्ताणु कोरकता या गर्भ लोहित-कोशिका- प्रसूमयता कहते हैं।
एरीथ्रोब्लास्टोसिस फेटलिस
back to menu ↑यह भी पढ़ें
- मानव का रक्त परिसंचरण तन्त्र (Human circulatory system)
- प्रतिरक्षा तंत्र की कोशिकाएं (Cells of Immune system)
- एड्स तथा एचआईवी (AIDS and HIV)
- प्रतिरक्षी एंटीबॉडी की संरचना एवं कार्य (The structure and function of antibody)
बाहरी कड़ियाँ
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ऑनलाइन टेस्ट
निम्न में से सर्वदाता रक्त है
रक्त का अध्ययन करना कहलाता है
निम्न में से सर्वग्राही रक्त है
इरिथ्रोब्लास्टोसिस फिटेलिस को रोकने के लिए टीका लगाया जाता है
निम्न में से कौनसे रक्त समूह में A तथा B दोनों प्रकार के एन्टीबॉडी पाए जाते है
रक्त समूह का वर्गीकरण किया
यदि RBC पर कोई भी एंटीजन नहीं होता है तो रक्त होगा
इरिथ्रोब्लास्टोसिस फिटेलिस होता है
हिमेटोलॉजी का जनक कहलाता है
रक्त का pH होता है
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