जगत प्रोटिस्टा

Kingdom Protista in Hindi, जगत प्रोटिस्टा, Protista in Hindi, प्रॉटिस्टा के उदाहरण

जगत प्रोटिस्टा (Kingdom Protista in Hindi)

सभी एककोशिकीय यूकेरियोट्स पोषण की विधि के आधार पर व्हिटेकर ने जगत प्रोटिस्टा में सम्मिलित किये।

प्रोटिस्ट शब्द अर्नेस्ट हेकल द्वारा दिया गया।

यह जगत मोनेरा और प्लांटी, कवक तथा एनिमेलिया के बीच कड़ी बनाता है।

हम कह सकते है कि प्रोटिस्टेन्स सभी बहुकोशिकीय यूकेरियोट्स के जीवाश्म होते हैं।

प्रोटिस्टा के सामान्य अभिलक्षण (General Characteristics of Protista)

  1. ये एककोशिकीय यूकेरियोटिक जीव होते हैं। कुछ कोलोनियल होते हैं।
  2. प्रायः जलीय जीव होते हैं।
  3. कोशिका संरचना यूकेरियोटिक प्रकार की होती है, इनकी कोशिका में सभी प्रकार के झिल्ली आबंध कोशिकांग (membrane bounded organelles) होते हैं, व 80S प्रकार के राइबोसोम होते हैं।
  4. कशाभिका तथा पक्ष्माभिका में सूक्ष्मनलिका संगठन का 9+2 पैटर्न होता है।
  5. गमन कूटपादों कशाभिका (Flagilla) या पक्ष्माभिका (Cilia) द्वारा होता है। किन्तु पक्ष्माभिका द्वारा होने वाला गमन तीव्र होता है।
  6. पोषण की विधि प्रकाशसंश्लेषी (होलोफिटिक), होलोजोइक (इनजेस्टिव), सेप्रोबिक या परजीवी (अधिशोषी) प्रकार का होता है। कुछ में मिक्सोट्रोफिक पोषण (प्रकाशसंश्लेषी या सेप्रोबिक) होता है, जैसे यूग्लीना।
  7. प्रजनन अलैंगिक तथा लैंगिक प्रकार (Sexual or asexual) का होता है।
  8. ये अपघटनकारी, प्रकाशसंश्लेषी या परजीवी होते हैं। परजीवी प्रोटिस्ट रोग उत्पन्न कर सकते हैं। जैसै पेचिश, मलेरिया, अनिद्रारोग आदि करते हैं।

जगत प्रोटिस्टा वर्गीकरण (Classification of Kingdom Protista)

प्रोटिस्टा को निम्न भागों में विभक्त करते है-

  1. क्राइसोफाइट्स
  2. डाइनोफ्लेजीलेट्स
  3. यूग्लिनोइड
  4. अवपंक कवक
  5. प्रोटोजोआ

 

क्राइसोफाइट्स (Crysophytes)

क्राइसोफाइट्स सुनहरे-भूरे प्रकाश संश्लेषी होते हैं, इसके अंतर्गत डायटम्स तथा डेस्मिड्स आते हैं। ये जलीय तथा स्थलीय दोनों होते हैं। कुछ समुद्री होते हैं। इनके महत्वपूर्ण लक्षण निम्न है।

  1. ये सूक्ष्मजीव होते हैं, जिनमें विभिन्न रंग होते हैं। ये आधारीय रूप से एककोशिकीय होते हैं, लेकिन कूटतन्तु (Filamatous) तथा कोलोनीयाँ बनाते हैं।
  2. इसमें कशाभिका (Flagella) होती है लेकिन प्रजननिक अवस्था में अनुपस्थित होती है। हल्के भार वाले लिपिड की उपस्थिति के कारण ये मुक्त उत्पलावी (Floating) होते हैं। इनको पादप प्लवक (Phyto plankton / Plant plankton) कहते है। इनमें गति म्युसिलेज प्रोपल्शन द्वारा होती है।
  3. कोशिका भित्ति पाई जाती है, जो सेल्युलॉजिक तथा सिलिका युक्त होती है, जो पारदर्शी सिलिसीयस कवच बनाती है, जिसे फ्रस्च्चुल (frustule) कहते हैं। सममिति पर निर्भरता के आधार पर डायटम्स पेनेट प्रकार के होते है, तथा केन्द्रिय प्रकार के होते हैं, जिनमें अरीय सममिति (उदा. मेलोसिरा) होती है।
  4. कोशिका भित्ति दो भागों की बनी होती है। एक आधा भाग (एपिथीका) दूसरे आधे भाग (हाइपोथीका) को आवरित करता है। जिससे साबुनदानी जैसी संरचना बनाते हैं।
  5. इसमें होलोफिटिक प्रकार का पोषण होता है ये प्रकाशसंश्लेषी होते है।
  6. इसमें प्रकाशसंश्लेषी वर्णक पर्णहरित A, पर्णहरित B, b- केरोटीन तथा विशिष्ट केरोटीनाॅइड्स होते हैं। विशिष्ट केरोटीनाॅइड्स में फ्युकोजेन्थिन, जैन्थोफिल्स जैसे डायटोजैन्थिन, डायडिनोजेन्थिन होते हैं।
  7. संरक्षित भोजन तेल तथा पोलिसेकेराइड होते हैं, जिन्हे ल्युकोसिन (क्राइसोलेमिनेरिन) कहते हैं, वोल्युटिन कण भी उपस्थिति होते हैं।
  8. ये जैवमण्डल में बनने वाले कुल कार्बनिक पदार्थों के 50% के लिए उत्तरदायी होते हैं। इसलिए इनको मुख्य उत्पादक (Chef producers)है
  9. ये मुख्यतया द्विविखण्डन (BinaryअBinary प्रजनन करते है। द्विविखण्डन के दौरान कोशिका भित्ति का एक आधा भाग पुत्री कोशिका निर्माण करता है। आधा भाग पुनः स्त्रावित होता हैं, शेष बचे बीजाणु स्टेटोस्पोर (केन्द्रिय डायटम्स) कहलाते हैं।
  10. प्रायः लैंगिक रूप से प्रजनन करते हैं। लैंगिक प्रजनन आइसोगेमी से ऊगेमी तक भिन्न होता है। इसमंे युग्मकी अर्द्धसूत्रण सम्मिलित है, अतः डायटम्स प्रायः द्विगुणित (डिप्लोन्टिक जीवन चक्र) होते हैं।

 

डाइनोफ्लेजीलेट्स (Dianoflagellets)

डाइनोफ्लेजीलेट्स प्रकाशसंश्लेषी प्रोटिस्ट होते हैं, ये डाइनोफाइसी (पाइरोफाइट) वर्ग से सम्बन्धित है। ये मुख्यतया समुद्री, तथा कुछ लवण जलीय होते हैं।

ये कोशिका में उपस्थित मुख्य वर्णकों की निर्भरता के आधार पर लाल, पीले, हरे, भूरे या नीले दिखाई देते हैं।

डाइनोफ्लेजीलेट्स के सामान्य लक्षण:

  1. ये एककोशिकीय तथा गमनशील होते है।
  2. इनका शरीर कठोर आवरण द्वारा ढका होता है, जिसे थीका या लोरिका कहते हैं, जो सेल्युलॉज तथा पेक्टिन की दो या अनेक आर्टिक्युलेट या स्क्लप्चर पट्टिका का बना होता है। ये पट्टिकाएँ सेल्युलॉज तथा पेक्टिन की बनी होती है। अतः इन्हे कवच युक्त डाइनोफ्लेजीलेट्स भी कहते हैं।
  3. थीका में प्रायः दो खाँचे होती है, जो लम्बवत् रूप से सल्कस तथा अनु¬प्रस्थ रूप से सिन्गुलम या एलुलस कहलाती है।
  4. केन्द्रक प्रायः आकार में बड़ा होता है, तथा इन्टरफेज अवस्था में गुणसूत्र संघनित होते हैं, गुणसूत्रों में हिस्टोन नहीं होती। केन्द्रकीय आवरण तथा केन्द्रिका कोशिका विभाजन के दौरान उपस्थित रहते हैं। इस प्रकार का संगठन मीजोकेरियोन कहलाता है।
  5. इनमें दो कशाभिका होती है। जो हेटेरोकोन्ट यानि भिन्न प्रकार को होती हैं। एक लम्बवत् तथा दूसरा अनुप्रस्थ होता है। कशाभिक थीका या लोरिका में छिद्र द्वारा गुजरते हैं, तथा खाँचों में रहते हैं।
  6. अनुप्रस्थ कशाभिक वलयित खाँच में रहता है तथा रिबन समान होता है। लम्बवत् कशाभिक लम्बवत् खाँच में रहता है तथा संकीर्ण, चिकना, पश्चस्थ निर्देशित होता है,
  7. दोनों कशाभिक एक-दूसर के समकोण पर होते हैं, तथा घुमावदार (स्पिनिंग) गति उत्पन्न करते हैं। इसलिए ये प्रोटिस्ट ‘whirling whips’ भी कहलाते हैं।
  8. ये स्वपोषी या प्रकाश संश्लेषी (सीरेटीयम) होते हैं, तथा कुछ सेप्रोबिक या परजीवी होते हैं। अधिकांश जातियों में पर्णहरित A, पर्णहरित B, b- केरोटीन, जैन्थोफिल (उदा.-पेरिडिनिन) युक्त भूरे, हरे या पीले क्रोमेटोफोर होते हैं।
  9. संचित भोजन कार्बोहाइड्रेट तथा तेल होता है।
  10. इसमें असंकुचनशील रिक्तिका प्युसुल कहलाती है। जो कशाभिकीय आधार के निकट उपस्थित होती हे। इसमें एक या अधिक रिक्तिकाएँ होती है, जो प्लावन या रसायन नियमन में भाग लेती है।
  11. कुछ डाइनोफ्लेजीलेट्स में सीलेन्ट्रेट्स जैसे ट्राइकोसिस्ट तथा निडोब्लास्ट होते हैं।
  12. प्रजनन प्रायः अलैंगिक होता है, तथा कोशिका विभाजन द्वारा होता है।
  13. कुछ डाइनोफ्लेजीलेट्स से समयुग्मकी तथा विषमयुग्मकी लैंगिक प्रजनन रिपोर्ट किया गया है। उदा. सीरेटियम।
  14. जीवन चक्र में युग्मनजी अर्द्धसूत्रण (सीरेटियम, जिम्नोडिनियम) सम्मिलित है। युग्मकी अर्द्धसूत्रण नाॅक्टिल्युका में होता है।

 


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यूग्लिनोइड (Euglenoid-यूग्लिना के समान)

यह क्लोरोफिल युक्त तथा क्लोरोफिल विहीन कशाभिक प्रोटिस्ट का समूह है। इसके सामान्य लक्षण निम्न है-

  1. ये एककोशिकीय कशाभिक प्रोटिस्ट होते हैं, जो जल या नम मृदा में पाए जाते हैं। इनमें से अधिकांश अलवण जलीय जीव स्थिर जल में पाए जाते हैं।
  2. इनका शरीर तर्कुरूपी होता है।
  3. इसमें कोशिका भित्ति अनुपस्थित होती है, लेकिन इनमें प्रोटीन का आवरण होता है जो पेरिप्लास्ट या पेलिकल कहलाता है।
  4. गमन कशाभिक द्वारा होता हैं।
  5. कोशिका में एक लम्बा फीते जैसा कशाभिक (स्टिकोनेमेटिक) होता है, जो अग्रस्थ सिरे पर उत्पन्न होता है। वास्तव में दो कशाभिक होते हैं, किन्तु दोनों में से एक अपह्वासित हो जाता है। लम्बे कशाभिक में आधार पर दो शाखाएँ होती है, प्रत्येक में इनका स्वयं का आधारी कण होता है। दो कशाभिका के जुड़ने के क्षैत्र में प्रकाशसंवेदी पराकशाभिकीय काय होता है।
  6. मायोनीम तीर्यक होते हैं, किन्तु समानान्तर रूप से पेलिकल में पट्टियाँ होती है, यूग्लीनाॅइड मायोनीम की सहायता से संकुचन तथा विस्तरण की क्रीपिंग गति निभाते हैं, जिसे मेटाबोलि या यूग्लीनाॅइड गति कहते हैं।
  7. कोशिका के शीर्षस्थ सिरे में तीन भिन्न भागों वाला इनवेजिनेशन होता है, जो कि मुख (साइटोस्टोम) केनाल (गुलेट या साइटोफेरिंक्स) तथा जलाशय है। यह ठोस भोज्य कणों का अन्र्तग्रहण करता है।
  8. स्टिग्मा या नेत्र बिन्दु पराकशाभिकीय काय के स्तर पर जलाशय की झिल्ली के साथ जुड़ा होता है। यह प्रकाश उद्धीपक के प्रत्यक्षण में भाग लेता है। इसमें प्रकाश संवेदी लाल-नारंगी वर्णक होते हैं, जिन्हे एस्टेजेन्थिन कहते हैं।
  9. प्रोटोप्लास्ट के केन्द्र के समीप एक बड़ा केन्द्रक होता है।
  10. यूग्लीना में पोषण प्रकाशसंश्लेषी स्वपोषी होता है। यद्यपि यह प्रकाश की अनुपस्थिति में पाचक एन्जाइमों का स्त्रावण कर मृत व सडे़-गले कार्बनिक पदार्थों से भी पोषण प्राप्त करने सक्षम होता है। पोषण की यह दोहरी विधि मिक्सोट्रोफीक कहलाती है। यूग्लीना में होलोजोइक पोषण अनुपस्थित होता है। प्रकाशसंश्लेषी वर्णक पर्णहरित a पर्णहरित b जैन्थोफिल तथा b- केरोटीन है।
  11. अनुकूल परिस्थिति में ये मुख्यतया लम्बवत् द्विविखण्डन द्वारा प्रजनन करते हैं। प्रतिकूल परिस्थितियों के दौरान भेदन हेतु पाल्मेला अवस्था तथा सिस्ट बनते हैं। यूग्लीनाॅइड्स में लैंगिक प्रजनन होता है, या नहीं यह ज्ञात नहीं है। उदा.-यूग्लीना तथा पेरानीमा।

 

अवपंक कवक / फफूंद (Slime Molds)

ये अपघटनकारी प्रोटिस्टा है। ये दो जगत वर्गीकरण में कवक के मिक्जोमाइसीटीज वर्ग में सम्मिलित किये गए। ये जन्तुओं से घनिष्ट सम्बन्धित होते हैं। इसलिए डी बेरि द्वारा माइसीटोजोआ कहा गया। इनके महत्वपूर्ण लक्षण निम्न है-

  1. ये प्रायः मुक्तजीवी (Free living) होते हैं, तथा मलबे जैसे गिरी हुई पत्तियों तथा काष्ठ के गले हुए लट्ठों पर वृद्धि करते हैं।
  2. इनमें नग्न प्रोटोप्लास्ट (Protoplast) होता है, तथा कायिक अवस्था में कोशिका भित्ति नहीं होती है। लेकिन इनके बीजाणुओं में सेल्युलाॅज की बनी कोशिका भित्ति होती है, अतः इनकी कायिक अवस्था जन्तुओं के समान होती है, जबकि प्रजननिक अवस्था पादपों समान होती है। तथा बीजाणु निर्माण की प्रकृति कवक समान होती है।
  3. बीजाणु अत्यधिक प्रतिरोधी होते हैं, तथा प्रतिकूल परिस्थितियों में भी कई वर्षों तक जीवित रह सकते हैं। बीजाणु वायु प्रवाह द्वारा फ़ैलते हैं।
  4. इनमें पर्णहरित का अभाव होता है, तथा ये विषमपोषी होते है।
  5. प्रजनन अलैंगिक तथा लैंगिक दोनों प्रकार का होता है।
  6. यह समूह जीवों के दो पृथक प्रकारों द्वारा प्रदर्शित किया जाता है-  (A)अकोशिकीय या प्लाज्मोडियम अवपंक कवक (B) कोशिकीय या काॅम्युनल अवपंक कवक

 

अकोशिकीय या प्लाज्मोडियम अवपंक कवक

ये पतली सड़ी-गली पत्तियों तथा इमारती काष्ठ पर पाई जाती है। इनका शरीर मुक्तजीवी, बहुकेन्द्रीय, नग्न द्विगुणित (Free living, multicelular and diploid) होता है, जिसे प्लाज्मोडियम कहते हैं। गति कूटपादों (Pseudipodia) द्वारा होती है।

प्रतिकूल परिस्थितियों में पूर्ण प्लाज्मोडियम अनेक फलनकाय (बहुकेन्द्रकीय, Multicellular Fruiting Body) बनाता है। फलनकाय स्पोरोकार्प (Sporocarp) कहलाता है, जिसमें वृन्त होता है, तथा जिसके शीर्ष पर स्पोरेन्जियम होती है। स्पोरेन्जियम की भित्ति पेरिडियम कहलाती है।

स्पोरेन्जियम में साइटोप्लाज्मिक धागों का उलझा हुआ जाल होता है, जिसे केपिलिरियम कहते हैं। द्विगुणित प्रोटोप्लास्ट अर्द्धसूत्रण द्वारा अगुणित बीजाणु बनाता है।

अंकुरित होने पर बीजाणु द्विकशाभिक स्वार्म कोशिकाएँ या अगतिशील मीक्सअमीबी बनाते हैं, जो युग्मक के रूप में काम करते हैं।

लैंगिक प्रजनन समयुग्मकी प्रकार का होता है।

द्विगुणित युग्मनज प्रत्यक्ष रूप से प्लाज्मोडियम बनाता है, जो द्विगुणित केन्द्रक के बार-बार समसूत्री विभाजन द्वारा बहुकेन्द्रकीय हो जाता है।

कायिक प्रजनन विखण्डन द्वारा होता है। उदाहरण-फाइसेरम, फाइसेरेला, फ्युलिगो, डिक्टिडियम, लाइकोगेला।

कोशिकीय या काॅम्युनल अवपंक कवक

कोशिका भित्ति रहित, एककेन्द्रकीय कोशिका युक्त होते है। लैंगिक प्रजनन विषमयुग्मकी होता है।

सामान्य कोशिकीय अवपंक फफूंद, डिक्टियोस्टीलियम कोलोनियल अवस्था होती है, जिसमें 100 एककेन्द्रकीय, अगुणित कोशिकाएँ कोलोनियों के संलयन बिना एकत्रित होती है।

काॅलोनियाँ प्रोटोप्लाज्म के एकल बहुकेन्द्रकीय संहति की प्रकटता देती है, जिसे कूटप्लाज्मोडियम कहते हैं।

उत्सर्जित भोजन आपूर्ति में तथा ब।डच् व रसायनिक एक्रेसिन के उद्धीपन्न में अनेक कोशिकाएँ कूट प्लाज्मोडियम के निर्माण के दौरान रसायनुचलनी गति द्वारा एक-दूसरे के पास आती है।

कूट प्लाज्मोडियम बहुकोशिकता की आद्य अवस्था दर्शाते हैं।  अतः इन्हे कोम्युनल अवपंक फफंूद भी कहते हैं।

इन आधारों पर अवपंक फफूंद को प्रगत प्रोटिस्ट तथा आद्य कवक माना गया है।

प्रतिकूल परिस्थितियों के दौरान मिक्सअमीबी भेदन तथा वितरण हेतु सिस्ट बनाती है, जिसे माइक्रोसिस्ट कहते हैं।

शुष्क परिस्थितियों के दौरान कूटप्लाज्मोडियम वृन्त युक्त स्पोरोकार्प उत्पन्न करता है, जो शाखित या अशाखित हो सकता है, प्रत्येक शाखा में अन्तस्थ एकल स्पारेंजियम (एककेन्द्रकीय) होती है।

स्पोरेन्जियम भित्ति रहित होती है। स्पोरेन्जियम के अन्दर अमीबाॅइड कोशिकाएँ गोल हो जाती है, तथा चारों ओर बीजाणु भित्ति स्त्रावित करती है।

अनुकूल परिस्थितियों के आने पर बीजाणु मुक्त होते हैं।

प्रत्येक बीजाणु विघटित सेल्युलाॅजिक भित्ति द्वारा अंकुरित होता है, तथा मिक्सअमीबा बनाता है। मिक्स अमीबी स्वतंत्र रूप से रहते हैं, तथा बार-बार समसूत्री विभाजन या एकत्रित होने द्वारा बहुगुणित होकर कूट प्लाज्मोडियम बनाते हैं।

लैंगिक प्रजनन विषमयुग्मकी प्रकार का होता है। लैंगिक प्रजनन के दौरान अनेक मिक्सअमीबी क्लम्प ;बसनउचद्ध बनाते हैं।

इनमें से एक मिक्सअमीबा बड़ा हो जाता है, तथा अपने चारों ओर के छोटे-छोटे मिक्सअमीबी को निगल लेता है।

प्लाज्मोगेमी होती है, तथा संलयित प्रोटोप्लास्ट चारों ओर मोटी भित्ति स्त्रावित करता है, जो मेक्रोसिस्ट बनाती है।

मेक्रोसिस्ट में केरियोगेमी होती है, तथा यह युग्मनज बन जाता है।

बाद में इसमें अर्द्धसूत्री विभाजन होता है, तथा अनेक समसूत्री विभाजन अनेक अगुणित मिक्सअमीबी बनाते हैं, जो कि मेक्रोसिस्ट भित्ति के विघटन द्वारा मुक्त होते हैं। उदाहरण-डिक्टियोस्टीलियम, पोलिस्पोन्डिलियम।

 


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प्रोटोजोआ (Protozoa)

ये सूक्ष्मदर्शिक विषमपोषी (Microscopic heterotropic) जीव है, जिसमें एकल कोशिका सभी जीवित क्रियाएँ करती है। इस कारण प्रोटोजोन को अकोशिकीय जीव (Acellular organisms) कहा जाता है। ये जीवाणु, सूक्ष्मदर्शिक शैवाल तथा छोटे जन्तुओं या अन्य प्रोटोजोन पर भोजन के लिए निर्भर रहते हैं।

  1. ये अधिकांश मुक्त जीवी तथा अलवण तथा लवण जल में पाए जाते हैं, तथा कुछ अवस्थाएँ परभक्षी तथा कुछ परजीवी होती है।
  2. प्रोटोजोन कोशिका शरीर या तो नग्न (उदा. अमीबा) या अदृढ़ पेलिकल द्वारा आवरित होता है। पेलिकल में सेल्युलॉज अनुपस्थित होता है।
  3. प्रोटोजोन में विभिन्न प्रकार की गमन संरचनाएँ पाई जाती है। इनमें कशाभिक (कशाभिकीय, Flagellated), पक्ष्माभ (पक्ष्माभिकीय, Ciliated) या कूट पाद (सार्कोडिन्स, Sarcodines) उपस्थित होते हैं।
  4. परजीवी अवस्थाओं (स्पोरोजोआ) में गमन संरचनाएँ अनुपस्थित होती है। परजीवी प्रोटोजोन भोजन के लिए परपोषी (उदा.-मोनोसिस्टिस) से प्राप्त पदार्थों पर निर्भर होते हैं।
  5. कोशिका सतह के नीचे तंत्रिका तन्तु तथा संकुचनशील पेशी तन्तुक उपस्थित होते हैं।
  6. संकुचनशील रिक्तिका  (Contractile Vacuole) कोशिका शरीर की परासरणी सान्द्रता को बनाए रखने के लिए लगभग सभी अलवण जलीय प्रोटोजोन में पाई जाती है। यह परिघटना परासरण नियमन (Osmoregulaion) कहलाती है। संकुचनशील रिक्तिका उत्सर्जन में भी सहायक है।
  7. अनेक परजीवी स्पोरोजोन सापेक्षिक रूप से हानिरहित होते हैं, लेकिन कुछ हानिकारक भी होते हैं। उदाहरण स्वरूप प्लाज्मोडियम वाइवेक्स तथा प्लाज्मोडियम फोल्सिपेरम मानव में मलेरिया करता है।
  8. प्रोटोजोन मुख्यतया एककेन्द्रकीय होते हैं। लेकिन सभी पक्ष्माभिकीय तथा अनेक अमीबॉइड प्रकार बहुकेन्द्रकीय होते हैं।
  9. विभिन्न प्रोटोजोन में प्रजनन का पैटर्न बहुत ही विशिष्टीकृत होता है। अधिकांश सार्कोडिन्स, कशाभिकीय तथा पक्ष्माभिकीय होते हैं, तथा द्विविखण्डन, बहुविखण्डन या मुकुलन द्वारा अलैंगिक प्रजनन दर्शाते हैं।
  10. कुछ पक्ष्माभिक जैसे पेरामीसियम लैंगिक प्रजनन द्वारा प्रजनन करते हैं, जिसमें दो व्यष्ठियाँ एक-दूसरे के समीप आती है, तथा एक प्रक्रिया द्वारा आनुवंशिक सूचना को आदान-प्रदान करते हैं, इस प्रक्रिया को संयुग्मन कहते हैं।  इस प्रक्रिया में युग्मक निर्माण नहीं होता है।
  11. स्पोरोजोआ में जीवन चक्र की कुछ अवस्थाएँ युग्मकों का निर्माण दर्शाती है, जो कि बाह्यआकारिकी रूप से अलग भिन्न होती है।

मुक्तजीवी– यूग्लीना, अमीबा, पेरामीसियम, एल्फिडियम आदि।

परजीवी– मोनोसिस्टिस, एन्टअमीबा, प्लाज्मोडियम, ट्रिपेनोसोमा, जियार्डिया आदि।

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प्रोटोजोआ को उनके  चलन अंग के आधार पर के आधार पर चार भागों में बांटा गया है-

  1. अमिबीय प्रोटोजोआ (Amoeboid Protozoa)
  2. कशाभी प्रोटोजोआ (Flagelleted Protozoa)
  3. पक्ष्माभी प्रोटोजोआ (Cilated Protozoa)
  4. स्पोरोजोआ (Sporooa)

अमिबीय प्रोटोजोआ (Amoeboid Protozoa)

इनमें  गमन करने के लिए कूटपाद पाए जाते हैं। उदाहरण अमीबा, एन्टअमीबा

कशाभी प्रोटोजोआ (Flagelleted Protozoa)

इनमें गमन कशाभ के द्वारा होता है। Ex. Lophomonas, Trichonympha, Trypanosoma

पक्ष्माभी प्रोटोजोआ (Cilated Protozoa)

इनमें गमनांग के रूप में पक्ष्माभ पाया जाता है। Ex. paramecium

स्पोरोजोआ  (Sprozoa)

इनमें गमन के लिए कोई विशिष्ट अंग नहीं होता यह जीवन के दौरान भी बीजाणु का निर्माण करते हैं। Ex. प्लाज्मोडियम (Plasmodium)

Keywords –

  1. प्रोटिस्टा जगत किसे कहते हैं
  2. प्रोटिस्टा जगत के प्रमुख लक्षण
  3. protists meaning in hindi
  4. किंगडम प्रोटिस्टा के मुख्य लक्षण क्या हैं? उदाहरण दीजिए।
  5. प्रोटिस्टा के दो उदाहरण लिखिए
  6. Kingdom protista in hindi

इन्हें भी पढ़ें

  1. जीव जगत (The Living World in Hindi)
  2. जीव जगत का वर्गीकरण (Biological Classification in Hindi)
  3. जगत मोनेरा (Kingdom Monera in Hindi)
  4. आर्कीबेक्टीरिया (Archaebacteria in hindi)
  5. ब्रायोफाइट (Bryophyte) पादपो का सामान्य परिचय एवं जीवन चक्र (General Introduction and Life Cycle of Bryophyte Plants in Hindi)
  6. टेरिडोफाइट पादपो का सामान्य परिचय एवं विशिष्टता (General Introduction and Characteristics of Pteridophyta Plants)

 

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