आर्कीबेक्टीरिया
Archaebacteria in hindi आर्कीबेक्टीरिया
आर्कीबेक्टीरिया (Archaebacteria)
ऐसा माना जाता है, कि ये पृथ्वी पर जीवन की उत्पत्ति के ठीक बाद इनका उद्भव हुआ है।
ये अत्यधिक प्रतिकूल परिस्थितियों जैसे अत्यधिक लवणीय क्षैत्र (हेलोफाइल्स), गर्म झरने (थर्मोएसिडोफिल्स) तथा दलदली क्षैत्र (मेथेनोजन) में रह सकते हैं।
आर्कीबेक्टीरिया की प्रमुख विशेषता (Main feature of Archaebacteria)
ये प्रमुख आद्य तथा अत्यधिक प्राचीन जीवाणु है।
- आर्कीबेक्टीरिया की कोशिका भित्ति संरचना अन्य जीवाणुओं से भिन्न होती हैं, इसमें पेप्टाइडोग्लाइकेन का अभाव होता है।
- आर्कीबेक्टीरिया की कोशिका भित्ति ग्लाइकोप्रोटीन, स्यूडोम्युरिन तथा नोन सेल्युलॉजिक पोलिसेकेराइड की बनी होती है।
- स्यूडोम्युरिन जीवाण्वीय पेप्टाइडोग्लाईकेन समान होता है, लेकिन इसमें N-Acetylmuramic acid (NAM) के स्थान पर N-एसीटाइलटेलोसेमिन्युरोनिक अम्ल होता है, तथा D-अमिनों अम्ल का अभाव होता है।
- कोशिका झिल्ली में शाखित श्रृँखला लिपिड (Phytanyl side chain) होता है, जो झिल्ली की द्रव्यता को घटाता है।
- कोशिका झिल्ली का यह रसायनिक संगठन इन जीवों को अत्यधिक तापमान व pH को सहन करने हेतु सक्षम बनाता है।
- इनके DNA में इन्ट्रॉन्स होते है। इसकी राइबोसोमल प्रोटीन अत्यधिक अम्लीय होते हैं। इन प्रोकेरियोट्स में उपस्थित हिस्टोन प्रोटीन यूकेरियोट्स से भिन्न होती है।
इन्ट्रॉन्स क्या होते है? जानने के लिए – पश्च अनुलेखन रूपान्तरण (Post-Transcription Modification)
उपरोक्त वर्णित विशेषताएं चरम अवस्था में उनके जीवनयापन हेतु उत्तरदायी होती है।
आर्कीबेक्टीरिया का वर्गीकरण (Classification of Archaebacteria)
आर्कीबेक्टीरिया तीन समूहों में विभाजित किये गए है, जो है-
- मेथेनोजन
- हेलोफाइल्स
- थर्मोएसिडोफिल्स
मेथेनोजन (Methanogens)
ये अविकल्पी अवायवीय (obligate anaerobes) होते हैं, जो दलदली आवास में रहते हैं।
ये CO2, मेथेनोल तथा फॉर्मिक अम्ल (HCOOH) को मेथेन में परिवर्तित करने हेतु सक्षम होते हैं, अतः मेथेनोजन कहलाते हैं।
यह विशेषता ईंधन गैस के उत्पादन तथा गोबर गैस प्लांट (जैव गैस किण्वक / biogas fermenters) में व्यवसायिक रूप से अपनाई जाती है।
कुछ मेथेनोजन शाकाहारी जन्तुओं जैसे भैंस, गाय आदि की रूमेन में रहते हैं।
ये सूक्ष्मजीव ऐसे जन्तुओं में सेल्युलॉज के किण्वन में सहायक है, उदाहरण-मेथेनोकोकस, मेथेनोबेक्टीरियम, मेथेनोसारसिना, मेथेनोस्पाइरिलम।
हेलोफाइल्स (Halophile)
ये वायवीय रसायन विषमपोषी (aerobic chemoheterotrophic), कोकॉइड () तथा ग्राम ऋणात्मक होते हैं। ये उच्च लवण सान्द्रण माध्यम जैसे समुद्र, लवण झील खारे जल, दलदल तथा लवणीय मछलियों में रहते हैं।
उच्च प्रकाश तीव्रता में ATP उत्पादन के लिए सूर्य प्रकाश ग्रहण करने हेतु इनकी झिल्ली में लाल वर्णक बेक्टीरियोरोडोप्सिन (bacteriorhodopsin) विकसित होता है, लेकिन ये भोजन संश्लेषण में इस ATP का उपयोग नहीं कर सकते हैं।
हेलोफाइल्स में रस रिक्तिकाएँ (Sap vacuoles) अनुपस्थित होती है, अतः ये उच्च लवण सान्द्रता में जीवद्रव्यकंुचित (plasmolysed) नहीं होते हैं।
ये इनकी कोशिकाओं में KCl की उच्च परासरणी सान्द्रता को बनाए रखते हैं।
हेलोफाइल्स जीवाणु NaCl स्तर के 10% से नीचे गिरने पर संकुचित हो जाते हैं।
ये NaCl के 25-30% वाले माध्यम में अच्छी वृद्धि कर सकते हैं।
उदा. हेलोकोकस, हेलोबेक्टीरियम।
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थर्मोएसिडोफिल्स (Thermoacidophiles)
ये उच्चतम तापमान तथा उच्च अम्लता को सहन करने हेतु होते हैं। अतः इन्हे थर्मोएसिडोफिल्स कहा जाता है।
थर्मोएसिडोफिल्स जीवाणु अक्सर गर्म-जल झरनों में रहते हैं, जहाँ तापमान 80°C होता है, तथा pH ~2 होती है।
ये वायवीय स्थिति में सल्फर को सल्फ्युरिक अम्ल में ऑक्सीकृत करते हैं, तथा इस अभिक्रिया में प्राप्त ऊर्जा कार्बनिक भोजन के संश्लेषण के लिए उपयोगी है।
माध्यम सल्फ्युरिक अम्ल के उत्पादन के कारण अत्यधिक अम्लीय हो जाता है। अवायवीय स्थिति में सल्फर H2S में अपचयित होता है। ये प्रकृति में रसायन संश्लेषी होते हैं।
उदाहरण – थर्मोप्लाज्मा, थर्मोप्रोटीयस, थर्मोकोकस
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