अनावृतबीजी या जिम्नोस्पर्म लक्षण एवं वर्गीकरण

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Gymnosperms in Hindi अनावृतबीजी या जिम्नोस्पर्म लक्षण एवं वर्गीकरण

अनावृतबीजी (gymnosperm) शब्द का प्रयोग थीयोफ्रेस्ट्स (Theophrastus) ने अपनी पुस्तक Enquiry into plants में किया।

इन्हे नग्न बीज वाले संवहनीय पादप (naked seeded vascular plants) कहते हैं। इनको फल रहित बीज वाले पादप (fruitless seed plants) या फल रहित पुष्पी पादप ( fruitless flowering plants) भी कहा जाता है।

गीबेल (Goebel) ने इन्हे अण्डाशय रहित फेनेरोगेम्स (phanerogams without ovary) कहा।

यह पादप जगत का सबसे छोटा समूह है।

अनावृतबीजी पादपों के सामान्य लक्षण (General characters of gymnosperms)

इनका प्रमुख पादप काय बीजाणुद्भिद (sporophyte) होता है। जो द्विगुणित (diploid, 2n) होता है।

अधिकांश अनावृत्तबीजी बहुवार्षिक काष्ठीय (perennial woody plants) पादप होते हैं, जो या तो क्षुप या वृक्ष बनाते हैं। इफेड्रा आरोही (climber) होता है।

कुछ जिम्नोस्पर्म बहुत बड़े होते हैं, तथा हजारों वर्षों तक जीवित रहते हैं। उदा.-सीक्युआ।

इनका तना काष्ठीय तथा शाखित (पाइनस, सीड्रस) या अशाखित (सायकस) हो सकता है।

इसमें मूसला मूल तन्त्र उपस्थित होता है।

सायकस में विशिष्ट प्रवाल मूल या कोरेलॉइड मूल (coralloid roots) होती है, जिसमें नील हरित शैवाल एनाबीना जड़ के साथ जीवन यापन करता है। ये जड़े एजीयोट्रोपिक होती है मतलब N2 स्थिरीकरण का कार्य करती है।

पाइनस में मूल कवक के साथ सहजीवी सम्बन्ध दर्शाती है। जिसे कवकमूल या माइकोराइजा (mycorrhiza) कहते है।

पत्तियाँ सरल (पाइनस) या संयुक्त (सायकस) (simple or compound) हो सकती है। ये पत्तियाँ तापमान, आर्दृता तथा वायु की अधिकता को सहन करती है। उदा. पाइनस की नीडल पर्ण। सायकस में शल्की पत्तियाँ (Scale leaves) भी उपस्थित होती है।

इनमें पत्तियों पर क्यूटिकल का आवरण तथा धंसे हुए रंध्र‌ (sunken stomata) पाए जाते हैं। जो इनके मरूदभिद (Xerophytic) लक्षण प्रकट करते हैं।

संवहनीय ऊत्तक (जाइलम एवं फ्लोएम) आवृत्तबीजियों के समान संवहनीय बंडल (vascular bundles) में उपस्थित होता है।

इनमें भी टेरिडोफाइट्स के समान जाइलम में वाहिकाएँ (vessels) नहीं पायी जाती (अपवाद – कुछ नीटेल्स / Gnetales)।

इनके फ्लोएम में सहायक कोशिकाओं (companion cells) नहीं होती है। इसमें एल्बुमिनस कोशिकाएँ (Albuminous cells) सहायक कोशिकाओं का कार्य करती है।

जिम्नोस्पर्म में चालनी नलिकाएँ (Sieve tubes) नहीं बनती क्योंकि चालनी कोशिकाएँ एक सिरे से दूसरे सिरे तक पंक्तियों में व्यवस्थित नहीं होती। इसमें चालनी नलिका के स्थान पर चालनी कोशिकाएं (sieve cells) पाई जाती है

इनमें द्वितीयक वृद्धि (secondary growth) पाई जाती है।

इसकी मुख्य पत्तियों / फोलिएज पत्तियों (Foliage leaves) में पार्श्वीय शिराएँ (lateral veins) नही होती है। पार्श्वीय परिवहन के लिए आन्तरिक रूप से ट्रांसफ्युजन ऊत्तक (हाइड्रोस्टीरीयोम) के द्वारा होता है।

काष्ठ कोमल तथा होमोजाइलस होती है, लेकिन नीटेल्स के सदस्यों के जाइलम में वाहिकाएँ होती है।


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अनावृतबीजी पादपों में जनन (Reproduction in Gymnosperms)

ये विषमबीजाण्विक (heterosporous) होते हैं।

Gymnosperms में दो प्रकार के बीजाणुपर्ण होते हैं, जो लघुबीजाणुपर्ण (microsporophylls) तथा गुरूबीजाणु पर्ण (megasporophylls) है।

नर जननांग (Male reproductive organ)

लघुबीजाणुपर्ण (microsporophylls) समूहित सघन शंकु (स्ट्रोबिलाई strobili) बनाते हैं, जो कि पराग शंकु या नर शंकु (pollen cones or male cones)  कहलाते है।

लघुबीजाणु पर्ण तन्तु तथा परागकोष (filament and anther) का विभेदन नहीं दर्शाती है।

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लघु बीजाणु पर्ण (microsporophylls) में लघुबीजाणुधानियाँ (microsporangium) होती है जिसमें जनन कोशिका में अर्द्धसूत्री विभाजन (Meiosis) से अगुणित लघुबीजाणु (Haploid Microspore) बनते है।

लघुबीजाणु (Microspore) नर युग्मकोद्भिद (Male gametophyte) में विकसित होते हैं, जो कि अत्यधिक अपह्वासित (highly reduced) होते हैं।

यह अपह्वासित नर युग्मकोद्भिद (highly reduced Male gametophyte) परागकण (pollen grain) कहलाते हैं। परागकणों का विकास लघुबीजाणुधानी (microsporangium) में ही होता है।

मादा जननांग (Female reproductive organ)

गुरूबीजाणु पर्ण (megasporophylls) अण्डप (Carpel) समान वलयित नहीं होते हैं।

गुरूबीजाणु पर्ण संघनित होकर कॉम्पेक्ट शंकु (स्ट्रोबिलाई strobili) बनाते हैं, जो बीज शंकु या मादा शंकु (seed cones or female cones) कहलाती है।

इनके पुष्प के स्त्रीकेसर में एन्जियोस्पर्म के समान अण्डाशय, वर्तिका तथा वर्तिकाग्र (ovary, style and stigma) जैसा विभेदन इसमें अनुपस्थित होता है।

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गुरूबीजाणु पर्ण (megasporophylls) पर गुरूबीजाणुधानी (mega sporangium) होती है जो बीजाण्ड (Ovule) कहलाती हैं।

प्रत्येक बीजाण्ड 3.परतीय एकल अध्यावरण (Three layered single integument) द्वारा घिरा होता है।

लेकिन नीटम (Gnetum) में बीजाण्ड द्विअध्यावरणी ( Bitegmic) होते है।

मादा युग्मकोद्भिद में आर्कीगोनिया (archegonia) होती है।

आर्कीगोनिया (archegonia)  नीटेल्स गण के कुछ सदस्यों में अनुपस्थित होती है।

 

परागण (Pollination)

जिम्नोस्पर्म में प्राय वायु परागण (wind Pollination / anemophily) होता है।

परागण प्रत्यक्ष होता है, क्योंकि वर्तिकाग्र अनुपस्थित होती है, तथा परागकण प्रत्यक्ष रूप से बीजाण्ड के बीजाण्ड द्वारीय सिरे (micropylar end of ovules) तक पहुँचते हैं।

परागकण (pollen grain) दो नर युग्मक (male gametes) उत्पन्न करता है। सामान्यतया इनमें से केवल एक ही कार्यात्मक होता है।

ब्रायोफाइटा तथा टेरिडोफाइटा की तरह बाह्य जल नर युग्मकों के परिवहन के लिए आवश्यक नहीं है।

परागकण (pollen grain)  द्वारा परागनलिका बनती है, नर युग्मकों (male gametes) आर्कीगोनिया (archegonia) तक पहुँचाती है जहाँ निषेचन होता है।

निषेचन (Fertilization)

इसमें निषेचन साइफोनोगेमी (siphonogamy) प्रकार का होता है। निषेचन के फलस्वरूप द्विगुणित युग्मनज बनता है। जो भ्रूण का विकास करता है। इनमें भ्रूणपोष का विकास निषेचन से पूर्व ही हो जाता है।

भ्रूण एवं भ्रूणपोष (Embryo & endosperm)

बीजों में भ्रूण की वृद्धि के लिए लेडेन ऊत्तक या भ्रूणपोष (laden tissue or endosperm) होता है। यह ऊत्तक मादा युग्मकोद्भिद (female gametophyte) प्रदर्शित करता है, तथा अगुणित होता है।

इनका भ्रूणपोष अगुणित होता है।

जिम्नोस्पर्म में अंडाशय (Ovary) नहीं पाया जाता है। इनमें फल नहीं बनते।

इनमें बहूभ्रूणता पाई जाती है।


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जिम्नोस्पर्म का वर्गीकरण (Classification of Gymnosperms)

जिम्नोस्पर्म को तीन वर्गों में बांटा गया है-

  1. साइकेडोप्सिडा (Cycadopsida)
  2. कोनिफेरोप्सिडा (Coniferopsida)
  3. नीटोप्सिडा (Gnetopsida)

 

साइकेडोप्सिडा (Cycadopsida)

  1. इनका तना बेलनाकार (Cylindrical), शाखित (branched) तथा खजूर (palm-like) के समान होता है।
  2. इनमें पत्तियां पिच्छाकार (pinnate), संयुक्त (compound) तथा सर्पिलाकार (spiral) होती है।
  3. इनमें द्वितीयक वृद्धि द्वारा विरलदारूक (Monoxylic) काष्ठ बनती है।
  4. इसके सदस्य एकलिंगाश्रयी (dioecious) होते हैं।
  5. तने के शीर्ष पर नर शंकु अथवा मादा शंकु लगते हैं।

 

कोनिफेरोप्सिडा (Coniferopsida)

  1. इनका तना काष्ठीय (woody), शाखित (branched), शंकु के समान (cone-shaped) आकृति का होता है।
  2. इनमें द्वितीयक वृद्धि के द्वारा घनदारूक (Pycnoxylic) काष्ठ बनती है।
  3. इनमें रेजिन नलिकाएं पाई जाती है।
  4. यह एकलिंगाश्रयी (dioecious) होते हैं

 

नीटोप्सिडा (Gnetopsida)

यह   होते हैं।

इनमें पत्तियां सम्मुख या चक्रीय होती है।

इनके द्वितीयक काष्ट में वाहिकाएं पाई जाती है।

इनमें बीजांड दो आवरणों से घिरा रहता है।

 

काष्ठ के प्रकार (Types of wood)

जिम्नोस्पर्म में निम्न प्रकार की लकड़ियां पाई जाती है-

मेनोजाइलिक (Manoxylic)      

  • मज्जा किरणों युक्त संवहनीय बंडल होता है यह कोमल काष्ठ है
  • यह व्यवसायिक रूप से कम उपयोगी होती है, उदाहरण – सायकस।

 

पिक्नोजाइलिक (Pycnoxylic)    

  • संवहन बंडल संकीर्ण मज्जा किरणों युक्त या मज्जा किरणों विहिन होता है।
  • यह सघन काष्ठ है।
  • व्यवसायिक रूप से अत्यधिक उपयोगी होती है, उदाहरण – पाइनस।

 

मोनोजाइलिक (Monoxylic)

  • संवहन बंडल में एकल चीरस्थाई एधा वलय होती है उदाहरण – पाइनस।

 

पोलिजाइलिक (Polyxylic)

  • संवहन बंडल में अनेक चीरस्थाई एधा वलय होती है उदाहरण – सायकस।

 


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जिम्नोस्पर्म पादपों का आर्थिक महत्व (Economic importance of gymnosperm plants)

  1. पाइनस जीयार्डियाना (Pinus gerardiana) के बीज चिलगोजा (chilgoza) कहलाते हैं, जो खाने योग्य होते हैं।
  2. इफेड्रा (Ephedra) से इफेड्रिन औषधि प्राप्त होती है। यह औषधि श्वसन सम्बन्धी विकारों जैसे अस्थमा में उपयोगी है।
  3. टेक्सस बकाटा से टेक्सोल प्राप्त होता है, जो एन्टिकेन्सर रसायन है। इसका उपयोग कैंसर के उपचार में होता है।
  4. सायकस रीवोल्युटा (Cycas revoluta) के स्तम्भ से स्टार्ची भोजन सेगों या साबूदाना प्राप्त होता है, इसलिए साइक्स को सेगो पाल्म (sago palm) भी कहते हैं।
  5. जिम्नोस्पर्म एबीज बाल्सेमीया (Abies balsamaea) से कनाडा बाल्सम प्राप्त होता है। यह माउन्टिंग कारक है, जो स्थायी स्लाइड बनाने में उपयोगी है।
  6. जुनिपेरस वरजियाना (Juniperus virginiana) से सीडार काष्ठ तेल (Cedar wood oil) प्राप्त होता है यह सूक्ष्मदर्शिता में उपयोगी है।
  7. अनावृत्तबीजियों में कोमल काष्ठ होती है, यह हल्के फर्नीचर, प्लाई वूड, पेकिंग केस, माचिस की तीलियाँ, टेªन के स्लीपर आदि बनाने में उपयोगी है। उदा. सीड्रस देवदार (Cedrus deodara)।
  8. इनसे रेजिन प्राप्त होता है। रेजिन अर्द्धतरल होता है, जो विशिष्ट रेजिन नाल द्वारा स्त्रावित होता है। यह वायु के सम्पर्क में ठोस हो जाता है, अतः यह चोट के स्थान को भरता हैं। यह परागण के बाद मादा शंकु बंद करने में सहायक है। रेजिन व्यवसायिक रूप से निकाला जाता है, तथा टर्पेन्टिन (Turpentine) व रेजिन प्राप्त करने हेतु आसवित किया जाता है।
  9. रेजिन का उपयोग जलशोधन (water proofing), संधियों को भरने (sealing joints) तथा कागज निर्माण (preparation of writing paper) में होता है। टर्पेन्टाइन (Turpentine) पेन्ट्स, पोलिश तथा मोम में विलायक (solvent) के रूप में उपयोगी है। उदा-पाइनस।

 

इन्हें भी पढ़ें

  1. ब्रायोफाइट (Bryophyte) पादपो का सामान्य परिचय एवं जीवन चक्र (General Introduction and Life Cycle of Bryophyte Plants in Hindi)
  2. शैवाल के सामान्य लक्षण, वर्गीकरण एवं उपयोग
  3. टेरिडोफाइट पादपो का सामान्य परिचय एवं विशिष्टता (General Introduction and Characteristics of Pteridophyta Plants)
  4. संघ पोरिफेरा या स्पंज का संघ (Phylum-Porifera or Sponge Hindi)
  5. Phylum संघ – टीनोफोरा
  6. संघ सीलेन्ट्रेटा या नाइडेरिया (Phylum – Coelenterata or Cnidaria in Hindi)

 

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