पादपों में द्वितीयक वृद्धि

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Secondary Growth of Plants in Hindi 
यदि आपको Secondary Growth of Plants in Hindi के बारे में जानना है। तो ये लेख पढ़िए येलेख विभिन्न प्रकार के exam जैसे NEET, AIIMS, 2nd Grade etc में सहायता के लिए बनाया गया है।

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Secondary Growth of Plants in Hindi

पादप की लम्बाई में शीर्षस्थ विभज्योतक (Apical Meristem) के कारण होने वाली वृद्धि को प्राथमिक वृद्धि (Primary Growth) कहते है। और पार्श्व विभज्योतक (Lateral Meristem) के कारण पादप की मोटाई में होने वाली वृद्धि को द्वितीयक वृद्धि (Secondary Growth) कहते है। द्वितीयक वृद्धि (Secondary Growth) टेरिडोफाइट तथा एकबीजपत्री (Monocot) पादपों में नहीं पायी जाती है।


द्वितीयक वृद्धि (Secondary Growth) के लिए पादपों में दो प्रकार के पार्श्व विभज्योतक (Lateral Meristem) पाये जाते है –

  1. संवहन एधा ( Vascular Cambium)
  2. काग एधा (Cork Cambium)

द्वितीयक वृद्धि (Secondary Growth) दो प्रकार की होती है –

  • रम्भीय द्वितीयक वृद्धि (Stelar Secondary Growth)
  • बाह्य रम्भीय द्वितीयक वृद्धि (Extra – Secondary Growth)

द्विबीजपत्री तनों में रम्भीय द्वितीयक वृद्धि (Stelar Secondary Growth in Dicot) –


द्विबीजपत्री तनों में जायलम तथा फ्लोएम में बीच में एधा (Cambium) पायी जाती है, जिसे अंत: पुलीय एधा (Intra-fascicular Cambium) कहते है। संवहन पुल (Vascular Bundle) के बीच में पायी जाने वाली मज्जा किरणों (Medullary Rays) की कोशिकाएं विभज्योतकी (Merismetic) होकर अंतर पुलीय एधा (Inter-fascicular Cambium) बना लेती है।
अंत: पुलीय एधा (Intra-fascicular Cambium) व अंतर पुलीय एधा (Cambium) के मिलने से एक वलय (Ring) बनती है, जिसे एधा वलय (Cambium Ring) या संवहन एधा ( Vascular Cambium) कहते है।


संवहन एधा (Vascular Cambium):-


Vascular Cambium (संवहन एधा)  विभाजित होकर अंदर की तरफ द्वितीयक जायलम (Secondary Xylem) और बाहर की तरफ द्वितीयक फ्लोएम (Secondary Phloem) बनाती है। एधा (Cambium) बाहर की तुलना में अंदर की ओर अधिक क्रियाशील (Active) होती है, जिससे द्वितीयक जायलम द्वितीयक फ्लोएम की तुलना में लगभग 10 गुना अधिक बनता है।
संवहन एधा में दो प्रकार की कोशिकाएं होती है –

तर्कुरूप आद्यक (Fusiform Initials):–

ये तर्कु (Cone Shaped) जैसे दिखने वाली लम्बी व नुकीली कोशिकाएं होती जो द्वितीयक जायलम तथा द्वितीयक फ्लोएम का निर्माण करती है।

किरण आद्यक (Ray Initials):–

ये द्वितीयक मज्जा किरणों को बनती है।
संवहन एधा (Vascular Cambium) लगातार द्वितीयक जायलम व द्वितीयक फ्लोएम बनाती रहती है। जिससे प्राथमिक जायलम तने के केंद्र में तथा प्राथमिक फ्लोएम परिधि की और धकेल दिए जाते है। द्वितीयक वृद्धि (Secondary Growth) के दौरान संवहन एधा (Cambium) तने के केंद्र से परिधि (बीच में से किनारों) की ओर मृदूतकी कोशिकाओं की कुछ कतारें भी बनती है, जिन्हें द्वितीयक मज्जा किरण कहा जाता है। जो पानी और भोजन का अरीय संवहन (Radial Transport) करती है।


काष्ठ और उसके प्रकार (Wood and Their Types)  –


द्वितीयक जायलम से काष्ठ (Wood) बनती है जो निम्न प्रकार की होती है –

  • अंत: काष्ठ ( Heart Wood) व रस काष्ठ ( Sap Wood):-

पादप में द्वितीयक वृद्धि (Secondary Growth) के कारण द्वितीयक जायलम लगातार  केंद्र की ओर दबकर नष्ट होता जाता है। जिससे केंद्र भाग में गहरे भूरे रंग की कठोर काष्ठ (Wood) बनती है, जिसे अंत: काष्ठ (Heart Wood) कहते है। इनकी वाहिका में टायलोसिस द्वारा बने टेनिन, रेजिन, रंजक, गोंद आदि पाये जाते है। अंत: काष्ठ ( Heart Wood) कार्यिकीय रूप से निष्क्रिय (Physiological Inactive) होती है। यह यांत्रिक सहारा प्रदान करती है। ये दीमक, कीट, सूक्ष्मजीव आदि के प्रति प्रतिरोधी (Resistance) होती है। इस काष्ठ (Wood) की मोटाई लगातार बढ़ती जाती है।
अंत: काष्ठ (Heart Wood) के बाहर की ओर द्वितीयक जायलम हल्के रंग की काष्ठ (Wood) बनाता है जिसे रस काष्ठ (Sap Wood) कहते है। जो कार्यिकीय रूप से सक्रिय (Physiological Inactive) होता है। यह पानी का संवहन करता है, इस काष्ठ (Wood) की मोटाई नियत (Fix) बनी रहती है।

  • बसन्त काष्ठ (Spring Wood or Early Wood) व शरद काष्ठ ( Autumn Wood or Late Wood): –

बसन्त में एधा (Cambium) अधिक क्रियाशील होने के कारण बसन्त में बनने वाले जायलम में चौड़ी गुहिकाए होती है। ये काष्ठ (Wood) कम घनत्व वाली और हल्के भूरे रंग की होती है, इसे बसन्त काष्ठ (Spring Wood) कहते है।
शरद या पतझड़ में बनने वाले जायलम में संकरी गुहिकाए होती है, जिससे काष्ठ (Wood) अधिक संघनित और गहरे भूरे रंग की होती जिसे शरद काष्ठ ( Autumn or Late Wood) कहते है।
इस तरह हर साल बसन्त काष्ठ (Spring Wood) व शरद काष्ठ (Autumn Wood) बनते रहते है। जिससे पादप के तने में वार्षिक वलय बनते है लेकिन जड़ो में इनका निर्माण नहीं होता। इन वार्षिक वलय को गिनकर पेड़ो की आयु का पता लगाया जा सकता है।

  • कठोर काष्ठ (Hard Wood) व मुलायम काष्ठ (Soft Wood): –

आवर्तबीजी (Angiosperm) पादपों के जायलम में दृढ़ोतकी तंतु (Sclerenchyma Fibres) होने के कारण इनमें कठोर काष्ठ (Hard Wood) बनती है। जबकि अनावर्तबीजी (Gymnosperm) पादपों में दृढ़ोतकी तंतु नहीं होने के कारण इनमें मुलायम काष्ठ (Soft Wood) बनती है।

  • विरल दारुक काष्ठ (Manoxylic Wood) व सघनदारुक काष्ठ (Wood) :–

विरल दारुक काष्ठ (Manoxylic Wood) में रंभ (Stele) में मज्जा किरणें(Pith Rays) चौड़ी होती है तथा पेरेन्काएमा भी ज्यादा होता है, ये Cycas and Gymnosperm में पायी जाती है।
सघनदारुक काष्ठ (Pycnoxylic Wood) में रंभ (Stele) में मज्जा किरणें संकरी (Narrow) होती है तथा पेरेन्काएमा की मात्रा भी कम होती है, ये Pinus, Mango, Babul, Shisham में पायी जाती है।

  • छिद्रित काष्ठ (Porous Wood) व अछिद्रित काष्ठ (Non Porous Wood): –

काष्ठ (Wood) में वाहिकाएं अधिक होती इसलिए ये छिद्रित काष्ठ (Porous Wood) होती है। ये आवर्तबीजी पादपों में पायी जाती है। इनको समदारुक काष्ठ भी कहते है।
जबकि टेरिडोफाइट तथा अनावर्तबीजी में अछिद्रित काष्ठ (Non Porous Wood) होती है, इस काष्ठ (Wood) में वाहिकाए नहीं होती। इनको विषमदारुक काष्ठ भी कहते है।
Secondary Growth of Plants in Hindi


द्विबीजपत्री तनों में बाह्य रम्भीय द्वितीयक वृद्धि ( Extra-Stelar Secondary Growth in Dicot Stem) –


पादपों में संवहन एधा (Vascular Cambium) के द्वारा द्वितीयक जायलम व द्वितीयक फ्लोएम बनने से बाह्यत्वचा (Epidermis)  तथा वल्कुट (Cortex) पर दबाव पड़ने के कारण ये क्षतिग्रस्त (Damage) हो जाती है। इस भाग में वल्कुट (Cortex)की कोशिकाएं फिर से विभाजन शील होकर विभज्योतकी (Meristematic) हो जाती है, जिसे कॉर्क एधा (Cambium)
कहते है।
कॉर्क एधा (Cork Cambium) बाहर की ओर कॉर्क (Cork) या काग (Phellum) का निर्माण करती है। कॉर्क  की भित्तियों (walls) में सुबेरिन का जमाव होता है। कॉर्क एधा (Cambium) अन्दर की ओर मृदूतकी कोशिका (Parenchymal Cells ) बनाती है, जिसे द्वितीयक वल्कुट (Cortex)या फेलोडर्म (Phelloderm) कहते है।
कॉर्क, कॉर्क एधा (Cork Cambium or Phellogen) तथा द्वितीयक वल्कुट (Secondary Cortex or Phelloderm) मिलकर परित्वक(Periderm) कहलाते है।
Cork + Phellogen + Phelloderm = Periderm


छाल (Bark):-


परित्वक (Periderm) तथा द्वितीयक फ्लोएम (Secondary Phloem) मिलकर छाल बनाते है।
Periderm (Cork + Phellogen + Phelloderm) + Secondary Phloem = Bark
मौसम की शुरुआत में पहले निर्मित छाल को मुलायम छाल (Soft Bark) तथा बाद में निर्मित छाल को कठोर छाल (Hard Bark) कहते है। छाल दो प्रकार की होती है –

वलयित छाल (Ring Bark) : –

एक समान मोटाई वाली छाल को वलयित छाल कहते है भोजपत्र (Betula) तथा युकेलिप्टस में वलय छाल होती है

शल्की छाल (Scaly Bark) : –

ये असमान मोटाई वाली छाल होती है जो नीम, अमरूद, इमली, आम आदि में पायी जाती है
यदि सम्पूर्ण छाल को हटा दिया जाता है पौध मर जाता है क्योंकि इसमें पानी की कमी हो जाती है।
Secondary Growth of Plants in Hindi


वात रंध्र (Lenticel) –


द्वितीयक वृद्धि (Secondary Growth) के द्वारा बने कॉर्क में सुबेरिन का जमाव होने के कारण ये गैस के लिए अपारगम्य (Impermeable ) होती है। इसलिए गैस के आदान-प्रदान के लिए कॉर्क में कॉर्क एधा (Cork Cambium) द्वारा कुछ मृदूतकी कोशिकाओं (Parenchymal Cells) का भी निर्माण होता है इनको पूरक कोशिकाएं (Complementary Cells) कहते है। जो पादप की सतह पर एक लेंस की तरह उभार बनाती है, जिसे वात रंध्र (Lenticel) कहते है।


द्विबीजपत्री मूल में द्वितीयक वृद्धि (Secondary Growth in Dicot Stem): –


संवहन एधा द्वारा द्वितीयक वृद्धि (Secondary Growth by Vascular Cambium)) :-

द्विबीजपत्री मूल में फ्लोएम के नीचे स्थित संयोजी ऊतक (Connective Tissue) की कोशिकाएं विभज्योतकी (Merismatic) होकर एधा (Cambium) बना लेती है। इसी तरह जायलम के ऊपर की परिरंभ (Pericycle) की कोशिकाएं भी विभज्योतकी होकर एधा पट्टियाँ (Cambium Strips) बना लेती है। फ्लोएम के नीचे की एधा (Cambium) तथा जायलम के ऊपर की एधा पट्टियाँ (Cambium Strips)  मिलकर लहरदार एधा (Cambium) वलय बनती है, वलय यह अंदर की तरफ द्वितीयक जायलम व बाहर की ओर द्वितीयक फ्लोएम बनती है।

काग एधा द्वारा द्वितीयक वृद्धि (Secondary Growth by Cork Cambium): –

काग एधा (Cork Cambium) की उत्पति (Formation) परिरंभ (Pericycle) की कोशिकाओं से होती है, जो बाहर की ओर कॉर्क तथा अंदर की ओर द्वितीयक वल्कुट (Secondary Cortex)बनाती है। जिससे एण्डोडर्मिस, बाहरी वल्कुट (Outer Cortex)तथा एपीब्लेमा धीरे-धीरे नष्ट हो जाती है, इनमें कही-कही पर वात रंध्र (Lenticel) भी पाये जाते है।


पार्श्व मूलों की उत्पत्ति (Origin of Lateral Roots) : –


पार्श्व मूलों की उत्पत्ति (Formation) परिरंभ (Pericycle) की कोशिकाओं से होती है। परिरंभ (Pericycle) की कोशिकाओं में विभाजन से पार्श्व मूल आद्यक (Lateral Roots initials)  बनता है, जो वृद्धि करके पार्श्व मूल बनाता है। पार्श्व मूल एण्डोडर्मिस, बाहरी वल्कुट (Cortex)तथा एपीब्लेमा को भेदकर बाहर निकल जाती है।


Secondary Growth of  Plants in Hindi, Secondary Growth of Plants in Hindi

 

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4 Comments
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  1. Sir pdf provaide kro

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    शौकी सिदार March 26, 2019 at 10:26 am

    Very good sir you are the best

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