मूल/ जड़- बाह्य आकारिकी, रूपांतरण (Root Morphology)

जड़ – बाह्य आकारिकी, रूपांतरण तथा कार्य मूल तंत्र (Root Morphology, Modification of root, Root system and Work of Root)

Contents

मूल/ जड़ (Root)


पादप का वह भूमिगत भाग (Underground Part) जो बीज के अंकुरण (Seed Germination) के समय भ्रूण (Embryo) के मुलांकुर (Radicle) से विकसित होता है, जड़ (Root) कहलाती है। सर्वप्रथम उत्पन्न जड़  को प्राथमिक मूल (Primary Root) कहते हैं। इन प्राथमिक मूलों से उत्पन्न पार्श्व मूलों (Lateral Root) को द्वितीयक  (Secondary Root) तथा तृतीयक  मूल (Tertiary Root) कहते हैं।


मूलतंत्र (Root System)


पादपों में तीन प्रकार का मूलतंत्र पाया जाता है –


मूसला मूलतंत्र (Tap Root System)


प्राथमिक मूल और उनकी शाखाएं मिलकर मूसला मूलतंत्र का निर्माण करते हैं। जो द्विबीजपत्री (Dicots) पादपों में पाई जाती है।

मूल/ जड़- बाह्य आकारिकी, रूपांतरण तथा कार्य मूल तंत्र (Root Morphology)Tap Root System in Hindi


झकड़ा मूलतंत्र (Fibrous Root System)


एकबीजपत्री (Monocots) पादपों में प्राथमिक मूल अल्पजीवी (Short Life) होती है। जिसके कारण प्राथमिक मूल के स्थान अनेक समान लंबाई की जड़ों का निर्माण हो जाता है। ऐसे मूल को झकड़ा मूल तंत्र या रेशेमय मूल तंत्र कहते हैं।

मूल/ जड़- बाह्य आकारिकी, रूपांतरण तथा कार्य मूल तंत्र (Root Morphology)

Fibrous Root System in Hindi

 

 


अपस्थानिक मूलतंत्र  (Adventitious Root System )


कुछ पादपों में जड़े पादप के वायवीय भागों से विकसित होती है। ऐसी मूलो को अपस्थानिक मूल कहते हैं। जैसे घास (Grass) व बरगद (Banyan)।

मूल/ जड़- बाह्य आकारिकी, रूपांतरण तथा कार्य मूल तंत्र (Root Morphology)

Adventitious Root System in Hindi

 

 


जड़ो के सामान्य लक्षण (Characteristics of Root)


  • जड़ में पर्णहरित (Chlorophill) अनुपस्थित होता है।
  • जड़ो में धनात्मक गुरुत्वानुवर्तन (Positive Geotropic), धनात्मक जलानुवर्तन (Positive Hydrotropic) तथा ऋणात्मक प्रकाशानुवर्तन (Negative Phototropic) पाया जाता है। मूल में पर्व (Nodes) , पर्वसंधि (Internode), कलिकओ तथा पतियों का अभाव होता है।
  • जड़ों में अरिय संवहन बंडल (Radial Vascular Bundle) पाया जाता है।
  • जड़ोके परिपक्वन क्षेत्र में एककोशिकीय मूलरोम (Unicellular Root Hair) पाए जाते हैं। जो जल का अवशोषण करते हैं।
  • जड़ों के परिरम्भ (Pericycle) के द्वारा पार्श्व मूल की उत्पत्ति होती है। जो अंतर्जातीय (Endogenous) प्रकार की होती है।

मूल के क्षेत्र (Zone of Root)


मूल को चार क्षेत्रों में विभक्त किया गया है-

मूल/ जड़- बाह्य आकारिकी, रूपांतरण तथा कार्य मूल तंत्र (Root Morphology)


मूलगोप (Root Cap)


यह जड़ के शीर्ष पर टोपीनुमा भाग होता है। जो विभज्योतक को घर्षण से बचाता है। जलीय पादप जैसे लेम्ना व पिस्टिया में इनके स्थान पर मूलकोटरिकाए या मूलपॉकेट (Root Pocket) पायी जाती है।


विभज्योतक क्षेत्र (Meristematic Region)


यह विभाजनशील कोशिकाओं का क्षेत्र होता है। जो विभाजन करके जड़ की लंबाई बढ़ाती है।


दीर्घीकरण क्षेत्र (Elongation Region)


इस क्षेत्र में विभज्योतक से निर्मित कोशिकाएं वृद्धि करके जड़ की लंबाई बढ़ाती है।


परिपक्वन क्षेत्र (Mature Region)


इस क्षेत्र में परिपक्व तथा विभेदित कोशिकाएं होती है। जो बाह्य त्वचा (Epidermis or Epiblema), वल्कुट (Coetrx), परिरम्भ (Pericycle), मज्जा (Pith), जाइलम, फ्लोएम आदि में विभक्त होती है। इनकी बाह्य त्वचा पर मूल रोम पाए जाते हैं।


जड़ो के रूपांतरण (Modification of Roots)


कुछ जड़ें विशिष्ट कार्य करने हेतु अलग-अलग आकार और संरचना में रुपांतरित हो जाती है। इन्हें रूपांतरित मूल (Modified Root) कहा जाता है।
ये निम्न प्रकार की होती है –


संग्रहण मूल (Storage Root)


कुछ जड़े भोजन का संग्रहण करके फूल जाती है और संग्रहण मूलो का निर्माण करती है। यह निम्न प्रकार की होती है।


मुसला मूल में रूपांतरण (Modification of Tap Root)



तर्कुरुपी (Fusiform)

मूली में मूसला जड़ भोजन का संग्रहण करके तर्कु जैसी संरचना बना लेती है। जो मध्य में फूली हुई तथा किनारों पर पतली होती है।


शंकुरूपी (Conical)


गाजर में मूसला जड़ भोजन का संग्रहण करके शंकुरूपी संरचना बना लेती है। जो ऊपर की ओर मोटी तथा नीचे की ओर पतली होती है।


कुंभीरुपी (Napiform)


शलजम में शलजम तथा चकुंदर में मूसला मूले भोजन का संग्रहण करके घड़े (मटके) जैसी आकृति बना लेती है। जो बीच में से गोल होती है।


साकंद (Tuberous)


गुल अब्बास में मूसला मूले भोजन का संग्रहण करके अनिश्चित आकृति बना लेती है। जो कंदील जड़े कहलाती है।


अपस्थानिक जड़े का रूपांतरण (Modification of Adventitious Root)



कंदील मूल (Tuberous Root)


शकरकंद में अपस्थानिक जड़े भोजन का संग्रहण करके कंदील जैसी संरचना बना लेती है। जो तने की पर्वसंधियों से निकलती है।


पुलकित मूल (Fasciculate Root)


शतावर तथा डहेलिया में अपस्थानिक जड़ें एक से अधिक बहुत सारे कंदील जड़ों की संरचना बना लेती है। इसे पुलकित जड़ कहते हैं।


ग्रंथिल मूल (Nodulose Root)


अरारोट तथा अंबा हल्दी में अपस्थानिक जड़ें की शीर्ष फूल कर मोती जैसी आकृति बना लेती हैं। इन्हें ग्रंथिल मूल कहते हैं।


मालाकार मूल (Moniliform or Beaded)


करेला तथा रतालू में जड़े एकांतर क्रम में भोजन का संग्रहण करके ग्रंथियों जैसी संरचना बना लेती है। जिससे जड़े माला जैसी दिखाई देती है।


वलयाकार (Annulated)


Cephalis ipecacuanha में जड़ें चक्रीय संरचना का निर्माण करती है।

विभिन्न प्रकार के पुष्पक्रम (Different Types of Inflorescence Hindi)


यांत्रिक सहारा प्रदान करने के लिए जड़ो का रूपांतरण (Modification for Mechanical Support)



जटा मूल ( Prop Roots)


कुछ पादपों में तने से निकलने वाली अपस्थानिक जड़ें शाखाओं की तरह  वृद्धि करती हुई भूमि में प्रवेश कर जाती है। जो खम्भे की तरह पादप को सहारा प्रदान करती है।


अवस्तंभ मूल (Stilt Roots)


गन्ना, मक्का तथा केवड़ा में तने से निकलने वाली जड़े तिरछी वृद्धि करती हुई भूमि में प्रवेश कर जाती है। और तने को सहारा प्रदान करती है।


आरोही मूल (Climbing Roots)


पान में पर्वसंधियों से निकलने वाली अपस्थानिक जड़ें पादप को किसी अन्य पादप पर चढ़ने में सहायता करती है। इसे आरोहण कहते हैं। इस  प्रकार की जड़े सेमल ट्रामीनेलिया में पायी जाती है ।


वप्रमूल, पुश्तामूल (Butress Root)


बड़े वृक्षों के तने के निचले हिस्सों से तख्ते के समान मोटी जड़े निकल कर विभिन्न दिशाओं में फैल जाती है।


अनुलग्न मूल (Clinging Root)


अधिपादपों में आधार से चिपकने के लिए अनुलग्न जड़े पाई जाती है। जो आधार की दरारों में प्रवेश करके अधिपादप को सहारा प्रदान करती है।


प्लावी मूल (Floating Root)


जलीय पादपों के तने की पर्वसंधियों से जड़े निकलकर फूल जाती है। जिनमें वायु कोष पाए जाते हैं। जो पादप को उत्प्लावन (Buoyancy) में सहायता करते हैं। जैसे जसिया


संकुचनशील मूल (Contractile Root)


प्याज व केली में जड़े फुलकर या संकुचित होकर पादप के वायवीय या भूमिगत भाग को उचित स्तर पर बनाए रखती है।


मूल कंटक (Root Thorus)


यह तने के आधारी भाग से निकलकर दृढ़, नुकीली तथा कांटेनुमा हो जाती है। जो पादप को आरोहण में सहायता करती है। उदाहरण पोथोस


पर्णमूल (Leaf Root)


ये पर्णफलक के कोर से विकसित होती है। उदाहरण पत्थरचट्टा Bryophyllum


कार्यिकीय रूप से रूपांतरित जड़े (Modification of Roots for Physiological Reasons)



श्वसन मूल (Respiratory Roots)


दलदली क्षेत्रों में पाए जाने वाले पादपों में जड़े भूमि से ऊपर निकलकर वृद्धि करने लग जाती है। इन जड़ो को न्यूमेटोफ़ोर कहते हैं। यह श्वसन में सहायता करती है। इनमें न्यूमेटोड पाए जाते हैं। उदाहरण राइजोफोरा, एविसीनिया


आद्रताग्राही मूल या अधिपादप मूल (Hygroscopic or Epiphytic Roots)


अधिपादपों में पाए जाने वाली वायवीय जड़े अधिपादप मूल कहलाती है। यह हरी होने के कारण प्रकाश संश्लेषण करती है। इन मूलों का बाह्य आवरण जल का अवशोषण करता है। जिसे विलामेन (Velamen) कहते हैं। जैसे आर्केड


स्वांगीकारी मूल (Assimilatory Roots)


हरित लवक की उपस्थिति में प्रकाश संश्लेषण के द्वारा भोजन का निर्माण करती है। जैसे गिलोय सिंघाड़ा


प्रजननकारी मूल (Reproductive Roots)


शकरकंद तथा डहेलिया में अपस्थानिक कलिकाएं कायिक जनन का कार्य करती है।


चूषक मूल/ चूषकांग (Sucking Root)  


अमरबेल परजीवी पादप होते हैं। इनमें जड़ें परपोषी पादप में प्रवेश करके उन से भोजन प्राप्त करती है। इसको Haustoria भी कहते है।


कवक मूल (Mycorrhizal Roots)


पाइनस में कवक व जड़ के मध्य सहजीविता पाई जाती है।


मूल ग्रंथिकाए (Roots Nodules)


कुछ पादपों की जड़ों में राइजोबियम जीवाणु सहजीवन यापन करता है। और जड़ों में ग्रंथिकाओ का निर्माण करता है।


जड़ो के कार्य (Function of Roots)


  1. भूमि से जल तथा लवण का अवशोषण करना व उनका संवहन करना।
  2. पादप को भूमि में स्थिर बनाए रखना।
  3. पादप वृद्धि नियामको का संश्लेषण करना।
  4. भोजन का संग्रहण करना।
  5. यांत्रिक आधार प्रदान करना।

इन्हें भी पढ़ें

  1. शैवाल के सामान्य लक्षण, वर्गीकरण एवं उपयोग (General Characteristics, Classification and Uses of Algae)
  2. ब्रायोफाइट (Bryophyte) पादपो का सामान्य परिचय एवं जीवन चक्र (General Introduction and Life Cycle of Bryophyte Plants in Hindi)
  3. टेरिडोफाइट पादपो का सामान्य परिचय एवं विशिष्टता (General Introduction and Characteristics of Pteridophyta Plants)
  4. अनावृतबीजी या जिम्नोस्पर्म के लक्षण एवं वर्गीकरण (Characteristics and classification of gymnosperms)
  5. आवृत्तबीजी या पुष्पी पादप (Angiosperm or flowring plant)
  6. संघ पोरिफेरा या स्पंज का संघ (Phylum-Porifera or Sponge Hindi)
  7. संघ सीलेन्ट्रेटा या नाइडेरिया (Phylum – Coelenterata or Cnidaria in Hindi)
  8. Phylum संघ – टीनोफोरा
  9. संघ – प्लेटीहेल्मिन्थिज
  10. संघ-ऐनेलिडा
  11. Phylum संघ आर्थोपोडा
  12. संघ मोलस्का
  13. संघ एकाइनोडर्मेटा
  14. Phlylum संघ हेमीकॉड्रेटा
  15. संघ कॉर्डेटा
  16. उपसंघ यूरोकॉर्डेटा
  17. उपसंघ सिफैलोकोर्डेटा
  18. Sub Phylumउपसंघ वर्टीब्रेटा

बाहरी कड़ियां

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Root Morphology, Modification of root, Root system and Work of Root


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Hamid Ali
1 Comment
  1. Very good sir

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