पारिस्थितिक कारक – तापमान

पारिस्थितिक रूप से, तापमान एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है क्योंकि तापमान में परिवर्तन एन्जाइम गतिकी,  उपापचयी क्रियाओं एवं जीवों की कार्यिकीय क्रियाओं को प्रभावित करती है। प्रजातियों की तापीय सहनशीलता (ऊष्मीय सहिष्णुता) काफी हद तक उनके भौगोलिक वितरण को निर्धारित करती है।

उदाहरण के लिए, कनाडा और जर्मनी जैसे समशीतोष्ण देशों में आम के पेड़ ठंडे तापमान को सहन करने में असमर्थता के कारण विकसित नहीं हो पाते हैं। इसी प्रकार, हिम तेंदुए केरल के जंगलों में नहीं पाए जाते हैं, क्योंकि वे ठंडी जलवायु के साथ अधिक ऊंचाई पसंद करते हैं। इसके अतिरिक्त, ट्यूना मछली को समुद्र में उष्णकटिबंधीय अक्षांशों से परे शायद ही कभी पकड़ा जाता है, क्योंकि वे गर्म पानी पसंद करते हैं।

ऊष्मीय सहिष्णुता दुनिया भर में विभिन्न प्रजातियों के वितरण पैटर्न को निर्धारित करने में एक महत्वपूर्ण कारक के रूप में कार्य करती है।

ऊष्मीय सहिष्णुता के आधार पर जीव दो प्रकार के होते हैं –

  1. तनुतापी (Stenothermal)
  2. पृघुतापी (Eurythermal)

तनुतापी (Stenothermal)

इस प्रकार के जीव ऐसे क्षेत्रों में रहते हैं जहाँ का तापमान पूरे वर्ष भर एक जैसा रहता है। जीव वृहद तापमान विभिन्नता को सहन नहीं कर सकते हैं।

पृघुतापी (Eurythermal)

इस प्रकार के जीव तापमान में बड़े परिवर्तनों को सहन कर सकते हैं।

यह वर्गीकरण हमें विभिन्न प्रजातियों की तापमान प्राथमिकताओं और सीमाओं और विभिन्न पर्यावरणीय परिस्थितियों में जीवित रहने की उनकी क्षमता को समझने में मदद करता है।

 

जीवों को भिन्न-भिन्न जलवायवीय क्षेत्रों में उनकी उपस्थिति के आधार पर चार तापमान समूहों में वर्गीकृत किया जाता है –

  1. महातापी (Megatherms)
  2. मध्यतापी (Mesotherms)
  3. न्यूनतापी (Microtherms)
  4. अतिन्यूनतापी (Hekistotherms)

 

महातापी (Megatherms)

वे जीव जो पूरे वर्ष भर उच्च तापमान के प्रति अनुकूलित होते हैं। जैसे – उष्ण कटिबंधीय क्षेत्र में पाये जाने वाले जीव।

मध्यतापी (Mesotherms)

ये निम्न ठण्डे एवं उच्च गर्म तापमान के प्रति अनुकूलित होते हैं। ऐसे जीव उष्पोष्ण कटिबंधीय क्षेत्र में रहते हैं।

न्यूनतापी (Microtherms)

ये ऐसे शीतोष्ण क्षेत्रों में रहते हैं जहाँ शीत तापमान कम किन्तु ग्रीष्म तापमान मध्यम होता है।

अतिन्यूनतापी (Hekistotherms)

ये जीव 10ºC से नीचे के अल्पकालीन ग्रीष्म अवधि एवं लम्बे बर्फीली शीत अवधि के लिए अनुकूलित होते हैं। यह स्थिति आर्कटिक एवं अल्पाइन क्षेत्र में पायी जाती है।

 

तापमान के प्रभावों पर आधारित नियम (Rules Based Upon Effects of Temperature)

तापमान के प्रभावों पर आधारित कुछ नियम –

ऐलन का नियम (Allen’s Rule)

ठंडे क्षेत्रों में रहने वाले गर्म रक्त वाले जंतुओं के पैर, कान, पूंछ और मुंह आदि गर्म क्षेत्रों के जंतुओं की तुलना में छोटे हो जाते हैं। यह अनुकूलन शरीर के तापमान के नुकसान को कम करने और ऊर्जा के संरक्षण में मदद करता है।

बर्गमैन का नियम (Bergman’s Rule)

गर्म रक्त वाले जंतुओं, जैसे पक्षियों और स्तनधारियों, के शरीर का आकार गर्म क्षेत्रों की तुलना में ठंडी जलवायु में बड़ा होता है। यह अनुकूलन बेहतर ताप प्रतिधारण और आयतन की तुलना में सतह क्षेत्र में वृद्धि की सुविधा प्रदान करता है।

रेन्च का नियम (Rensch’s Rule)

यह नियम पक्षियों पर केंद्रित है और कहता है कि ठंडी जलवायु में, पक्षियों के पंख संकीर्ण, छोटे और नुकीले होते हैं, जबकि गर्म क्षेत्रों में पक्षियों के पंख चौड़े होते हैं। संकीर्ण पंख शरीर के ताप के नुकसान को कम करते हैं और ठंडे वातावरण में उड़ान भरने के लिए अधिक कुशल होते हैं।

जार्डन का नियम (Jordan’s Rule)

कम ताप में रहने वाली कुछ मछलियों में कशेरूक की बड़ी संख्या के साथ बड़ा आकार होता है।

Ecological Factors Temperature in Hindi

तापकालिता (Thermoperiodicity)

इसे थर्मोपेरियोडिज्म (Thermoperiodism) के रूप में भी जाना जाता है। तापकालिता सजीवों द्वारा नियमित तापमान में उतार-चढ़ाव पर प्रतिक्रिया करने के तरीके को दर्शाता है।

यह दो प्रकार की है –

  1. दैनिक तापकालिता (Diurnal Thermoperiodicity)
  2. मौसम सम्बन्धी तापकालिता (Seasonal Thermoperiodicity)

 

दैनिक तापकालिता (Diurnal Thermoperiodicity)

यह दैनिक तापमान परिवर्तनों के प्रति जीव की प्रतिक्रिया से संबंधित है। सामान्यतः दिन/दोपहर का तापमान उच्च होता है, जबकि रात्रि का तापमान कम होता है।

मौसम सम्बन्धी तापकालिता (Seasonal Thermoperiodicity)

यह तापमान में समयानुकूल परिवर्तनों के प्रति जीवों की क्रिया है। तापकालिता के साथ-साथ यह पादपों की फीनोलॉजी (घटना विज्ञान ऋतुजैविकी) को भी नियंत्रित करती है।

फीनोलॉजी वातावरणीय स्थितियों में परिवर्तन से सम्बंधित मौसम सम्बंधी क्रियाओं की उपस्थिति है।

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झीलों में ऊष्मीय/तापीय स्तरीकरण (Thermal Stratification in Lakes)

इसका सम्बन्ध किसी गहरे जल निकाय, जैसे झील, के भीतर विभिन्न क्षैतिज परतों में तापमान भिन्नता की घटना से है। गहरे जलाशय में भिन्न-भिन्न क्षैतिज स्तरों में तापमान विभिन्नताओं की उपस्थिति को स्तरीकरण कहा जाता है।

गहरे जलाशय जैसे झील में तीन तापमान स्तर अधिसरोवर स्तर, मध्य सरोवर स्तर एवं अधोसरोवर स्तर होते हैं।

अधिसरोवर स्तर (Epilimnion)

यह सबसे ऊपरी परत है, जो गर्मी के महीनों के दौरान गर्म होती है। इसमें घुलित ऑक्सीजन की सांद्रता सबसे अधिक है, जो इसे विभिन्न जलीय जीवों के लिए एक महत्वपूर्ण आवास बनाती है। पादपप्लवक (फाइटोप्लांकटन) और अन्य पौधों अधिक विकसित होते है।

अधोसरोवर स्तर (Hypolimnion)

झील में पानी की निचली परत है। इसमें ठंडा, सघन और अपेक्षाकृत स्थिर पानी होता है। 1°C प्रति मीटर से कम की तापमान प्रवणता के द्वारा अभिलक्षित जल का सबसे निचला स्तर। इसमें अधिक सघन, शीतल एवं अपेक्षाकृत काफी जल उपस्थित होता है।

मध्य सरोवर स्तर (Metalimnion)

यह अधोसरोवर एवं अधिसरोवर के बीच चिन्हित तापीय परिवर्तनों का परिवर्ती स्तर है। इसकी मध्य परत को ताप प्रणवस्तर के रूप में नामित गहराई के 1°Cप्र ति मीटर से अधिक की तापमान प्रवणता के द्वारा अभिलक्षित किया जाता है। थर्मोक्लाइन (ताप प्रवणस्तर) शब्द मध्य सरोवर स्तर के तापमान में उतार-चढ़ाव की अधिकतम दर के समतल या सतह से सम्बंधित होता है।

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  1. पारिस्थितिकी और इसकी शाखाएँ
  2.  भारत के मुख्य जीवोम
  3. विश्व के कुछ महत्वपूर्ण बायोम / जीवोम
  4. केंचुए का परिसंचरण तंत्र
  5. संयोजी ऊत्तक का संघटन एवं प्रकार
  6. रक्त की संरचना एवं संघठन

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Ecology in HIndi पारिस्थितिकी और इसकी शाखाएँ

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