पारिस्थितिकी और इसकी शाखाएँ

यह जीव विज्ञान की एक शाखा है जिसमें जीवों और पर्यावरण के साथ उसके सम्बन्ध का अध्ययन करते हैं।

इकोलॉजी शब्द ग्रीक भाषा के दो शब्दों Oikos (House) तथा logos (to study) से बना है जिसका अर्थ किसी भी जीव का उसके पर्यावरण के साथ संबंध का अध्ययन है यह सबसे पहले रिटर (Reiter,1885) द्वारा दिया गया परंतु अर्नेस्ट हैकल ने इसकी पूर्ण रूप से व्याख्या की।

5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस (World Environment Day) मनाया जाता है।

 

यहां पर हम पारिस्थितिकी की आठ प्रमुख शाखाओं, अर्थात् स्वपारिस्थितिकी (ऑटोकोलॉजी) , संपारिस्थितिकी (सिनेकोलॉजी), जीनी पारिस्थितिकी (जीनकोलॉजी), जीवाश्म पारिस्थितिकी (पेलियोकोलॉजी), व्यवहारिक पारिस्थितिकी (एप्लाइड इकोलॉजी), सिस्टम इकोलॉजी (तंत्र पारिस्थितिकी ), पादप भूगोलीय पारिस्थितिकी (फाइटोजियोग्राफी) और जंतु भूगोलीय पारिस्थितिकीय (जूजियोग्राफी) का अवलोकन प्रदान करेंगे।

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स्वपारिस्थितिकी (Autecology)

यह मुख्य रूप से कार्यिकीय पारिस्थितिकी पर व्यष्टियों या प्रजातियों के पारिस्थितिक अध्ययन से संबंधित है। यह पता लगाता है कि जीव अपने तात्कालिक वातावरण के साथ कैसे सम्बन्ध बनाता हैं, जिसमें तापमान, प्रकाश, नमी और पोषक तत्वों की उपलब्धता जैसे कारक शामिल हैं।

जैसे हम हिरण के उसके पर्यावरण के साथ संबंध का अध्ययन करते हैं तो यह स्वपारिस्थितिक एक के अंदर आता है।

स्वपारिस्थितिकी वैज्ञानिक (Autecologists) इन पर्यावरणीय कारकों के प्रति जीवों की शारीरिक प्रतिक्रियाओं और अनुकूलन (responses and adaptations ) की जांच करते हैं ,और ये कारकजीव के व्यक्तिगत अस्तित्व, विकास और प्रजनन को कैसे प्रभावित करते हैं।

संपारिस्थितिकी (Synecology)

यह जीवों के समुदायों (communities) और उनके पर्यावरण के बीच संबंधों के अध्ययन पर केंद्रित है। यह जांच करता है कि विभिन्न प्रजातियां एक-दूसरे के साथ कैसे पारस्परिक अंतर्संबंध (interact ) स्थापित करती हैं और ये अंतर्संबंध (interact ) पारिस्थितिक समुदायों की संरचना और गतिशीलता (structure and dynamics) को कैसे आकार देती हैं।

किसी भौगोलिक क्षेत्र में उपस्थित समस्त समष्टियों (Population) को सम्मिलित रूप से समुदाय कहा जाता है।

संपारिस्थितिकी वैज्ञानिक (सिन्कोलॉजिस्ट) प्रजातियों (species) की संघटन, विविधता और अंतःक्रियाओं के साथ-साथ सामुदायिक (community ) संगठन पर अजैविक कारकों (तापमान, प्रकाश, नमी आदि) के प्रभाव का अध्ययन करते हैं।

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जीनी पारिस्थितिकी (Genecology)

इस शाखा में आनुवंशिक विभिन्नताओं के संबंध में पारिस्थितिक अनुकूलन का अध्ययन किया जाता है है। यह पता लगाता है कि आनुवंशिक भिन्नता किसी जीव की विशिष्ट पर्यावरणीय परिस्थितियों के अनुकूल होने की क्षमता को कैसे प्रभावित करती है।

जीनी पारिस्थितिकी वैज्ञानिक (जेनेकोलॉजिस्ट )आनुवंशिक लक्षणों (genetic traits )  की तापमान के प्रति सहनशीलता या रोगों के प्रति प्रतिरोध, और विभिन्न वातावरणों में उनके पारिस्थितिक महत्व के बीच संबंधों की जांच करते हैं।

जीवाश्म पारिस्थितिकी (Paleoecology)

पुरापारिस्थितिकी विज्ञान जीवाश्मों द्वारा भूतकाल में जीवों और पर्यावरण के बीच संबंधों की जांच करता है। इसमें पेलियोइकोलॉजिस्ट जीवाश्मों(fossils), तलछट कोर  (sediment cores) और प्राचीन पारिस्थितिक तंत्र के अन्य अवशेषों (remnants of ancient ecosystems) का अध्ययन करके,  पारिस्थितिक गतिशीलता और विकासवादी प्रक्रियाओं का पुनर्निर्माण करते हैं।

इसमें किसी जीव के पर्यावरण के साथ संबंध का अध्ययन करते हैं, जो लाखों वर्ष पूर्व है पृथ्वी पर निवास करते थे। परंतु अब विलुप्त हो चुके हैं।

पारिस्थितिकी की यह शाखा इस बात की अंतर्दृष्टि प्रदान करती है कि पिछले पर्यावरणीय परिवर्तनों (environmental changes) ने जीवों के वितरण और विकास को कैसे प्रभावित किया है।

व्यवहारिक पारिस्थितिकी (Applied ecology)

एप्लाइड पारिस्थितिकी मानव कल्याण, पर्यावरणीय मुद्दों को संबोधित करने और सतत विकास को बढ़ावा देने के लिए पारिस्थितिक अवधारणाओं और सिद्धांतों (Ecological concepts and principles) के व्यावहारिक अनुप्रयोग पर केंद्रित है।

एप्लाइड इकोलॉजिस्ट संरक्षण जीव विज्ञान (conservation biology) , पारिस्थितिकी तंत्र प्रबंधन (ecosystem management), पुनर्स्थापन पारिस्थितिकी (restoration ecology) और पर्यावरणीय प्रभाव मूल्यांकन जैसे विविध विषयों पर काम करते हैं। उनका लक्ष्य मानव कल्याण पर विचार करते हुए निर्णय लेने की जानकारी देने और पर्यावरणीय चुनौतियों का समाधान खोजने के लिए वैज्ञानिक ज्ञान का उपयोग करना है।

तंत्र पारिस्थितिकी (Systems ecology)

सिस्टम पारिस्थितिकी गणितीय सिद्धांतों और मॉडलों के सम्बन्ध में पारिस्थितिक अवधारणाओं की व्याख्या करती है। यह जटिल पारिस्थितिक प्रणालियों को समझने के लिए एक समग्र और अंतःविषय दृष्टिकोण पर जोर देता है।

सिस्टम पारिस्थितिकीविज्ञानी पारिस्थितिक तंत्र की संरचना, कार्य और गतिशीलता का विश्लेषण करने के लिए गणितीय मॉडल और कंप्यूटर सिमुलेशन विकसित करते हैं, जिसका उद्देश्य उनके व्यवहार की भविष्यवाणी और प्रबंधन करना है।

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पादप भूगोलीय पारिस्थितिकी (Phytogeography)

इसमें पृथ्वी पर पौधों के वितरण का अध्ययन करते है। यह उन कारकों की जांच करता है जो पौधों की प्रजातियों की भौगोलिक सीमा को प्रभावित करते हैं, जैसे जलवायु (Climate), स्थलाकृति (Topography), मिट्टी की संरचना (Soil composition) और जैविक अंतर्संबंध (interact )

पादप भूगोलवेत्ताओं का लक्ष्य पौधों की विविधता के पैटर्न और विभिन्न क्षेत्रों और पारिस्थितिक तंत्रों में उन्हें आकार देने वाली प्रक्रियाओं को समझना है।

जंतु भूगोलीय पारिस्थितिकीय (Zoogeography)

यह पृथ्वी पर जन्तुओ के वितरण पर ध्यान केंद्रित करता है। यह उन कारकों की जांच करता है जो भौगोलिक बाधाओं (Geographic barriers), विकासवादी इतिहास (Evolutionary history) और पारिस्थितिक सम्बन्ध (Ecological interactions) सहित जन्तुओं के वितरण को प्रभावित करते हैं।

प्राणी भूगोलवेत्ता जन्तुओ के वितरण को आकार देने वाली ऐतिहासिक और पारिस्थितिक प्रक्रियाओं में अंतर्दृष्टि प्राप्त करने के लिए प्रजातियों की समृद्धि, स्थानिकता और प्रवासन के पैटर्न का अध्ययन करते हैं।

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  2. विश्व के कुछ महत्वपूर्ण बायोम / जीवोम
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