अर्द्धचालक के प्रकार (Types of Semiconductors)

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अर्द्धचालक के प्रकार (Types of Semiconductors)

अर्द्धचालकों को दो भागों में विभक्त किया गया है-

  1. नैज / निज अर्द्धचालक (Intrinsic Semiconductors)
  2. अशुद्ध / बाह्य अर्धचालक (Extrinsic Semiconductors)

 

नैज अर्द्धचालक (Intrinsic Semiconductors)

सिलिकॉन तथा जर्मेनियम को शुद्ध अर्द्धचालक या नैज अर्द्धचालक कहां जाता है। इनमें धारा का प्रवाह इलेक्ट्रॉन तथा होल दोनों के कारण होता है। अतः

nh = ne

 

 

अशुद्ध अर्धचालक (Extrinsic Semiconductors)

यदि अर्द्धचालक में अशुद्धियां मिला दी जाती है तो यह अशुद्ध अर्द्धचालक बन जाता है, इसको बाह्य अर्द्धचालक भी कहते हैं।

यह दो प्रकार का होता है-

  1. N प्रकार के अर्द्धचालक (N type semiconductor)
  2. P प्रकार के अर्द्धचालक (P type semiconductor)

 

N प्रकार के अर्द्धचालक (N type semiconductor)

यहाँ N का अर्थ Negative यानि ऋणात्मक है। ऐसा क्यों आइए समझते है।

जब ठोस सिलिकॉन अथवा जर्मेनियम (शुद्ध अर्द्धचालक) में पंचसंयोजी अशुद्धि यानि पाँच संयोजकता वाली अशुद्धियां जैसे फॉस्फोरस (P), आर्सेनिक (As) एंटीमनी (Sb), बिस्मिथ (Bi), का डोपन किया जाता है तो बंध बनने के बाद अष्टक पूर्ण हो जाने पर  अशुद्धि का पांचवा इलेक्ट्रॉन मुक्त हो जाता है,

ये पांचवा इलेक्ट्रॉन धारा चालन के लिए अर्द्धचालक के चालन बैंड (Conduction Band) को ”दान“ कर दिया जाता है, अतः अशुद्धि को दाता अशुद्धि कहा जाता है।

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इलेक्ट्रॉन  का ”दान“ कर देने से अशुद्धि स्वयं धनायनित (Positive) हो जाती है। लेकिन अर्द्धचालक स्वयं विद्युत उदासीन (Neutral) रहता है। इसमें मुक्त इलेक्ट्रॉन (Free electron) की संख्या बहुत अधिक हो जाती है। अतः इसे N प्रकार का अर्द्धचालक कहते है।

N प्रकार के अर्द्धचालक में

  1. nh << ne
  2. मुक्त इलेक्ट्रॉन को बहुसंख्यक आवेश वाहक (Majority charge carrier) कहते है।
  3. होल को अल्पसंख्यक आवेश वाहक (Minority charge carrier) कहते है।
  4. अशुद्धि परमाणु से बने आयनों को ”स्थिर दाता धनायन“ कहते है।
  5. धारा का प्रवाह इलेक्ट्रॉन के कारण होता है।

 

Trick – अर्द्धचालक – Negative (N प्रकार) तथा अशुद्धि – Positive | इलेक्ट्रॉन Negative होता है तो धारा का प्रवाह इलेक्ट्रॉन से।

 

P प्रकार के अर्द्धचालक (P type semiconductor)

यहाँ N का अर्थ Positive यानि धनात्मक है। ऐसा क्यों आइए समझते है।

जब ठोस सिलिकॉन अथवा जर्मेनियम (शुद्ध अर्द्धचालक) में

त्रिसंयोजी अशुद्धि यानि तीन संयोजकता वाली अशुद्धियां जैसे B, Al, Ga, In, Tl (13 वे आवर्त के तत्व) का डोपन किया जाता है तो बंध बनने के लिए यानि अष्टक पूर्ण करने के लिए अशुद्धि अर्द्धचालक से एक इलेक्ट्रॉन ग्रहण कर लेती है, फलस्वरूप अर्द्धचालक मे अतिरिक्त होल बन जाता है।

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अशुद्धि (Impurities) इलेक्ट्रॉन ग्रहण करती है, अतः अशुद्धि को ग्राही अशुद्धि कहा जाता है। इलेक्ट्रॉन को ”ग्रहण“ कर लेने से अशुद्धि स्वयं ऋणायनित (Negative) हो जाती है। लेकिन स्वयं अर्द्धचालक कुल मिलाकर विद्युत उदासीन (Neutral) रहता है। इसमें होल की संख्या बहुत अधिक हो जाती है। अतः इसे P प्रकार का अर्द्धचालक कहते है।

 

P प्रकार के अर्द्धचालक में

  1. nh >> ne
  2. मुक्त इलेक्ट्रॉन को अल्पसंख्यक आवेश वाहक (Minority charge carrier) होते है
  3. होल बहुसंख्यक आवेश वाहक (Majority charge carrier) होता है।
  4. धारा का प्रवाह होल के कारण होता है।
  5. अशुद्धि परमाणु से बने आयनों को ”स्थिर ग्राही ऋणायन“ कहते है।

Trick – अर्द्धचालक – Positive (P प्रकार) तथा अशुद्धि –Negative

 

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  2. ठोसों में ऊर्जा बैण्ड  (Energy Bands in Solids)
  3. प्रकृति के 4 मूल बल (4 fundamental forces of nature)
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  5. आवेश संरक्षण तथा आवेश का क्वांटीकृत सिद्धांत, कुलाम का नियम ((Theory of Conservation of Charge and Quantization of Charge )
  6. स्थिर विद्युतिकी, विद्युत आवेश की परिभाषा, प्रकार, मात्रा तथा गुणधर्म (Definition, type, quantity and properties of static electrics, electric charge) 

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